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कृष्ण
( ८६ )
कृष्ण
(शान्ति० ५१ । १०-१८)। धर्मोपदेशके लिये भीष्म- को वरदान (शान्ति. ५२ । १४-२१)। इनकी मातश्चर्या (शान्ति० ५३ । १-९)। भीष्मद्वारा ही धर्मोपदेश होनेका कारण बताते हुए उन्हें उपदेश करनेको कहना (शान्ति. ५४ । २५-३९) । भीष्मसे युधिष्ठिरके लज्जित और भयभीत होनेका कारण बताना (शान्ति० ५५ । ११-१३)। जाति-भाइयोंमें फूट न पड़नेके विषयमें नारदजीसे पूछना (शान्ति०८१ अध्याय)। इन्हींसे सम्पूर्ण भूतोंकी उत्पत्तिका वर्णन करना (शान्ति० २०७ अध्याय)। उग्रसेनसे नारदजीके गुणोंका वर्णन करना ( शान्ति. २३० । ४-२४)। अर्जुनको अपने नामोंकी व्युत्पत्ति बताना (शान्ति. ३४१ । ४-५१)। अर्जुनसे सृष्टि की प्रारम्भिक अवस्थाका वर्णन करना (शान्ति० ३४२ । ३-२१)। अर्जुनसे अपने नामों की व्याख्या करना ( शान्ति. ३४२१६७-११६)। युधिष्ठिरसे महादेवजीके माहात्म्यकी कथाके प्रसंगमें उपमन्युकी कथा सुनाना और अपनी तपस्या तथा दर्शन पानेका वृत्तान्त बताना (अनु० १४ अध्याय) भगवती उमासे आठ वरदान माँगना (अनु० १५।६)। उपमन्युके साथ शिवजीके विषयमें वार्तालाप ( अनु० १६ अध्याय )। इनके द्वारा भगवान् शिवकी महिमाका वर्णन (अनु० १८ । ६१-८३)। नारदजीसे पूजनीय पुरुषोंके लक्षण पूछना ( अनु० ३१ । २१)। पृथ्वीसे गृहस्थोंके पापनाशक अनुष्ठानके विषयमें प्रश्न करना ( अनु० ३४ । २१)। गिरगिटयोनिसे नृगका उद्धार करना (अनु०७०।७)। नृगसे उनकी दुर्गतिका कारण पूछना (अनु० ७०1८-९) । ब्राह्मणका धन न लेनेके विषयमें घोषणा करना (अनु० ७०। ३१) । पृथ्वी देवीसे गृहस्थधर्मके विषयमें पूछना (अनु. ९७ । ४)। पर्वतको जलाकर पुनः उसे प्रकृतिस्थ करना (अनु० १३९ । १६-२१)। ऋषियोंके पूछनेपर इसका रहस्य बताना (अनु० १३९ । ३०-४४)। भीष्मजीद्वारा इनकी महिमाका वर्णन (अनु० १५८ अध्याय)। युधिष्ठिरको ब्राह्मणकी महिमा सुनानेके प्रसंगमें प्रद्युम्नके पूछनेपर दुवोंसाका चरित्र कहना (अनु० १५९ अध्याय)। युधिष्ठिरके प्रति शिवजीकी महिमाका वर्णन करना (अनु० १६० अध्याय से १६३ अध्यायतक) । भीष्मको देह- त्यागके लिये अनुमति प्रदान करना (अनु० १६७ । ४६-४७)। भीष्मके लिये शोक करती हुई गङ्गाको आश्वासन देना (अनु० १६८ । ३०-३५)। शोकाकुल युधिष्ठिरको समझाना (आश्व० २।२-८)। युधिष्ठिरको विविध दृष्टान्तोंद्वारा समझाना (आश्व० ११ अ० से १३ अध्यायतक ) । अर्जुनसे अपने द्वारका जानेका
प्रस्ताव करना (आश्व० १५। १२-३४)। अर्जुनके पूछनेपर पुनः गीताका ज्ञान सिद्ध महर्षि और काश्यपके संवादरूपसे सुनाना ( आश्व० १६ । ९ से १८ अध्याय तक)। पुनः ब्राह्मणगीताके द्वारा ज्ञानोपदेश करना (आश्व० २० अध्यायसे ३४ अध्यायतक) । अर्जुनके प्रति गुरु-शिष्यके संवादरूपमें ब्रह्मा और महर्षियोंके प्रश्नोत्तररूप मोक्षधर्मका वर्णन ( आश्व० ३५ अध्यायसे ५१ अध्यायतक)। युधिष्ठिरकी आज्ञा पाकर सुभद्रा
और सात्यकिके साथ द्वारकाको प्रस्थान (आश्व० ५२ । ५४-५८)। उत्तङ्क मुनिके पूछनेपर कौरवों-पाण्डवोका समाचार सुनाना ( आश्व० ५३ । १५-१८)। उत्तङ्क मुनिसे अध्यात्मतत्त्वका वर्णन करना (आश्व० ५४ । २१९)। उत्तङ्क मुनिको विश्वरूपका दर्शन कराना (आश्व० ५५ । ४-६)। उत्तङ्क मुनिको दर्शन देकर चाण्डालरूपधारी इन्द्रका रहस्य बताते हुए मरुदेशमें उत्तङ्क नामक मेघोंद्वारा वर्षा होनेका वर देना ( आश्व० ५५ । २६-३७)। रैवतक पर्वतपर होनेवाले महोत्सवमें सम्मिलित होना ( आश्व० ५९ | ३-४ )। उस महोत्सवसे अपने महलमें पधारना ( आश्व० ५९ । १६)। वसुदेवजीके पूछनेपर महाभारतयुद्धका वृत्तान्त सुनाना (आश्व० ६० । ६-३६)। वसुदेवजीके पूछनेपर अभिमन्यु-वधका वृत्तान्त सुनाना ( आश्व०६१। १५४२)। इनके द्वारा अभिमन्युका श्राद्ध-कर्म ( आश्व० ६२ । २-५)। इनका हस्तिनापुरमें आगमन और उत्तराके मृतबालकको जिलाने के लिये कुन्तीकी इनसे प्रार्थना ( आश्व० ६६ अध्याय )। उत्तराके मृतबालकको इनके द्वारा जीवनदान (आश्व० ६९ । १६-२४)। उत्तराके उक्त शिशुका नामकरण (आश्व० ७० । १११२)। श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको अश्वमेध यज्ञके लिये सम्मति देना (आश्व०७१ । २३-२६)। श्रीकृष्णका बलराम आदिके साथ आगमन और युधिष्ठिरको अर्जुनका संदेश सुनाना तथा उनके अधिक कष्ट उठानेका कारण बताना ( आश्व० ८६। १३-२१)। ब्राह्मणोंको दक्षिणा देनेके सम्बन्धमें युधिष्ठिरको व्यासजीकी आज्ञा माननेके लिये कहना (आश्व० ८९ ॥ १८-१९)। इनका युधिष्ठिरसे विदा लेकर बन्धुओसहित द्वारकाको लौटना (आश्व० ८९ । ३७-३८)। भगवान् श्रीकृष्णद्वारा युधिष्ठिरको वैष्णवधर्म-सम्बन्धी विविध विषयोंका उपदेश ( आश्व० ९२। दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ६३०८ से ६३५२ तक)। शापकी बात सुनकर भगवान् श्रीकृष्णका वृष्णिवंशियोंकी ऐसी ही भवितव्यता है। ऐसा कहकर नगरमें प्रवेश करना (मौसल० १ । २३-२४ )। मदिरानिर्माण-निषेधकी आज्ञा जारी करना ( मौसल. १ । २९-३१)।
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