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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुन्ती ( ७२ ) कुन्ती - ( आदि. १६७1८)। इनके द्वारा द्रौपदीरूप भिक्षाका मिलकर उपभोग करनेके लिये पाण्डवोंको उपदेश ( आदि० १९. । २)। द्रुपदके रनिवासमें इनका सम्मान (आदि. १९३ । ९) । व्यासजीके पूछनेपर द्रौपदीके विवाहके सम्बन्धमें इनका निर्णय (आदि. १९५ । १८)। इनके द्वारा द्रौपदीको आशीर्वाद एवं शिक्षा ( आदि. १५८ । ४) । विदुरका द्रुपदके भवनमें आकर कुन्ती, द्रौपदी तथा पाण्डवोंके लिये नाना प्रकारके रत्न और धन भेंट करना (आदि० २०५।१४) विदुरजीका महलमें जाकर कुन्तीके चरणों में प्रणाम करना। कुन्तीका किसी तरह मेरे पुत्रोंके प्राण बचे हैं। ऐसा कहकर दुःख प्रकट करना, विदुरजीको ही उनके जीवनका रक्षक बताकर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना और भविष्यमें क्या होगा-इसके लिये शोकाकुल होना । विदुरका उन्हें पुनः आश्वासन देना और उन सबको साथ लेकर हस्तिनापुर जाना (आदि० २०६ । ९ के बाद दा० पाठसहित ११ तक)। गान्धारीका कुन्ती और द्रौपदीको राजा पाण्डुके महलमें ठहरानेके लिये विदुरको आदेश देना (आदि० २०६ । २२ के बाद दाक्षि पाठ)। इन्द्रप्रस्थमें श्रीकृष्णका कुन्तीसे जानेके लिये। विदा माँगना और कुन्तीका उन्हींको अपना तथा अपने पुत्रोंका रक्षक बताकर सदा सुधि बनाये रखनेके लिये उनसे प्रार्थना करना (भादि० २०६ । ५१ के बाद दा० पाठ ) । अर्जुनका सुभद्रासहित आकर माता कुन्तीको प्रणाम करना । कुन्तीका सुभद्राको हृदयसे लगाकर उसका मस्तक सूंघना (आदि० २२० । १४-२१)। विदुरका कुन्तीको अपने घरमें रखनेके लिये पाण्डवोंसे कहना और पाण्डवोंका उनके अनुरोधको स्वीकार करना (सभा० ७८ । ५-८) । द्रौपदीका कुन्तीसे वनगमनके लिये विदा लेना और कुन्तीका उसे आश्वासन देते हुए जानेकी आज्ञा तथा कर्तव्यका उपदेश दे स्वयं भी पुत्रोंके पीछे विलाप करती हुई जाना (सभा० ७९ । १-२९)। विदुरका कुन्तीको आश्वासन देना ( सभा०७९ । ३१)। कुन्तीका दुर्वासाकी सेवाके लिये उद्यत होना (वन० ३०४ । १-११)। इनकी सेवासे प्रसन्न होकर दुर्वासाका इन्हें मन्त्र प्रदान करना (वन० ३०५। २०) । इनके द्वारा सूर्यदेवका आवाहन (वन. ३०६ । ७) । इनकी सूर्यदेवसे कवच-कुण्डलविभूषित पुत्रकी माँग (वन० ३०७ । १७)। इनका नवजात शिशुको पिटारीमें रखकर नदीमें छोड़ देना (वन. ३०८ । २२)। श्रीकृष्णके मिलनेपर उनसे पाण्डवोंका समाचार पूछकर इनका विलाप करना (उद्योग० ९० । ५-९०)। श्रीकृष्णद्वारा पाण्डवोंको उत्साहवर्धक संदेश देना और विदुलोपाख्यान सुनाकर उन्हें युद्धके लिये उत्तेजित करना (उद्योग. १३२५ से उद्योग. १३७ । २३ तक)। विदुरकी बातोंसे चिन्तित होकर इनका कर्णके पास जाना ( उद्योग० १४४ । २६)। कर्णको अपना प्रथम पुत्र बताते हुए उसे पाण्डवपक्षमें मिल जानेके लिये प्रेरित करना ( उद्योग. १४५ अध्याय)। कुन्तीका पाण्डवोंसे मिलना और द्रौपदीको आश्वासन देना (स्त्री० १५। ३३-३८)। कर्णको भी जलाञ्जलि देनेके लिये कहना और पाण्डवोंके सामने कर्णका अपने गर्भसे जन्म लेनेका रहस्य प्रकट करना (स्त्री० २७ १७-१३)। कर्णके लिये चिन्तित युधिष्ठिरको समझाना (शान्ति० ६ । ४-८)। इनके द्वारा अभिमन्युवधके शोकसे पीड़ित सुभद्रा और उत्तराको आश्वासन (आश्व० ६१ । ३३-४०)। इनकी उत्तराके मृत बालकको जिलानेके लिये श्रीकृष्णसे प्रार्थना (आश्व० ६६।१४-२६)। इनके द्वारा गान्धारीकी सेवा (आश्रम०१ । २३-२४)। वनमें जाती हुई गान्धारी तथा धृतराष्ट्रके साथ इनका भी जाना । ये आगे-आगे गान्धारीका हाथ पकड़े जाती थीं (आश्रम १५। १-९)। पाण्डवोंके अनुरोध करनेपर भी कुन्तीका वनमें जानेसे न रुकना । युधिष्ठिरका सहदेवका ख्याल रखने, कर्णको याद रखने तथा द्रौपदी एवं भीमसेन आदिका भी प्रिय करनेका आदेश देना (आश्रम १६ । ७-१६) । युधिष्ठिर आदि पुत्रोंका लौट चलनेके लिये अत्यन्त आग्रह तथा द्रौपदी और सुभद्राका अपने पीछे-पीछे आना देखकर आँसू पोंछती हुई कुन्तीका पाण्डवोंको उनके अनुरोधका उत्तर देना (आश्रम १६ । १७ से १७ अध्यायतक) । धृतराष्ट्र और गान्धारीके समझानेपर भी कुन्तीका न लौटना तथा गान्धारी और धृतराष्ट्र आदिके साथ उनका गङ्गातटपर निवास (आश्रम० १८ । ४-१६)। वनमें कुन्तीके पास उनके पुत्रोंका आना । कुन्तीका रोते हुए सहदेवको हृदयसे लगा लेना ( आश्रम० २४ । ७-१०) । कुन्तीका उन पुत्रहीन दम्पतिको अपने साथ खींचकर लाना (आश्रम० २४ । १२)। कुन्तीका व्यासजीसे कर्णके जन्मका गुप्त रहस्य बताकर अपने उस पुत्रके दर्शनकी इच्छा प्रकट करना (आश्रम २९ । ४९ से ३० । १८ तक)। युधिष्ठिर और सहदेवका कुन्तीसे उनकी सेवाके लिये वनमें रहनेकी इच्छा प्रकट करना और कुन्तीका उन्हें हृदयसे लगाकर तपस्यामें विघ्न न पड़े, इसके लिये लौट जाने का आदेश देना (आश्रम० ३६ । २८४२)। कुन्तीकी वनमें कठोर तपस्या । एक मासतक उपवास करके एक दिन भोजन करना (आश्रम०३७ । For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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