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________________ श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर तीर्थ, हरिद्वार (उत्तराखण्ड) संक्षिप्त परिचय आध्यात्मिक साधना में मंदिरों-तीर्थों का विशिष्ट महत्त्व है। तीर्थों से निःसृत होने वाली वीतरागता की ज्योति सांसारिक कर्मों में लिप्त मनुष्य को सदैव अपनी ओर आकर्षित करती रहती हैं । यही कारण है कि भारत में प्राचीनतम समय से तीर्थ-यात्रा को जीवन का पवित्रतम अनुष्ठान माना जाता है। तीर्थपति तीर्थंकर परमात्मा की प्रत्यक्षतः अनुपस्थिति में ये स्थापना तीर्थ ही हमारे लिये भवसागर से पार उतरने के साधन हैं । समस्त भारत में जैन तीर्थ अपनी अनूठी स्थातप्य-कला, वैभव, कलाकौशल एवं अप्रतिम निर्माण-सौंदर्य के लिय अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । इन तीर्थों में पालिताणा, सम्मेत-सिखर, आबू-देलवाडा, तारंगा, गिरनार, माण्डवगढ़, पावापुरी, क्षत्रियकुण्ड, राजगृही, राणकपुर, हस्तिनापुर, कांगड़ा, शंखेश्वर, अयोध्या जैसे तीर्थ विशेष प्रसिद्ध हैं । जैन तीर्थो की इसी श्रृंखला में एक तीर्थ है- श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ श्वेताम्बर तीर्थ, हरिद्वार (उत्तराखण्ड) जिस के प्रति समस्त जैन समाज की आस्था और निष्ठा समर्पित है। वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव का निर्वाण अष्टापद पर्वत पर हुआ था । अष्टापद तीर्थ वर्तमान में अप्राप्य है। भगवान जब अपने निर्वाण समय पर अयोध्या से अष्टापद की और पधारे होंगे तो हरिद्वार उनके निर्वाण मार्ग की समतल भूमि पर अंतिम पडाव रहा होगा। प्रभु के पावन अणु हरिद्वार के वातावरण के कण-कण में व्याप्त हैं और अनन्त काल तक बने रहेंगे।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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