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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्माषी कश्यप प्रार्थना ( आदि० १७६ ॥ ३३ )। वशिष्ठद्वारा इनकी कशेरक-कुबेरकी सभामें उपस्थित हो उनकी सेवामें संलग्न पत्नीके गर्भसे अश्मक' नामक पुत्रका उत्पादन (आदि० रहनेवाले बहुसंख्यक यक्षोंमेंसे एक (सभा० १०१५)। १७६ । ४७)। शापग्रस्त-अवस्थामें इनके द्वारा मैथुनके कशेरु-त्वष्टा' प्रजापतिकी एक सुन्दरी पुत्री, जिसे चौदह लिये उद्यत हुए ब्राह्मणका भक्षण (आदि. १८१।१६)। वर्षकी अवस्थामें नरकासुर हर लाया था । सोलह हजार ब्राहाणपत्नी आङ्गिरसीद्वारा इन्हें अपनी पत्नीके साथ निन्यानबे अन्य कुमारियोंके साथ इसका भी भगवान् समागम करते ही मृत्यु होने एवं वशिष्ठद्वारा ही पुत्र श्रीकृष्णके साथ विवाह हुआ । इन सब कुमारियोंने प्राप्त होनेका शाप ( आदि. १८१ । २०)। महर्षि भगवान् श्रीकृष्णसे देवर्षि नारद तथा वायुदेयके भविष्य पराशरद्वारा दयावश सौदासकुमार सर्वकर्माकी प्राण-रक्षा कथनकी सत्यता बताते हुए उनके दर्शनमात्रसे अपनेको (शान्ति. १४९ । ७६-७७)। इनका नाम मित्रसह कृतकृत्य बताया और उनके प्रति अपनी सकामभावना और इनकी रानीका नाम मदयन्ती था। उसे इन्होंने प्रकट की । फिर भगवान्ने इन्हें अपनाया ( सभा० ३८ वशिष्ठकी सेवामें अर्पित की ( शान्ति. २३४ । ३०, २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८०४-८११)। अनु० १३७ । १८)। इनका वशिष्ठजीसे गौके विषयमें कशेरुमान ( कसेरुमान् )-एक यवनजातीय असुर, पूछना ( अनु० ७८ । ३)। कुण्डलकी याचनाके जो श्रीकृष्णद्वारा मारा गया ( सभा०३८ । २९ के लिये गये हुए उत्तङ्क मुनिके साथ इनका संवाद बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८२४,कालम २ वन० १२ । ३२)। (आश्व० ५७ । १-१८) आश्व० ५८ । ४-१६)। कश्यप-(१) एक देवर्षि, ब्रह्मर्षि और प्रजापति, जो कल्माषी-एक नदी, जिसके आस-पास भ्रमण करते हुए मरीचि ऋषिके पुत्र और दक्ष प्रजापतिके जामाता हैं राजा द्रपद ब्राह्मणोंकी एक बस्तीमें पहुँचे और याज- (भादि०६५।११)। ये कद्रू और विनताके पति हैं उपयाजसे मिले थे (आदि. १६६ । ५-६)। इसीके (आदि० १६ । ६)। ब्रह्माजीने इन्हें सौंपर क्रोध न किनारे निवास करनेवाले भृगुजीने युधिष्ठिरको उपदेश करनेके लिये कहा और उनका विष उतारनेवाली विद्या देकर अनुगृहीत किया था (सभा० ७८ । १६)। प्रदान की ( आदि० २० । १४-१५)। कश्यपजीका ( आचार्य नीलकण्ठने कल्माषी' का अर्थ 'कृष्णवर्णा गरुड़से कुशल पूछना और उनके भोजन माँगनेपर एक यमुना' किया है।) हाथी और कछुएको खानेके लिये आदेश देना । विभावसु कल्याणी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । ७)। और सुप्रतीक मुनिके वैर और शापकी कथा सुनाकर कवच-इन्द्रसभामें विराजमान होनेवाले एक ऋषि (सभा० उन्हींके हाथी और कछुआ होनेकी बात बताना और ७।१७ के बाद दाक्षि० पाठ)। ये पश्चिम दिशामें उनके विशाल शरीर एवं युद्धका वर्णन करना (आदि. २९ । १३--३२) । तपस्यामें लगे हुए पिता कश्यपका निवास करते हैं ( शान्ति० २०८ । ३०)। गरुड़को दर्शन (आदि. ३० । ११)। इनका पुत्रकी कवची-धृतराष्ट्रका पुत्र ( आदि. ६७ । १०३ )। कामनासे यज्ञ करना (आदि.३१ । ५)।वालखिल्योंभीमसेनद्वारा इसका वध (कर्ण० ८४ । २-६)। के प्रसादसे इनका विनताके गर्भसे अरुण और गरुड़को कवि-(१) महर्षि भृगुके पुत्र (आदि०६६ । ४२)। जन्म देकर गरुड़को पक्षियोंके 'इन्द्र' पदपर अभिषिक्त अगस्त्यजीके कमलोंकी चोरी होनेपर शपथ करना (अनु० करना (आदि० ३१ । १२-१५)। अदिति, दिति, ९४ । ३२)। (२) बृहस्पतिके पाँचवें पुत्र एक दनु, काला, दनायु, सिंहिका, क्रोधा, प्राधा विश्वा, अग्नि, जो बड़वानलरूपसे समुद्रका जल सोखते हैं। विनता कपिला, मुनि, कद्र-ये दक्षकी तेरह कन्याएँ इनकी शरीरके भीतर ऊपरकी ओर गतिशील होनेके कारण इन्हें पत्नियाँ हैं (आदि० ६५ । १२)। इनकी संतानोंका 'उदान' और 'ऊर्ध्वभाक' भी कहा गया है (वन. वर्णन (आदि० ६५ । १४-५४)। इनसे देवता २१९ । २०)। (३) वरुणके यज्ञमें ब्रह्माजीके और असुर दोनों उत्पन्न हुए (आदि०६६ । ३४)। शुक्रका हवन होनेसे जो तीन पुरुष प्रकट हुए उनमेंसे इन्होंने ज्येष्ठ पत्नी अदितिके गर्भसे इन्द्र भादि बारह एक । शेष दो भृगु और अङ्गिरा थे। ब्रह्माजीने कविको आदित्योंको जन्म दिया (भादि० ७५ । १.)। कश्यप ही अपना पुत्र स्वीकार किया। इस कविके कवि काव्य' और सुरभिके सहवाससे नन्दिनी नामक गौकी उत्पत्ति आदि आठ पुत्र हुए जो वारुण कहलाते हैं। ये सभी (आदि० ९९ । ८-१४) । अर्जुनके जन्म-समयमें प्रजापति हैं (अनु०८५ । १३२-१३४)। (४) उपस्थित हुए सात ऋषियोंमें ये भी थे (आदि. १२२ । ब्रह्मपुत्र कविके पुत्र (अनु. ८५। १३३)। (५) ५१)। परशुरामजीका इन्हें समूची पृथ्वी दानमें देना एक विश्वेदेव (अनु० ९१ । ३६)। (आदि. १२९ । १२)। ये ब्रह्माजीको सभामें विराज For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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