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ज्ञानसार
तटस्थ नहीं होने देते । अतः असत् तत्त्व को सत् और सत् तत्त्व को असत् सिद्ध करने के लिए रात-दिन प्रयत्न करता रहता है । इसके लिए वह कुतर्क और दलीलों का आश्रय लेता है । तब फिर तटस्थता कैसी ?
___ क्या जमालि में सुख के प्रति विरक्ति और काम-वासना के प्रति उदासीनता नहीं थी ? अवश्य थी, लेकिन फिर भी वह राग-द्वेष से अलिप्त न रह सका । क्योंकि वह असत् तत्त्वों के प्रति राग और सत् तत्त्वों के प्रति द्वेष से ऊपर न उठ सका । उसे न जाने कितने लोगों के उपालम्भ और लोक-निंदा का भोग बनना पड़ा ! खुद भगवान महावीर का उलाहना भी उसको सुनना पड़ा। जीवन-संगिनी आर्या प्रियदर्शना ने उसका त्याग किया । हजारों शिष्यों ने उसे छोड दिया ! अरे, उसे सरे-आम अपमान, घृणा और बदनामी झेलनी पड़ी ! फिर भी वह तटस्थ न बन सका सो न बन सका ! असत् तत्त्व को सत् सिद्ध करने के लिए उसने असंख्य कंकर उछाले, यहाँ तक कि उसकी वर्षा ही कर दी और दीर्घ काल तक असत् तत्त्वों का कट्टर पक्षघर बना रहा !
जबकि कुम्भकार-श्रावक ढक के कारण आर्या प्रियदर्शना तटस्थता प्राप्त कर गयी ! उसने कुतर्क का त्याग किया ! महावीर देव के पास पहुँच गयी और संयमाराधना करती हुई, राग-द्वेष से मुक्त हो परम मध्यस्थ भाव में स्थिर हो गयी !
इसीलिए कहा गया है कि जब तक कर्मजन्य भावों के प्रति तीव्र आसक्ति है, तब तक तटस्थता कोसों दूर है। अपनी आत्मा के स्वाभाविक गुणों में रमणता / निमग्नता यही वास्तविक मध्यस्थता है । स्वभाव का परित्याग यही सब से बड़ा उपालम्भ ! उलाहना है । इन सब बातों का तात्पर्य यह है कि रागद्वेष से परे रहने के लिए कुतर्क का त्याग करना चाहिए !
मनोवत्सो युक्तिगवीं मध्यस्थस्यानुधावति ! तामाकर्षति पुच्छेन तुच्छाग्रहमनः कपिः ॥१६॥२॥
अर्थ : मध्यस्थ पुरुष का मन रुपी बछड़ा युक्तिरुपी गाय के पीछे दौडता है, जबकि दीन-हीन वृत्तिवाले पुरुष का मनरूपी बंदर युक्ति रुपी गाय की पूंछ पकड कर पीछे खिंचता है !