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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्णा ( ८८ ) केरल देवकुण्ड (जातिस्मर ह्रद ) में स्नानसे पूर्वजन्मकी स्मृति मान--(१) एक दानव, कश्यपपत्नी दनुका पुत्र होती है( सभा० ९ । २०, वन० ८५। ३७, भीष्मः (आदि० ६५ । २४) । यही अमितौजा' नामक ९। २८)। यह अग्निका उत्पत्ति-स्थान है ( वन. पाञ्चाल क्षत्रिय वीरके रूपमें उत्पन्न हुआ था ( आदि० २२२ । २६)। ६७।११)। अमितौजा' पाण्डवपक्षका महारथी वीर कृष्णा -(१) द्रौपदी, जो यज्ञवेदीसे उत्पन्न हुई थी था। (२) युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान होनेवाले एक (आदि० ६३ । ११०) (विशेष---देखिये द्रौपदी)। राजा (सभा० ४ । २७ ) । कलिङ्गराज श्रुतायुधका (२) एक नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा पीती है मित्र । कौरवपक्षीय योद्धा (भीष्म० १७ । ३२)। (भीष्म० ९ । ३३)। (३) दुर्गाजीका एक नाम भीमसेनके साथ युद्ध और इनके द्वारा इसका वध (विराट० ६ । ९)। (४)स्कन्दकी अनुचरी मातृका (भीष्म० ५४ । ७७)। (३) युधिष्ठिरकी सभाको (शल्य०४६ । २२)। सुशोभित करनेवाले एक नरेश, जो पूर्वोक्त केतुमान्' से कृष्णात्रेय--एक प्राचीन ऋषि, जिन्होंने तपोबलद्वारा भिन्न थे (सभा०४ । ३२)। ये पाण्डवपक्षके योद्धा चिकित्साशास्त्र (आयुर्वेद ) का सबसे पहले ज्ञान प्राप्त थे, धृतराष्ट्रद्वारा इनकी वीरताका वर्णन ( द्रोण. किया (शान्ति० २१० । २१)। १०। ६४) । (४) द्वारकापुरीमें भगवान् श्रीकृष्णके एक प्रासादका नाम, जिसमें भगवान्की पत्नी सुदत्ताजी कृष्णानुभौतिक-एक महर्षि, जो उत्तरायणके आरम्भमें रहती थीं। (सभा० ३८१२९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ,पृष्ट शरशय्याशायी भीष्मजीको देखनेके लिये पधारे थे ८१५, कालम २)। (शान्ति० ४७ । ११)। कृष्णौजा-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ७५)। केतुमाल-जम्बूद्वीपके नौ वर्षों से एक, जो देवोपम पुरुषों और सुन्दरी स्त्रियोंकी निवासभूमि था, इसे अर्जुनने जीता केकय-(१) एक भारतीय जनपद (व्यास और था (सभा० २८ । ६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। यह शतलजके बीचका भूभाग ) (भीष्म० ९ । ४८)। द्वीप या वर्ष मेरुपर्वतके पश्चिम भागमें है, यहीं जम्बूखण्ड दशरथपत्नी कैकेयीके पिताका राज्य यहीं था, इसीसे वह प्रदेश है, जहाँके निवासी दस हजार वर्षोंकी आयुवाले कैकेयी कहलाती थी (वन० २७७ । १५)। (२) होते हैं ( भीष्म ६ । १३, ३१-३२) । यहाँके पुरुष (कैकय अथवा कैकेय) केकय देशके निवासी या अधिपति, सुनहले रंगके और स्त्रियाँ अप्सराओंके समान सुन्दरी राजा एवं राजकुमार विशेषतः केकयदेशीय पाँच राजकुमार, होती हैं। इन्हें कभी रोग-शोक नहीं होता (भीष्म० जो परस्पर भाई थे और पाण्डवपक्षमें सम्मिलित थे ६ । ३२-३३)। (वन० १२० । २६)। इनका द्रोणाचार्यके साथ युद्ध । केतुमाला-पश्चिममें जम्बूमार्गके अन्तमें एक तीर्थ (द्रोण० २१ । २३-२९)। ये द्रोणाचार्यद्वारा मारे (वन० ८९ । १५)। गये थे ( स्त्री० २५ । १५ ) । इनका दाह-संस्कार (स्त्री० २६ । ३६)। (३) दो केकय-राजकुमार केतुवर्मा-एक त्रिगर्तदेशीय राजकुमार, जो त्रिगर्तराज विन्द और अनुविन्द दुर्योधनके पक्षमें थे, जो सात्यकिद्वारा सूर्यवर्माका छोटा भाई था । यह आश्वमेधिक अश्वकी मारे गये थे (कर्ण० १३ । २०-३६ )। (४) एक रक्षाके लिये गये हुए अर्जुनके साथ लोहा लेकर उन्हींके सूतराज, जो इसी ( केकय ) नामसे विख्यात था। इसकी हाथों मारा गया (आश्व० ७४ । १४-१५)। दो मालव-कन्याएँ पत्नियाँ थी--बड़ी मालवीसे कीचक- केतुशृङ्ग-एक प्राचीन नरेश, जो कालके अधीन हो चुके उपकीचक पैदा हुए थे और छोटीसे कैकेयी सुदेष्णाका है (आदि०१।२३७)। जन्म हुआ था, जो राजा विराटसे ब्याही गयी थी केदार-कुरुक्षेत्रके अन्तर्गत एक तीर्थ, यहाँ स्नानसे पुण्य (विराट० १६ । दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ १८९३)। की प्राप्ति (वन० ८३ । ७२)। केतु-(१)एक ग्रह, एक ही राहुके शिरश्छेदसे सिर और धड़ केरल-(१) एक म्लेच्छ जाति, वशिष्ठकी होमधेनु' अलग-अलग हो गये थे (आदि० १९। ६-८)। यह नन्दिनीने अपने मुँहके फेनसे केरल, हूण आदि दस राहुके शरीरका धड़ या पुच्छभाग माना गया है। अर्जुन प्रकारके म्लेच्छोंकी सृष्टि की ( आदि० १७४ । ३८)। और कर्णके ध्वजकी उपमा राहु और केतुसे दी गयी है (२) एक दक्षिण भारतीय जनपद (भीष्म०९। (कर्ण० ८७ । ९२)। (२) एक प्राचीन ऋषि, ५८) । वहाँके नरेश और निवासी भी केरल ही कहे इन्हें स्वाध्यायद्वारा स्वर्गकी प्राप्ति (शान्ति० २६ । ७)। गये हैं । सहदेवने केरल देशको दूतोद्वारा ही वशमें कर (३) भगवान् शिवका एक नाम (अनु०१७ । ३८)। लिया और कर देनेको विवश किया (सभा०३१ । For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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