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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कुन्द ( ७३ ) १४ ) | कुन्तीका ध्यान लगाकर बैठना और दावाग्निमें जलकर भस्म हो जाना ( आश्रम० ३७ । ३१-३२ ) । कुन्तीकी हड्डियोंका गङ्गामें डाला जाना और उनके लिये श्राद्धकार्य सम्पादित होना ( आश्रम ० ३९ अध्याय ) । कुन्ती और माद्री दोनों पत्नियोंके साथ राजा पाण्डुका महेन्द्रभवन में जाना ( स्वर्गा० ५ । १५ ) । कुन्द - धाताद्वारा स्कन्दको दिये गये पाँच पार्षदोंमेंसे एक ( शल्य० ४५ । ३९ ) । कुन्दापरान्त - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ४९ ) । कुपट-एक दानव, कश्यपपत्नी दनुका पुत्र ( आदि० ६५ । २६ ) । कुबेर - पुलस्त्यकुमार विश्रवा मुनिके पुत्र, जो राक्षसोंके राजा थे, लङ्कामें निवास करते थे । नरयान ( पालकी ) पर चढ़ने के कारण ' नरवाहन' तथा राजाओंके भी राजा होनेसे 'राज- राज' कहलाते थे । इनके पिता विश्रवा इनपर कुपित थे । पिताके क्रोधको जानकर इन्होंने उनकी सेवा और प्रसन्नता के लिये तीन राक्षस-कन्याओं को नियुक्त कर दिया था ( आदि० २७५ | १ - ३ ) । इनकी पत्नीका नाम भद्रा है ( आदि० १९८ । ६ ) । इनका उत्तर दिशामें कैलासपर यक्षों और राक्षसोंके आधिपत्यपर अभिषेक किया गया ( वन० १११ । १०-११ ) । ब्रह्माजीसे वरदान पाकर रावणका कुबेरको जीतना, इन्हें लङ्कासे निष्कासित करना और इनके पुष्पक विमानको छीन लेना । फिर कुबेरद्वारा रावणको शाप ( वन० २७५ । ३२-३५ ) । खाण्डवदाह के समय युद्ध में श्रीकृष्ण और अर्जुनपर प्रहार करनेके लिये इन्होंने गदा हाथमें ली थी (आदि० २२६ । ३२ ) । नारदजीद्वारा इनकी दिव्य सभाका वर्णन ( सभा० १० अध्याय ) । इनके द्वारा अर्जुनको अन्तर्धानास्त्रका दान ( वन० ४१ । ३८) । इनकी गन्धमादनपर पाण्डवोंसे भेंट और युधिष्ठिर तथा भीमसेनको सान्त्वना ( वन० १६१ । ४३-५१ ) । इनका अपनेको अगस्त्यसे शाप मिलनेकी कथाका युधिष्ठिर के प्रति वर्णन ( वन० १६१ । ५४-६२)। इनके द्वारा युधिष्ठिर और भीमसेनको उपदेश और सान्त्वना (वन० १६२ अध्याय ) । इनका श्रीरामके लिये अभिमन्त्रित जल भेजना ( वन ० २८९ । ९ ) । स्थूणाकर्णको स्त्री ही बने रहने का शाप देना ( उद्योग० १९२ । ४५-४७) । यक्षोंके अनुरोधसे उसके शापका अन्त बताना (उद्योग ० १९२ । ५० ) । कुबेर शुक्राचार्यसे एक चौथाई धन पाकर उसमेंसे सोलहवाँ भाग मनुष्यों के लिये अर्पित करते हैं (भीम० ६ । २३ ) | पृथ्वीदोहनके समय ये दोग्धा थे ( द्रोण० ६९ । २४ ) | कुबेरकी म० ना० १० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुमारक सरस्वतीके तट पर तपस्या, कुबेरतीर्थकी उत्पत्ति तथा कुबेरको अनेक वरोंकी प्राप्ति । कुबेरने वहाँ धनका आधिपत्य, रुद्रदेवके साथ मित्रता, देवत्व, लोकपालत्व, नलकूबर नामक पुत्र तथा पुष्पक विमान प्राप्त किये ( शल्य० ४७ । २८ - ३१ ) । महाराज मुचुकुन्दके साथ युद्ध और वार्तालाप ( शान्ति० ७४ । ४ - १८ ) । उशनाद्वारा अपने धनका अपहरण होनेपर इनका शिवजीकी शरण में जाना ( शान्ति ० २८९ । १२ ) । इनके द्वारा अष्टावक्र मुनिका स्वागत-सत्कार ( अनु० १९ । ३७-५० )। महाभारतमें आये हुए कुबेर के नाम-अलकाधिप, धनद, धनदेश्वर, धनाधिगोता, धनाधिप, धनाधिरति, धनाध्यक्ष, धनेश्वर, धनपति, धनेश, द्रविणपति, गदाधर, गुह्यकाधिप, गुह्यकाधिपति, कैलासनिलय, नरवाहन, निधिप, पौलस्त्य, राजराज, राजराट्, राक्षसाधिपति, राक्षसेश्वर, वैश्रवण, वित्तगोता, वित्तपति, वित्तेश, यक्षाधिप, यक्षाधिपति, यक्षपति, यक्षप्रवर, यक्षराट, यक्षराज, यक्षराक्षसभर्ता, यक्षरक्षोधिप इत्यादि । कुबेरतीर्थ- सरस्वती नदी -सम्बन्धी एक तीर्थ, इसकी उत्पत्तिका प्रसंग ( शल्य० ४७ । २५-३१ ) । कुब्जाम्रक - यात्रामात्रसे सहस्र गोदानका फल और स्वर्ग देनेवाला एक तीर्थ ( बन० ८४ । ४० ) । कुमार - ( १ ) 'अनल' नामक वसुके पुत्र स्कन्द, जिनका जन्मकाल में सरकंडों के वनमें निवास था ( आदि० ६६ । २३ ) । इनका 'कार्तिकेय' नाम होनेका कारण ( आदि० ६६ । २४ ) । कुमारग्रह अथवा कुमार स्कन्द के पार्षद, जो वज्रका प्रहार होनेपर कुमार के शरीर से प्रकट हुए थे ( वन० २८८ । १) । ( २ ) भारतवर्ष - का एक पूर्वीय जनपद, जहाँके राजा श्रेणिमान्को दिग्विजय के समय भीमसेनने परास्त किया था ( सभा० ३० । १ यहाँके राजकुमार राजसूययज्ञमें युधिष्ठिरके लिये भेंट लाये थे ( सभा० ५२ । १४ - १७) । (३) एक प्राचीन राजा, जिसे पाण्डवोंकी ओरसे रणनिमन्त्रण भेजा गया था ( उद्योग० ४ । २४ ) । द्रोणाचार्यके साथ युद्ध और उनके द्वारा इसका परास्त होना ( द्रोण० १६ । २१–२५ ) । (४) 'सनत्कुमार' अथवा कुमार सनत्सुजात ऋषि, जिन्होंने किसी समय कहा था कि "मृत्युकी सत्ता है ही नहीं' ( उद्योग ० ४१ । २ ) । ( ५ ) गरुड़की प्रमुख संतानों में से एक ( उद्योग ० १०१ । १३ ) । For Private And Personal Use Only कुमारक- कौरव्यकुल में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्पसत्र में जल भरा था ( आदि० ५७ । १३) ।
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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