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________________ उपदेशतरंगिणी. १५३ ते सांजली मंत्रिए मिथ्याउःकृत देश, तेनुं स्वरूप पूरीने, ते चारणने पेहेरामणी सहित रवाना कर्यो. - स्नानादिकनीशुद्धि पूर्वक कायशुद्धि करवी. उपलक्षणथी जिनपूजन करतां शरीरे खरज करवी नहीं, तेम धुंकवु के श्लेश्मादिक कहाड, नहीं. सांधेलु, बलेवू, फाटेलु, अने परनुं वस्त्र जिनपूजा करतां नहीं पेहेरवं, एवी रीते वस्त्रशुद्धि जाणवी. मल, तथा श्लेश्मादिक अशुचि पदार्थोथी अपवित्र थएली नूमिपर रही देवपूजा करवी नहीं. उपलदाणथी कलश, रकाबी, लोटा विगेरे पूजानां उपकरणोने घरनां कार्योमां वापरवां नहीं. चोर्यासी प्रकारनी आशातना वर्जवाथी स्थितिशुद्धि थाय ने. संसारपारगं वीत-रागं मुक्तिसुखप्रदम् ॥ चंपकादिकविस्तीर्ण-कुसुमैः पूजयेद्बुधः ॥ १॥ अर्थ-श्रा संसाररूपी समुश्री पार गएला, अने मोदसुखने देनारा एवा श्री वीतराग प्रनुने चंपक आदिक प्रफुलित पुपोथी डाह्या माणसे पूजवा. जिनपूजा समये अपवित्र पुष्पो वापरवां नहीं, तेम हाथथी पडेलां, पृथ्वीपर पडेलां, पगे अडकेलां, सुकाएलां, खराब वस्त्रमा राखेलां, नालिथी नीचे धारण करेलां, पुष्ट लोकोथी स्पर्शित थएलां, कीडाथी खवाएलां विगेरे दूषणयुक्त श्रएलां पुष्पो जिनपूजामां वापरवां नहीं. जे माणस दूषणयुक्त पुष्पोथी जिनपूजा करे , तेने पण तेवुज मले . तेपर दृष्टांत कहे. कामरूप नामना नगरमा मातंगोना कुलमां एक दांतो सहित पुत्रनो जन्म भयो. एवी रीतनो तेने जोइ तेनो पिता तो नाशी गयो, अने तेथी ते पुत्रनी माता जयथी ते पुत्रने घरनी बहार गेडी श्रावी. एटलामां रयवाडीए चडेला राजाए ते बालकने जो तेने ले लीधो, अने पालीपोषीने मोटो को. पगी दीक्षा
SR No.022144
Book TitleUpdesh Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnamandir Gani, Shravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek Samiti
Publication Year
Total Pages208
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size13 MB
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