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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कोसला कौशिकीकच्छ कोसलको जीता था ( अनु० ४४ । ३८)। अश्वमेधके (आदि० १३३ । २३ के बाद ३५ तक )। द्रुपदके घोड़ेके पीछे जाते हुए अर्जुनने इस देशपर विजय पायी द्वारा इनकी पराजय ( आदि. १३७ । २४-२५)। थी (आश्व० ८३।४)। द्रुपदके पाण्डवोंके सम्बन्धी हो जानेपर इनका भयभीत कोसला (अयोध्या)-सुप्रसिद्ध पुरी, जहाँ ऋषभतीर्थमें और निराश होना ( आदि० १९९ । १४-१५)। स्नान और त्रिरात्र उपवाससे वाजपेय तथा सहस्र गोदान- कौरव्य-एक प्रमुख नाग (आदि० ३५ । १३)। का फल मिलता है (वन० ८५।१०-११)। कौशिक-(१) युधिष्ठिरकी सभामें विराजनेवाले एक ऋषि कोहल-( १ ) वेदविद्याके पारङ्गत विद्वान् ब्राह्मण, जो (सभा० ४ । १२)। हस्तिनापुर जाते समय श्रीकृष्णसे जनमेजयके सर्पसत्रके सदस्य थे ( आदि. ५३ । ९)। मार्गमें उनकी भेंट ( उद्योग० ८३ । ६४ के बाद दा० (२) एक ब्राह्मण, जिन्हें राजा भगीरथने एक लाख पाठ)। (२) एक प्राचीन ऋषि जो इन्द्र की सभामें सवत्सा गौएँ दान की थीं ( अनु० १३७ । २७)। विराजमान होते हैं (सभा० ७ । १८ के बाद दा० पाठ) (३) उत्तर दिशाका आश्रय लेकर रहनेवाले एक ऋषि, (३) जरासंधका एक मन्त्री, जिसका दूसरा नाम हंस सम्भव है, ये ही जनमेजयके सर्पसत्रके सदस्य बने हो था ( सभा० २२ । ३२-३३ ) ( देखिये हंस)। (अनु० १६५ । ४५)। (४) एक तपस्वी ब्राह्मण, इनकी क्रोधभरी दृष्टिसे कौकुलिका-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य. ४६ । बगुलीका भस्म होना ( वन० २०६। ५)। इनका १५)। पतिव्रतासे वार्तालाप ( वन० २०६ । १८)। इनका कौकुहक-दक्षिण भारतका एक जनपद ( भीष्म धर्मव्याधसे विविध धार्मिक विषयोंपर वार्तालाप (वन० ९।६०)। २०७ अ० से २१६ तक)। इनका घर लौटकर माता. कौणप-वासुकिके कुलमें उत्पन्न हुआ एक नाग, जो पिताकी सेवामें तत्पर होना (वन० २१६ । २३)। माताके शापसे पीड़ित हो विवशतापूर्वक सर्पसत्रकी आगमें (५) हैमवतीके प्रियतम पति, कुशिकवंशी विश्वामित्र होम किया गया था ( आदि० ५७ । ६)। (वन०८४।१४२-१४३, उद्योग० ११७। १३)। (६) एक सत्यवादी तपस्वी ब्राह्मण, जिसे लुटेरोंको कौणपासन-एक प्रमुख नाग ( आदि० ३५ । १४)। छिपे मनुष्योंका पता बतानेके कारण नरककी प्राप्ति हुई कौणिकत्स्य-एक वनवासी श्रेष्ठ द्विज, जो सर्पदंशनसे मरी (कर्ण० ६९ । ४६-५२)। हुई प्रमद्वराको देखने के लिये आये थे ( आदि० ८।२५)। कौशिककुण्ड-एक तीर्थ, यहाँ विश्वामित्रने उत्तम सिद्धि प्राप्त की थी (वन.८४ । १४२)। कौण्डिन्य-एक महर्षि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते थे (सभा० ४। १६)। कौशिकाचार्य-इस पदवीसे विभूषित राजा आकृति ( सभा० कौत्स-एक वृद्ध एवं विद्वान् ब्राह्मण, जो जनमेजयके २१ । ६१-६२) । (देखिये आकृति ) सर्पसत्रमें उद्गाता बनाये गये थे ( आदि० ५३ । ६)। कौशिकाश्रम-एक तीर्थ, जहाँ काशिराजकी कन्याने कठोर इन्हींको राजर्षि भगीरथने अपनी कन्या 'हंसी' का दान तप किया ( उद्योग०१८६ । २७)। किया था, जिससे वे अक्षय लोकको प्राप्त हुए ( अनु० कौशिकी-(१) एक नदी ( अनु० ९४ । ६) । १३७ । २६)। महर्षि विश्वामित्रद्वारा इसका निर्माण (भादि०७१। कौमोदकी-भगवान् श्रीकृष्णकी गदा, यह गदा खाण्डव ३०)।( जिसे आजकल कोसी' कहते हैं। यह नदी वन-दाहके अवसरपर वरुणने उन्हें भेंटमें दी थी पूर्वी-बिहारके कई जिलोंमें बह रही है । ) (२) एक (आदि० २२४ । २८)। पापनाशिनी नदी, इसमें स्नान करनेमात्रसे राजसूय यज्ञका कौरव-कुरुके पुत्र तथा कुरुकुलमें उत्पन्न होनेवाले पुरुष फल प्राप्त होता है (वन० ८४ । १३२, वन० ८७ । कौरव' कहलाते हैं । ( यद्यपि पाण्डव तथा धृतराष्ट्रपुत्र १३, भीष्म० ९ । २९)। यहाँ स्नानका फल ( अनु. दोनों ही कौरव कहलाते हैं तथापि पाण्डवोंका पृथक् ग्रहण २५ । ३१)। हो जानेसे कौरव' शब्द प्रायः दुर्योधन आदिके लिये ही व्यवहृत होता है। फिर भी पाण्डवोंके लिये भी इस कौशिकी-अरुणासङ्गम-एक तीर्थ, जहाँ स्नान और त्रिरात्र शब्दका प्रयोग हुआ ही है।) इनके द्वारा रङ्गभूमिमें उपवाससे पाप छूट जाते हैं ( वन० ८४ । १५६)। आचार्य और अस्त्रोंके पूजनपूर्वक अन-कलाप्रदर्शन कौशिकीकच्छ-कोसी नदीका कछार (सभा० ३० । २२)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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