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________________ २०८ ज्ञानसार यदि संयम के शस्त्र को भेद -ज्ञान से तीक्ष्ण बनाया जाय तो कर्मशत्रु का विनाश करने में वह समर्थ सिद्ध होगा । परम संयमी महात्मा खंधक मुनि के समक्ष जब चमड़ी छिलवाने का प्रसंग आया, तब मुनिराज ने अपूर्व धैर्य धारण कर संयमशास्त्र की धृतिधार को विवेक रुपी सान पर चढ़ा दिया । राजसेवक बड़ी क्रूरता से मुनि की चमडी छिलने लगे और इधर वे मुनि स्वयं संयम - शस्त्र से कर्म की खाल उतारने में तल्लीन हो गए । अर्थात् शरीर और आत्मा के भेदज्ञान की परिणति ने मरणांत उपसर्ग में भी धृति को बराबर टिकाये रख, संयम - वृत्ति को अभंग रखा । फलतः क्षणार्ध में ही अनंत कर्मों का क्षय हो गया और आत्मा पुद्गल - नियंत्रणों से मुक्त हो गयी । शरीर पर की चमड़ी उतरती हो, असह्य वेदना और कष्ट होता हो, खून के फव्वारे फूट रहे हों, फिर भी जरा सी हलचल नहीं, कतई असंयम नहीं, तनिक भी अधृति की भावना नहीं ! यह कैसे सम्भव है ? इतनी सहनशीलता, धैर्य और दृढ़ मन ! इसके पीछे कैसी अद्भुत शक्ति काम कर रही होगी ? कौन सा रहस्य छिपा होगा ? यह प्रश्न उठना स्वाभिवक है । जानते हो वह अद्भुत शक्ति और रहस्य क्या था ? वह था भेदज्ञान ! अपूर्व विवेक शक्ति | शरीर से आत्मा की भिन्नता इस तरह समझ में आ जानी चाहिये और फलस्वरुप उसकी वासना इस तरह बन जानी चाहिए कि शरीर की वेदना, पीड़ा, व्याधि, रोगादि विकृतियाँ हमारे धृति-भाव को विचलित करने में समर्थ न हों ! हमें संयमभाव से जरा भी चलित न कर सकें। भले ही फिर हम पर तलवार का वार हो या छूरे का प्रहार हो । चाहे कोई 'स्टेनगन' की गोलियों से शरीर को छलनी - छलनी कर दें । शरीर... आत्मा के भेद - ज्ञान की भावना अगर जागृत हो गयी है तो फिर हम में अघृति और असंयम की भावना कतई पैदा नहीं होगी। I झांझरिया मुनिवर पर तलवार का प्रहार किया गया, खंधकसूरिजी के पाँच सौ शिष्यों को कोल्हू में पीला गया, गजसुकुमाल मुनि के सिर पर अंगारों से भरा मिट्टी का पात्र रखा गया, अरे ! अयवन्ती - सुकुमार मुनिवर के शरीर को सियारनी ने फाड़ खाया, फिर भी इन महात्माओं ने इसका किंचित् भी विरोध या प्रतिकार न किया, बल्कि अद्भुत धैर्य, स्थिरता, अप्रमत्तता का परिचय देते हुए, धर्मध्यान और शुक्लध्यान में लीन रहे, मोक्ष - मार्ग की अंतिम मंजिल पार
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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