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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कर्णनिर्वा www.kobatirth.org ( ५९ ) कर्णवेष्ट - एक क्षत्रिय राजा जो 'क्रोधवश' संज्ञक दैत्यके अंशसे उत्पन्न थे (आदि० ६७ । ६०-६६ । पाण्डवोंकी ओरसे इन्हें रणनिमन्त्रण भेजा गया था ( उद्योग ० ४। १५)। कर्णश्रवा-अजातशत्रु युधिष्ठिरका आदर करनेवाले एक महर्षि (का० २६ । २३ ) । कर्णाटक - एक दक्षिण भारतीय जनपद ( भीष्म ० १ । ५९)। ( भीष्म० ७७ 1 4 ) । भीमसेनद्वारा इसका नभ ( भीष्म० ७७ । ३६ ) । कर्णनिर्वाक - नानप्रस्थधर्मका पालन करके स्वर्गको प्राप्त हुए कलविङ्क - ( १ ) एक तीर्थ, जहाँ स्नान करने अनेक एक ब्रहार्षि ( शान्ति० २४४ । १८ ) । कर्णपर्व - महाभारतका एक प्रमुख पर्व । वरण - ( १ ) प्राचीन कालके मनुष्यों की एक जातिजो दक्षिण समुद्र तटपर रहती थी । सहदेवने इस जातिके लोगोंको परास्त किया था ( सभा० ३१ । ६७ ) । ( जो अपने कानोंसे ही अपने शरीरको ढक लें, उन्हें 'कारण' कहते है । प्राचीन कालमें ऐसी जातिके लोग थे जिनके कान पैरोंतक लटकते थे ।) इस जाति के लोग युधिष्ठिरको भेंट देनेके लिये आये थे (सभा० ५२।१९ ) । (२) दक्षिण भारतका एक जनपद । यहाँके योद्धा दुर्योधनकी सेना में थे ( भीष्म० ५१ । १३ ) । surator स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । २४)। तीर्थों में स्नानका फल मिलता है ( अनु० २५ । ४३ ) । (२) एक प्रकारका पक्षी, जिसकी उत्पत्ति मरे हुए त्रिशिराके सुरापायी मुखसे हुई ( उद्योग ०९ । ४२ ) । कलश - एक कश्यप-वंशी नाग ( उद्योग० १०३ । ११ ) । कलशपोतक - एक प्रमुख नाग ( आदि० ३५ । ७ ) । कलशी - एक तीर्थ, जहाँ आचमन करनेसे अग्निष्टोम राजका फल मिलता है ( वन० ८३ । ८० ) । कलशोदर - स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७२ ) । कला - कालपरिमाण ( शल्य० ४५ । १५ ) । कलाप - एक महातेजस्वी ऋषि) जिनका राजसूय यज्ञके अन्तमें राजा युधिष्ठिर ने पूजन किया सभा० ४५ । ३८ के बाद दाक्षिणात्यपाठ पृष्ठ ८४३, कालम १ ) । कलि - ( १ ) सोलह देवगन्धर्वोर्मिसे एक । कश्यप-पत्नी 'मुनि' के पुत्र ( आदि० ६५ । ४४ ) | ये अर्जुन के जन्म महोत्सव में भी पधारे थे ( आदि० १२२ । ५७ ) । ( २ ) सत्ययुग आदिके क्रमसे प्रवृत्त होनेवाला चौथा युग ( शान्ति ० ६९ 1 ८१-२ ) । इसका इन्द्रके साथ संवाद दमयन्तीने राजा नलको अपना पति चुन लिया यह इन्द्रसे सुनकर इसका कुपित होना और उसे दण्ड देनेको उद्यत हो जाना ( वन ५८ । ६ ) । नलके शरीर में प्रविष्ट होकर उन्हें राज्यसे वञ्चित करनेका संकल्प करना और इसमें इसकी द्वापर से सहायता के लिये प्रार्थना ( वन० ५८ । १३-१४ ) । इसका राजा नलके शरीर में प्रवेश ( वन० ९९ । ३ ) ! पुष्करको जुआ खेलने के लिये तैयार करना ( वन० ५९ । ४-५ ) । नलको दुःख देनेवाले ( कलियुग ) के लिये दमयन्तीका शाप (वन० ६३ । १६-१७ ) । कर्कोटक नाग विपदग्ध हो कलियुगका बड़े दुःखसे नलके शरीर में रहना ( वन० ६६ । १५-१६ ) । यूत विद्याका रहस्य जाननेके अनन्तर नलके शरीरने कलियुग का निकलना और शाधाग्नि से मुक्त होना ( वन० ७२ । ३०-३१ ) । कलिका अपने स्वरूपको प्रकट करना और नलका उसे शाप देनेका विचार करना ( वन० ७२ । ३२ | भयभीत एवं कम्पित हुए कलियुगका हाथ जोड़कर राजासे क्रोध रोकने की प्रार्थना करना, इन्द्रसेन जननी दमयन्तीके शापसे अपने पीडित होनेकी चर्चा करना, नलकी शरण में जाना और नलका कीर्तन करने वालोंको अपनेसे ( कलिसे ) भय न होनेकी घोषणा करना और डरकर के वृक्ष में समा जाना ( वन० ७२ । काका यारह विख्यात अप्सराओंमेंसे एक, जिसने अर्जुनके जन्म समय आकर नाच-गान किया था ( आदि० ४२२ । ६४-६६ ) । वर्णिकान सुमेरु पर्वत के उत्तर भाग में समस्त ऋतुओं के फूलोंगे भरा हुआ एक दिव्य एवं रमणीय वन ( भीष्म० ३ । २४ ) । कर्ता - एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ | ३४ ) । - ( १ ) एक प्रमुख नाग ( आदि० ३५ । १६ ) । (२) एक प्राचीन ऋषि जो ब्रह्मसभा में रहकर ब्रह्माकी उपासना करते है ( सभा० १३ | १९ ) । इक्कीस प्रजापतियों में इनका नाम आया है (शान्ति० २३४ । ३६३७ )। ( ३ ) एक राजर्षि, जो विरजा के पोत्र तथा कीर्तिमानके पुत्र थे। इनके पुत्रका नाम अव था शान्ति० ५५ । ९०९१ ) | कईमिलक्षेत्र - समाके निकटका एक क्षेत्र जहाँ राजा भरतका अभिषेक हुआ था ( वन० १३५ | १ ) । कर्य एक माचीन देश जिसके राजाको भीमसेनने जीता था ( सभा० ३० | २४ ) | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कलि For Private And Personal Use Only कल- पितरोंका एक गण । ये ब्रह्मसभा में रहकर ब्रह्माजी की उपासना करते हैं ( सभा० ११ । ४७ ) ।
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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