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________________ ज्ञानसार हो । इन्द्रियाँ उसके प्रति आकर्षित ही न हों । ऐसी स्थिति में 'न रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी' । तुम विजेता बन जाओगे, स्वाश्रयी बन जाओगे । फिर भला दुनिया में किसकी ताकत है जो तुम्हें अपने संकल्प से विचलित कर सके ? विषयादि के वियोग में जब इन्द्रियाँ आकुल-व्याकुल न हों, परमात्मपरायण बन विषयों को सदा-सर्वदा के लिए विस्मृत कर दे और चंचल मन स्थिर बन परमात्म-ध्यान की साधना में अपना सक्रिय सहयोग प्रदान कर दे, तब धीर-गंभीर पुरुषों में भी धीर-गंभीर और श्रेष्ठ में तुम्हें श्रेष्ठतम बनते तनिक भी देर नहीं होगी। हालांकि इस संसार में उस व्यक्ति को भी धीर-गंभीर माना जाता है, जो अनुकूल विषयों के संयोग से प्रायः परमात्म ध्यान... धर्म-ध्यान जैसी बाह्य क्रियाओं में अपने आप को जुड़ा रखता है, लेकिन विषयों की अनुकूलता समाप्त होते ही उनकी धीर-गंभीर वृत्ति हवा हो जाती है, समाप्त हो जाती है। अत: अपने आप को भव-फेरों से बचाने के लिये विषय-वासनाओं का परित्याग करते हुए इन्द्रियों को सविकल्प निर्विकल्प समाधि में लयलीन करना है।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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