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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्ण ( ८७ ) कृष्णवेणा द्वारकामें भयंकर उत्पात देखकर भगवान् श्रीकृष्णका अन्धकवृष्णिनाथ, असित, आत्मा, अव्यक्त, अव्ययः यदुवंशियोंको तीर्थयात्राके लिये आज्ञा देना (मौसल. भोजराजन्यवर्धन, भूतेश्वर, भूतपति भूतात्मा, भूतेश, २ अध्याय ) । सात्यकि और प्रद्युम्नको मारा हुआ देख चक्रधर, चक्रधारी, चक्रगदाभृत्, चक्रगदाधर, चक्रगदाश्रीकृष्णका कुपित हो एक मुट्ठी एरका उठाना और भोज पाणि, चक्रपाणि, चक्रायुध, शैव्यसुग्रीववाहन, शम्भु, शङ्खतथा अन्धक कुलके प्रमुख योधाओंका संहार करना चक्रगदाधर, शङ्खचक्रगदाहस्त, शङ्खचक्रगदापाणि, ( मौसल. ३ । ३५-३७ )। साम्ब और गदके मारे शङ्खचक्रासिपाणि, शाङ्खचक्रगदाधर, शाङ्गचक्रासिपाणि जानेपर कुपित हुए श्रीकृष्णद्वारा समस्त यादवोंका संहार शार्ङ्गधनुर्धर, शार्ङ्गधन्वा, शाङ्गगदापाणि, शार्ङ्गगदासि(मौसल० ३। ४४-४७)। श्रीकृष्णका बलरामजीको । पाणि, शाङ्गों, शौरि, शूलभृत्, शूली, दाशाह, दशाईएक वृक्षके नीचे ध्यान लगाये बैठे हुए देखना और भर्ता, दशार्हाधिपति, दाशार्हकुलवर्धन, दाशार्हनन्दन, दारुकको अर्जुनके पास भेजकर संदेश कहलाना (मौसल. दाशाईनाथ, दाशार्हसिंह, दाशार्हवीर, दामोदर, देवदेव, ४ । १-३ )। इनका बलरामजीसे अपनी प्रतीक्षाके देवदेवेश, देवदेवेश्वर, देवकीमातः, देवकीनन्दन, देवकी लिये कहकर स्त्रियोंको कुटुम्बी जनोंके संरक्षणमें सौपनेके पुत्र, देवकीसुता देवकीतनय, गदाग्रज, गदपूर्वज लिये द्वारका जाना और पितासे अर्जुनके आनेतक गरुडध्वज, गोपाल, गोपेन्द्र, गोपीजनप्रिय, गोविन्द, स्त्रियोंका संरक्षण करनेकी बात कहकर स्वयं तपके लिये इलधरानुज, हरि, हृषीकेश, जनार्दन, कंसकेशिनिषूदन बलरामजीके पास जाने का विचार प्रकट करना ( मौसल. कंसनिषूदन, कौस्तुभभूषण, केशव, केशिहन्, केशिहन्ता, ४ । ७-१०)। उनका रोती हुई स्त्रियोंको आश्वासन केशिनिषूदन, केशिसूदन, महाबाहु, पीतवासा, रमानाथ, दे अर्जुनके आनेकी बात बताकर चल देना और वनके रामानुज, सङ्कर्षणानुज, सर्वदाशाईहर्ता, सर्वनागरिपुध्वज, एकान्त प्रदेशमें बलरामजीके पास जाकर उनके मुखसे सर्वयादवनन्दन, सत्य, सुपर्ण केतु, ता_ध्वज, तार्क्ष्यलक्षण) एक विशाल सर्पको निकलकर समुद्र की ओर जाते देखना त्रैलोक्यनाथ, त्रियुग, वासुदेव, वसुदेवपुत्र, वसुदेवसुत, (मौसल०४ | १२-१३)। बलरामजीके परमधाम- वसुदेवात्मज, व्रजनाथ, वृष्णिशार्दूल, वृष्णिश्रेष्ठ, वृष्णिगमनके पश्चात् उनका वनमें विचरना ! बीती बातों और कुलोद्वह, वृष्णिनन्दन, वृष्णिपति, वृष्णिप्रवर, वृष्णिप्रवीर, घटनाओंको याद करके उनपर विचार करना। गान्धारी वृष्णिपुङ्गव, वृष्णिसत्तम, वृष्णिसिंह, वृष्णिजीव, और दुर्वासाके कथनको भी ध्यानमें लाना और परम- वृष्ण्यन्धकपति, वृष्ण्यन्धकोत्तम, यादव, यादवशार्दूल, धामको जानेके लिये किसी निमित्तकी प्रतीक्षा करते हुए यादवश्रेष्ठ, यादवाया यादवनन्दन यादवेश्वर, यदुशार्दूल) योगयुक्त होकर पृथ्वीपर लेटना, जरानामक व्याधके यदुश्रेष्ठ, यदूद्वह, यदुकुलश्रेष्ठ, यदुकुलनन्दन, यदुबाणसे तलुओंमें घाव हो जानेपर अपने तेजसे प्रकाशित कुलोदह, यदुनन्दन, यदुप्रवीर, यदुपुङ्गव, यदुसुखावह, होते हए ऊर्ध्वलोकको जाना, वहाँ उनका स्वागत होना यदूत्तम, यदुवंशविवर्धन, यदुवर, यदुवीर, यदुवीर और इन्द्र आदि देवताओंसे मिलना ( मौसल.। मुख्य, योगेश्वर, योगीश, योगीश्वर, योगी इत्यादि । १८-२८)। अर्जुनद्वारा इनके शरीरका दाह-संस्कार होना कृष्णकर्णी--स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य. (मौसल. ७।३१)। दिव्यधाममें इनकी नारायणरूपसे ४६।२४)। स्थिति ( स्वर्गा० ५ । २४-२६)। इनकी पटरानियों से कृष्णकेश--स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ६१ )। रुक्मिणी, गान्धारी, शैव्या, हेमवती तथा जाम्बवती---इन कृष्णद्वैपायन-महर्षि पराशरके पुत्र-सत्यवतीनन्दन पाँचोंने पतिलोककी कामनासे अग्निमें प्रवेश किया । व्यास ( आदि. १ । १०, ५५ ) । हस्तिनापुर जाते सत्यभामा तथा अन्य दो देवियोंने तपस्याका निश्चय करके समय मार्ग में श्रीकृष्णसे भेंट ( उद्योग० ८३ । ६४ के वनमें प्रवेश किया (मौसल.७ । ७३-७४)। शेष सोलह हजार रानियाँ दस्युओंके हाथोंसे छूटकर सरस्वतीके __ बाद दाक्षिणात्य पाठ) (विशेष-देखिये व्यास)। जलमें कूद पड़ी और स्वर्गमें भगवान्से जा मिली (स्वर्गा० कृष्णपर्वत–कुशद्वीपका एक पर्वत, जो गौर' नामक ५। २५)।(इनकी सभी रानियोंसे दस-दस पुत्र उत्पन्न मैनसिलके पर्वतसे पश्चिमभागमें स्थित एवं नारायणको हुए थे । इनमें प्रद्युम्न, साम्ब, चारुदेष्ण आदि विशेष प्रिय है ( भीष्म० १२ । ४)। प्रधान हैं।) कृष्णवर्मा--अग्निदेवका एक नाम, जिसका आस्तीकने महाभारतमें आये हुए कृष्णके नाम-अच्युता जनमेजयके सर्पसत्रमें अग्निकी स्तुति करते हुए उच्चारण अधिदेव, अधोक्षज, आदिदेव, अज, अमध्य, अनादि, किया था (आदि०५५। १०)। अनादिमध्यपर्यन्त, अनादिनिधन, अनाद्य, अनन्त, कृष्णवेणा-दक्षिण भारतकी एक पवित्र नदी, जिसके For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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