________________ उपदेशतरंगिणी. अर्थ- हे रामचंघजी ! तमो धन मेलवो? केमके, आ जगत धन ने मूल जेनुं एवुज निर्धन माणस श्रने मुडदां वच्चे कंपण हुं अंतर जोतो नथी. धर्मो महामंगलमंगनाजां, धर्म:पिता पूरितसर्वकामः॥ धर्मो जनन्युद्दलिताखिलार्तिः,धर्मः सुहृपर्धितनित्यहर्षः __ अर्थ- प्राणीउने धर्म महामंगलरूप , तेम पितानी पेठे सर्व इलितोने श्रापनारो ने, वली मातानी पेठे सर्व पीमाउने दूर करनारो, तथा मित्रनी पेठे हर्ष वधारनारो . बुझेः फलं तत्वविचारणं च, देहस्य सारं व्रतधारणं च // अर्थस्य सारं किल पात्रदानं, वाचः फलं प्रीतिकरं नराणाम् // 1 // अर्थ-बुधिनुं फल तत्वविचार ने, शरीरनुसार्थक व्रतधारवारूप ने, धनफल सुपात्रदान बे, अने वाणीनुं फल लोकोने प्रेम उपजाववो, ते बे. __एवी रीते आ श्री उपदेशतरंगिणी नामना ग्रंथनुं गुजराती भावार्थवालुं नाषांतर जामनगर निवासि पंमित श्रावक हीरालाल वि. हंसराजे गुरुमाहाराज श्री चारित्रविजयजीनी कृपाथी करेलु . तेमां जे जूल चुक थइ होय ते “मिनामिक्कडं" इति तपगमेश श्री सोमसुंदर सूरि श्री रत्नशेखर सूरि. पं० नंदि रत्नगणि शिष्य श्री रत्नमंदिरगणि गुंफितायां. श्री उपदेश तरंगिण्यां धर्मोपदेश रूपः पंचम स्तरंगः समाप्तः // श्रीरस्तु // हीनपुण्या न पश्यंति, रागांधास्तत्वसंस्थितिम् // तान्नेऽतान्नफलं चैव, लग्नंते ते नराधमाः // 1 // समाप्तोऽयं ग्रंथः // श्रीरस्तु //