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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कर्ण www.kobatirth.org ( ५८ ) 1 चत्रको चर्चा ( कर्ण ० ५। २३-२४ ) । सेनापति के लिये प्रस्ताव करनेपर दुर्योधनको आश्वासन ( कर्ण० १० । ४०-४५ ) । सेनापति-पदपर अभिषेक ( कर्ण० ३० । ४३) । इसका कौरव सेनाका मकरव्यूह बनाकर युद्धके लिये प्रस्थान ( कर्ण ० ११ (१४) | इसके द्वारा पाण्डवसेना का संहार ( कर्ण० २१ । १८ - २४ ) । भागते हुए नकुलके गलेमें धनुष फँसाकर उन्हें पकड़ना और जीवित छोड़ देना ( कर्ण० २४ । ४५-५६ ) । सात्यकिके साथ इसका युद्ध ( कर्ण० ३० अध्याय I दुर्योधनसे अपनी युद्धसम्बन्धी व्यवस्था के लिये कहना ( कर्ण० ३१ । ३५-६९ ) । शल्यको सारथि बनाकर युद्धके लिये प्रस्थान ( कर्ण० ३६ । २४-२५ ) । इसकी आत्मप्रशंसा ( कर्ण० ३७ । १३ - ३१ ) | अर्जुनका पता बतानेवालेको पुरस्कार देनेकी घोषणा ( कर्ण० ३८ अध्याय ) । शल्यको फटकारते हुए मद्रनिवासियों की निन्दा करना और उन्हें मारने की धमकी देना ( कर्ण० ४० अध्याय ) । शल्यको फटकारते हुए अपनेको परशुरामजी तथा एक ब्राह्मणद्वारा प्राप्त शापोंकी बात बताना ( कर्ण० ४२ अध्याय ) | आत्मप्रशंसापूर्वक शल्यको फटकारना ( कर्ण ० ४३ अध्याय ) । इसके द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियोंकी निन्दा करना (कर्ण० ४४ से ४५ अध्यायतक)। इसके द्वारा पाञ्चालोंका संहार ( कर्ण० ४६ । २१-२२ ) । पाण्डव सेनाका संहार ( कर्ण ३८ । ९-१७ ) । कर्णपुत्र सुषेण और चित्रसेनद्वारा पिताके रथ के पहियोंकी रक्षा, वृषसेनद्वारा उसके पृष्ठभागकी रक्षा ( कर्ण० ४८ । १८-१९ ) । भीमसेनद्वारा कर्णपुत्र भानुसेनका वध ( कर्ण० ४८ । २७ ) । कर्गद्वारा युधिष्ठिरपर आक्रमण ( कर्ण० ४८ । ६३ ) । युधिष्ठिर के साथ युद्ध में इसका मूच्छित होना ( कर्ण ० ४९ । २१ ) | इसके द्वारा युधिष्ठिरके चक्ररक्षक चन्द्रदेव और दण्डधारका वध ( कर्ण० ४९ । २७ ) । युधिष्ठिर को परास्त करके उनका तिरस्कार करना ( कर्ण० ४९ । ४८-५९ ) । भीमसेनद्वारा इसकी पराजय ( कर्ण० ५० । ४७ ) । भीमसेन के साथ इसका घोर संग्राम ( कर्ण० ५१ से अध्यायतक ) । इसके द्वारा पाञ्चाल, चेदि और केकय वीरोंका भीषण संहार ( कर्ण० ५६ । ३८— ६९ ) । धृष्टद्युम्न के साथ युद्ध ( कर्ण० ५९ । ७-१४ ) । इसके द्वारा शिखण्डीकी पराजय ( कर्ण० ६१ । २३ )। युधिष्ठिरको घायल करके युद्धसे विमुख कर देना ( कर्ण० ६२ । २९-३१ ) । इसके द्वारा नकुल, सहदेव और युधिष्ठिरकी भीषण पराजय ( कर्ण० ६३ अध्याय ) | दुर्योधनकी प्रेरणा से इसका भार्गवास्त्र प्रकट करना (कर्ण० ६४ । ४७ ) । उत्तमौजाद्वारा कर्णपुत्र सुषेणका वध Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only कर्ण ( कर्ण० ७५ । ९ ) । इसके द्वारा पाण्डवसेवाका भीषण संहार ( कर्ण० ७८ अध्याय ) । अर्जुनके पराक्रमके विषय में शल्यसे वार्तालाप ( कर्ण० ७९ । ४९-७० ) 1 अर्जुन और भीमसेनद्वारा खदेड़े हुए धृतराष्ट्र-पुत्रको इसका शरण देना ( कर्ण० ८१५१ ) । इसके द्वारा केकयराजकुमार विशोकका वध ( कर्ण० ८२ । ३ ) । केकय-सेनापति उग्रकर्माका वध 400 221 4 ) I सात्यकिद्वारा कर्णपुत्र प्रसेनका वध (कर्ण० ८२ । ६ )। इसके द्वारा धृष्टद्युम्नके पुत्रका वध ( कर्ण० ८२ । ९ ) । इसका भीमसेनके भय से भीत होना ( कर्ण० ८४ । ७-८ ) । अर्जुनद्वारा कर्णपुत्र वृषसेनका वध ( कर्ण० ८५ । ३६)। शल्यसे वार्तालाप ( कर्ण० ८७ । १०१-१०३ ) | अर्जुनके साथ द्वैरथ युद्ध ( कर्ण० ८९ अध्याय ) । कर्णके सर्पमुख वाणसं अर्जुनके किरीटका गिरना ( कर्ण० ९० । (३३) । रथका पहिया बैँस जानेसे उसे निकालनेके लिये इसका रथसे उतरना और बाण न चलाने के लिये अर्जुनसे अनुरोध करना ( कर्ण० ५० १०५-११६ ) । अर्जुनद्वारा इसका वध (कर्ण० ९१ । ५० ) । कर्णका दाह-संस्कार ( स्त्री० २६ । ३६ ) । ब्राह्मणद्वारा इसे शाप प्राप्त होनेका प्रसंग ( शान्ति० २ । २३-२६ )। इसे ब्रह्मास्त्र की प्राप्ति और परशुरामजीका शाप ( शान्ति ० ३ अध्याय ) । कलिङ्गराजकी कन्याका दुर्योधनद्वारा अपहरण होने पर इसके द्वारा समस्त राजाओंकी पराजय ( शान्ति० ४ । १७-२० ) । इसके बल पराक्रमका वर्णन ( कर्ण० १५ अध्याय ) । इसके द्वारा जरासंघकी पराजय ( कणο ५ । ४ ) । इसके द्वारा मालिनी और चम्पानगरीकी प्राप्ति ( कर्ण० ५ । ६-७ ) । इसके कुण्डलदान की चर्चा (अनु० १३७ । ९ ) । कुन्तीका व्यासजीके सम्मुख कर्णके जन्मप्रसङ्गकी चर्चा और इसे देखनेकी इच्छा व्यक्त करना ( आश्रम० ३० अध्याय ) । कर्ण सूर्यका अंश था ( आश्रम ० ३१ । १४ ) । व्यासजीके आवाहन करनेपर कर्णका भी प्रकट होना ( आश्रम० ३२ । ९ ) । स्वर्ग में जाकर इसका सूर्यदेवमें मिल जाना ( स्वर्गा० ५।२० ) । महाभारतमें आये हुए कर्णके नाम - आधिरथि, आदित्यनन्दन, आदित्यतनय, अङ्गराज, अनेश्वर, अर्कपुत्र, भरतर्षभ, गोपुत्र, कौन्तेय, कुन्तीसुतः कुरूद्वह कुरुपृतनापति, कुरुवीर, कुरुयोध, पार्थ, पूषात्मज, राधासुतः राधात्मज राधेय, रविसूनु, सौति, सावित्र, सूर्य, सूर्यपुत्र, सूर्यसम्भवः सूतः सूतनन्दन, सूतपुत्र, सूतसूनुः सूतमुत, सूततनय, सूतात्मज, वैकर्तन, वैवस्वत, वसुषेण, वृष । ( २ ) धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( आदि० ६७ । ९५९ आदि० ११६ । ३ ) । भीमसेनद्वारा इसपर आक्रमण
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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