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________________ पावन भूमि हरिद्वार में वर्षों से कोई श्वेताम्बर जैन मंदिर नहीं था । मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन संस्थान के स्वर्गीय लाला सुंदरलालजी जैन को यह अभाव सदैव खटकता रहता था। शेठ कस्तूरभाई लालभाई की भी यही भावना थी कि इस पुण्यभूमि पर एक भव्य जैन मंदिर के साथ-साथ धर्मशाला, भोजनशाला व उपाश्रय का निर्माण होना चाहिए, किन्तु दोनों महानुभावो का यह स्वप्न उनके जीवनकाल में पुरा न हो सका । लाल सुंदरलालजी के भतीजे पद्म श्री स्व. शांतिलालजी जैन ने अपनी भावना सुश्रावक स्व. श्री शोरीलालजी जैन नाहर (मूल ब्यावर निवासी) के समक्ष रखी । अन्तः प्रेरणा से प्रेरित होकर श्रीयुत् शोरीलाल जी ने स्वयं को इस सम्पूर्ण परिजोयना के साथ तन-मन-धन से जोड़ा व तीर्थ निर्माण का समस्त कार्यभार अपने धों पर लिया । तीर्थ हेतु सर्वप्रथम भूमि का क्रय लाला शांतिलालजी ने अपने मित्र श्री ज्ञानचंदजी जैन (बी. पी. बी. पब्लिकेशन) के सहयोग से किया पद्मश्री ज्ञानचंदजी जैन वर्तमान में तीर्थमण्डल के अध्यक्ष हैं। दैवयोग से चेन्नई निवासी स्व. श्री अमरचंदजी वैद, जिन्हें अपने दिवंगत पिताश्री का दैव सानिध्य प्राप्त था, भी इस परियोजना की महत्त्वपूर्ण कड़ी बने और इस प्रकार मंदिर निर्माण का स्वप्न साकार हुआ । जैसलमेर के स्वर्णिम प्रस्तर युक्त देव विमान तुल्य इस मंदिर का निर्माण दो खण्डों में हुआ है। भूतल पर गर्भगृह में प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान की श्वेतवर्ण की ५१" की भव्य प्रतिमा स्थापित है एवं रंगमण्डप में श्री सीमंधर स्वामीजी व श्री महावीर स्वामीजी की प्रतिमायें प्रतिष्ठित हैं। मुख्य खण्ड के गर्भगृह में मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा विराजमान है और रंगमण्डप में श्री शांतिनाथजी एवं श्री नेमिनाथजी की प्रतिमायें प्रतिष्ठित हैं। मंदिर के पार्श्वनाग में आदिनाथ भगवान की चरण पादुकाएं रायण वृक्ष के निचे विराजमान हैं जो शत्रुजय तीर्थ पर स्थापित रायण पगलों की प्रति ति है । मूल मंदिर के सम्मुख मणिभद्र देव की देहरी स्थापित है। ---
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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