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________________ उपदेशतरंगिणी. १एए टिध्वजनी पताका बंधावी आपी. पठी ते लक्ष्मीने शेठे दान आपीने कृतार्थ करी. सुकुलजन्म विनूतिरनेकधा, प्रियसमागमसौख्यपरंपरा ॥ नृपकुले गुरुता विमलं यशो, नवति धर्मतरोः फलमीहशम ॥१॥ अर्थ- उत्तम कुलमां जन्म, अनेक प्रकारनी विनूति, प्रिय सजनोनो समागम, सुखनी श्रेणि, राज्यकुलमां मोटाइ, तथा निर्मल यश ए सघलां धर्मरूपी वृदनां फलो . .... इक्ष्वाकु आदिक उत्तम कुलोमां धर्मना माहात्म्यथीज जन्म थाय जे; वली ते जन्मने शोलावनारी लक्ष्मी पण धर्मश्रीज थाय ने लक्ष्मी ने ते खरेखलं मनुष्यनुं जूषण जे. केमके रामचंघजी महाराज उत्तम कुलना हता, तोपण वनवास समये ज्यारे ते वशिष्ठ ऋषिना आश्रममां पधार्या, त्यारे ते समये ते निर्धन होवाथी शषिए तेमने कंई सन्मान आप्युं नहीं. पी रावणनो जय करीने, अने लंकानुं अधिपतिपणुं मेलवीने ज्यारे ते पाग तेज श्राश्रममां आव्या त्यारे वशिष्ठ कृषि उन्ना थइ तेनी सन्मुख गया, तथा तेमने आसन आदिक यापी तेमनी घणीज आगतस्वागत करी. त्यारे रामचंअजीए तेमने कह्यु के, तेज तमोगे, अने तेज हुं बुं, तथा तेज तमारो आश्रम , पण पूर्वे तो तमो मने कं; पण श्रादरमान प्राप्यु नहीं, अने हमणां आपो गे तेनुं शुं कारण ? त्यारे वशिष्ठ शषिए कडं के, तेज तमो गे, तेज हुँ बु अने तेज अमारो आश्रम के, पण पूर्वे ज्यारे तमो पधार्या हता, त्यारे तमो निर्धन हता, अने हमणा तो तमो सधन थया गे, अने तेने खेश्ने हुं तमोने आदरमान आपुं बु. माटे धनमर्जय काकुस्थ, धनमूलमिदं जगत् ॥ . . अंतरं नैव पश्यामि, निर्धनस्य मृतस्य च ॥१॥
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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