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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कश्यप काञ्ची मान होते हैं (सभा० ११ । १८)। इनका प्रह्लादके (२) एक नाग, जो अर्जुनके जन्म-महोत्सवमें उपस्थित पूछनेपर उन्हें प्रश्नका असत्य उत्तर देने या यथार्थ बात हुआ था (आदि. १२२ । ७१)। जानते हुए भी कुछ उत्तर न देनेके दोष बताना तथा कहोड-महर्षि उद्दालकके शिष्य और जामाता। अष्टावक्रके पिता दोनों पक्षोसे मिले होनेके कारण गवाही न देनेवाले (वन० १३२ । ३-८)। इनका उद्दालकका शिष्य गत्राहको प्राप्त हुए दोषका वर्णन करना ( सभा० ६८ । होकर विनीत भावसे उनकी परिचर्या में संलग्न रहना । ७३-७५ )। युधिष्ठिरके साथ तीर्थयात्रा करनेवाले इनके द्वारा की गयी सेवाके महत्त्वको समझकर गुरुका ऋषियों में इनका भी नाम आया है (वन० ८५ । इन्हें शीघ्र ही सम्पूर्ण वेद-शास्त्रोंका ज्ञान कराना और ११९)। ब्रह्माजीने यज्ञमें सारी पृथ्वी कश्यपको दान कर अपनी कन्या सुजाताका इनके साथ विवाह कर देना दी; इससे पृथ्वीको बड़ा खेद हुआ और वह रसातलको (वन. १३२ । ९)। अपने गर्भस्थ बालकद्वारा अपने जाने लगी। तब कश्यपजीने अपनी तपस्यासे पृथ्वीको अध्ययनकी कटु आलोचना सुनकर इनका उसे आठ प्रसन्न किया (वन. ११४।१८-२२)। परशुराम अङ्गोंसे वक होनेका शाप देना ( वन० १३२ । १०. जीका कश्यपको भूमिदान करके स्वयं उनका महेन्द्रपर्वत ११)। गर्भवती सुजाताका इनसे धनकी याचना करना पर निवास (वन. ११७ । १४)। कश्यपपत्नी (वन० १३२ । १५)। इनका जनकके दरबारमें जाना अदितिके गर्भसे भगवान्का वामन अवतार (वन. और वहाँ शास्त्रार्थी पण्डित बन्दीसे हारकर जलमें डुबाया २७२ । ६२)। परशुरामजीसे सम्पूर्ण पृथ्वीको दक्षिणा जाना ( वन० १३२ । १५ )। इनका जलसे बाहर रूपमें लेकर उन्हें पृथ्वीसे बाहर निकल जानेका आदेश आना और अष्टावक्रको समङ्गा नदीमें स्नान करनेका देना (द्रोण०७० । १९-२१)। इनका द्रोणाचार्यके आदेश देना (वन० १३४ । ३२-३९)। पास जाकर उनसे युद्ध बंद करनेको कहना (द्रोण० १९० । ३५-४०)। स्कन्दके जन्म-समयमें इनका कहोल-इन्द्रकी सभामें विराजमान होनेवाले एक प्राचीन आगमन (शल्य. ४५।१०)। परशुरामजीसे दक्षिणा- ऋषि (सभा० ७।१७ के बाद दाक्षिणात्य पाठ )। रूपमें पृथ्वीका दान लेना (कान्ति०४९ । ६४)। हस्तिनापुर जाते हुए श्रीकृष्णसे मार्गमें इनकी भेंट परशुरामजीको राज्यके बाहर भेजना (शान्ति ४१। (उद्योग० ८३ । ६४ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। ६५-६६ )। रसातलको जाती हुई पृथ्वीको ऊरुओंके काक-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९.६४)। सहारे रोकना ( शान्ति० ४९ । ७२ ) । पुरोहितके काकी-(१) ताम्राकी लोक-विख्यात पुत्री । इसने विषयमें पुरूरवाको उपदेश (शान्ति. ७३ । ७-३२)। उल्लुओंको जन्म दिया ( आदि०६६ । ५६-५७)। कश्यपजीका दूसरा नाम अरिष्टनेमि' भी है (शान्ति. (२) शिशुओंकी सात मातृकाओमेसे एक ( वन. २०८ । ८)। इनका भीष्मको वराह-अवतारकी कथा सुनाना ( शान्ति० २०९ । ६)। ये मूलभूत कश्यप २२८ । १०)। गोत्रके प्रवर्तक हैं (शान्ति. २९६ । १७-१८)। काक्षीवान-गौतम ऋषिके पुत्र । चण्डकौशिक ऋषिके महर्षि कश्यपके अङ्गोंसे तिलकी उत्पत्ति ( अनु०६६। पिता ( सभा० १७। २२ २१ । ५ )। ये १०)। इनका वृषादर्भिसे प्रतिग्रहका दोष बताना युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान होते थे (सभा० । ( अनु. ९३ । ४.)। अरुन्धतीसे अपने शरीरकी दुर्बलताका कारण बताना (अनु. ९३ । ६५)। यातु- काश्रन-मेरुद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक, धानीसे अपने नामका परिचय देना (अनु० ९३ । ८६)। अनु० ९३ । ८६)। दूसरा मेघमाली था (शल्य. ४५। ४७)। मृणालकी चोरीके विषयमें शपथ खाना (अनु. ९३ । काश्चनाक्ष-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य०४५। ५७)। ११६-११७)। अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर शपथ खाना (अनु. ९४ । १८)। कुबेरके सात काश्चनाक्षी-नैमिषारण्यमें बहनेवाली सरस्वतीका नाम गुरुओमसे एक ये भी हैं, ये उत्तर दिशाका आश्रय लेकर (शल्य० ३८ । १९)। रहते हैं, इनके कीर्तनसे कीर्ति और कल्याणकी प्राप्ति काञ्ची-( मद्राससे ३७ मील दक्षिण-पश्चिममें स्थित एक होती है ( अनु० १५० । ३८-३९)। इनका तपोबलसे नगर, जो प्राचीन समयमें चोल राजाओंकी राजधानी था। पृथ्वीको धारण करना ( अनु० १५३ । २)। इस समय इसे काञ्जीवरम्' कहते हैं । यह सात मोक्षमहाभारतमें आये हुए कश्यपजीके नाम-देवर्षि, दायिनी पुरियो में से एक है।) यहाँके योद्धा दुर्योधनकी काश्यप, महर्षि, मारीच, प्रजापति, आरिष्टनेमि आदि । सेनामें विद्यमान थे ( उद्योग० १६१।२१)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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