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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलासक ( ९० ) कोसल तैयार करके रक्खा था ( सभा० ३ । २-९)। कैलास- जिसने वनमें जयद्रथ आदि साथियोंका द्रौपदीको परिचय पर्वत कुबेरके सभाभवनमें जाकर उनकी उपासना करता दिया था ( वन० २६५ अध्याय )। भीमसेनद्वारा है ( सभा० १० । ३१-३३ ) । व्यासजी कैलासपर इसका वध (वन० २७१ ।२६)। गये थे ( सभा० ४६ । १७)। राजा सगरने भी अपनी कोटितीर्थ-एक तीर्थ, जहाँ आचमन करनेसे अश्वमेध दोनों पत्नियोंके साथ जाकर कैलासपर तपस्या की थी यज्ञका फल मिलता है (वन० ८२ । १९, वन० ८४ । ( वन० १०६ । १०)। भगीरथने भगवान् शिवकी ७७ वन० ८५। ६१)। यह कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत है प्रसन्नताके लिये कैलासपर जाकर तप किया (वन. (वन०८३ । १७ वन०८३ । २००)। १०८ । २६ ) । कैलासपर्वत छ: योजन ऊंचा है । वहा कोटिश-वासकिकलमें उत्पन्न एक नाग (आदि०५७।५)। सब देवता आया करते हैं। उसके पास ही विशाला कोपवेग-एक महर्षि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते थे ( बदरिकाश्रम ) है । कुबेरभवनरूप कैलासपर असंख्य (सभा० ४। १६)। यक्ष, राक्षस, किन्नर, सुपर्ण, नाग और गन्धर्व रहते हैं (वन० १३१ । ११-१२ )। कैलास-शिखरके निकट कोलगिरि-दक्षिण भारतका एक पर्वत-कोलाचल, जहाँके ही कुबेरकी नलिनी है, जहाँ भीमसेन गये थे (वन. निवासियोंको सहदेवने जीता था (सभा० ३१ । ६८)। १५३ । १-२ ) । अन्य पाण्डवोंका भी वहाँ गमन कोलाहल-प्राचीन कालका एक सचेतन पर्वत, जिसने (वन० १५५ । २३)। कैलासपर्वतपर कुबेरको यक्ष कामवश दिव्यरूपधारिणी शुक्तिमती नदीको रोक लिया और राक्षसोंका राजा बनाया गया था ( उद्योग था (आदि० ६३ । ३५-३६)। उपरिचर वसुके द्वारा १११।")। अष्टावक्रजी कैलास होते हुए उत्तर इसपर पैरोंसे प्रहार (आदि. ६३ । ३६)। इसके द्वारा दिशाकी ओर गये । वहाँ कुबेरभवनमें उनका सत्कार शक्तिमती नदीके गर्भसे जुड़वीं संतानको उत्पत्ति हुआ था ( अनु० १९ । ३१)। सुरभिने देव-गन्धर्व (आदि० ६३ । ३७)। सेवित कैलासके सुरम्य शिखरपर तपस्या की ( अनु० कोलिक-विडालोपाख्यानमें आये हुए एक चूहेका ८३ । २८-३०)। नाम (उद्योग. १६०।३८)। कैलासक ( या कैलास )-एक कश्यपवंशीय नाग कोलिसर्प-एक जाति, जो पहले क्षत्रिय थी; किंतु ब्राह्मणों( उद्योग० १०३ । ११)। की कृपादृष्टि न मिलनेसे शूद्रत्वको प्राप्त हो गयी ( अनु० कैशिक-एक प्राचीन देश, जिसपर विदर्भनरेश भीष्मकने ३३ । २२)। विजय पायी थी ( सभा० १४ । २१)। कोल्लगिरेय-दक्षिणका एक देश, जिसे अर्जुनने अश्वमेधीय कोकनद (१) एक प्राचीन क्षत्रियनरेश, जो दिग्विजयके यशका रक्षा यज्ञकी रक्षाके समय जीता था ( आश्व० ८३ । ११)। समय अर्जुनसे भयभीत होकर उनकी शरणमें आया था कोशल-कोशलदेशीय क्षत्रिय, जो जरासंधके भयसे दक्षिण (सभा० २७ । १८)। (२) स्कन्दका एक सैनिक भाग गये थे (सभा० १४ । २७)। (शल्य० ४५। ६०)। (३) स्कन्दका एक सैनिक कोषा-एक नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा पीती है (शल्य० ४५ । ६१) । (४) स्कन्दका एक सैनिक (भीष्म० ९ । ३४)।। (शल्य० ४५ । ७४)। कोष्ठवान्-एक पर्वत, जो अन्य बहुतसे पर्वतोंका अधिपति कोकवक-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९।६१)। है (आश्व० ४३।५)। कोकामुख-एक तीर्थ, इसमें स्नानसे पूर्वजन्मकी स्मृति कोसल-एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ४०-४१, जाग्रत् होती है (वन० ८४ । १५८)। ५२)। पूर्वदिग्विजयके समय भीमसेनने उत्तर कोशलको कोकिलक-स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७३ )। जीता था (सभा० ३० । ३)। दक्षिण-दिग्विजयके समय कोङ्कण-एक दक्षिण भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ६०)। सहदेवने दक्षिण कोशलको जीतकर अपने अधिकारमें कर लिया था (सभा० ३१ । १२-१३) । पहले श्रीकृष्णने कोटरक-एक कश्यपवंशीय नाग (उद्योग० १०३ । १२)। भी इस जनपदपर विजय पायी थी (द्रोण० २१ । १५) कोटरा-(१) स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य. कोशलराज अभिमन्युद्वारा मारा गया था ( कर्ण. ४६ । १४ )। ( २ ) स्कन्दकी अनुचरी मातृका ५।२१)। दुर्योधनके लिये कर्णने इस देशको जीता था (शल्य० ४६ । १७)। ( कर्ण० ८ । १९ ) । यहाँका राजा क्षेमदर्शी था कोटिकास्य (कोटिक )-शिबिनरेश सुरथका पुत्र, (शान्ति० ८२।६)। अम्बाके स्वयंवरमें भीष्मने भी For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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