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अक्षर
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( २ )
अक्षर-अक्षर पुरुष ( भीष्म० ३९ । १६ ) । अक्षीण - महर्षि विश्वामित्र के पुत्रोंमेंसे एक (अनु० ४ । ५० ) । अक्षौहिणी - परिगणित संख्यावाले रथों, घोड़ों, हाथियों और पैदलोंसे युक्त चतुरङ्गिणी सेनाका नाम ( विशेष परिचय देखिये आदि० २ । २२ से २६ तक ) । अगस्त्य - मित्रावरुण के पुत्र एक ब्रह्मर्षि, जिन्हें 'कुम्भज' भी कहते हैं (शान्ति० ३४२ । ५१ ) । इन्होंने यज्ञविघ्नकारी पशुओं पर आक्रमण करके उन्हें मार भगाया था (आदि० ११७ | १४ ) । इनके द्वारा अग्निवेशको धनुर्वेद की शिक्षा प्रात हुई थी ( आदि० १३८ । ९ ) । इनका पितरोंके उद्धारार्थ विवाह करनेका विचार ( वन० ९६ । १९ ) । इन्होंने अपनी पत्नी बनाने की इच्छासे अपने ही द्वारा रची गयी एक दिव्य स्त्रीको तपस्वी विदर्भराजके यहाँ उनकी पुत्रीरूपसे दे दिया था ( वन० ९६ । २१ ) । विदर्भराजकुमारी लोपामुद्रासे इनका विवाह ( वन० ९७।७)। इनकी गङ्गाद्वारमें पत्नी सहित तपस्या (वन० ९७ । ११ ) । लोपामुद्रासे प्रेरित होकर इनका धन-संग्रहके लिये प्रस्थान ( वन० ९७ । २५ ) । इनका श्रुतर्वा ब्रघ्नश्व तथा त्रसदस्युसे धन माँगना ( वन० ९८ । ४, ९, १५ ) । इनके द्वारा वातापिका भक्षण ( वन० ९९ । ६ ) । इनकी इवलसे धनकी याचना ( वन० ९९ | १२ ) । इनका लोपामुद्रा के गर्भ से पुत्र उत्पन्न करना ( वन० ९९ । २५ ) । देवताओं द्वारा इनकी स्तुति ( वन० १०३ । १५ – १८ ) । इनका विन्ध्यपर्वतको बढ़ने से रोकना ( वन० १०४ ॥ १२-१३ ) । इनके द्वारा समुद्रका शोषण ( वन० १०५ । ३-६ ) । इनसे राक्षस मणिमान् तथा कुबेरको शाप प्राप्त होना ( वन० १६१ । ६० - ६२ ) । इनका इन्द्रसे नहुपके पतनका वृत्तान्त सुनाना ( उद्योग० अध्याय १७ ) । इनके द्वारा वानप्रस्थाश्रमका पालन ( शान्ति० २४४ ॥ १६) । इनके शाप से नहुषका पतन (शान्ति० ३४२ । ५१) । कमलोंकी चोरी हो जानेपर इनका सारगर्भित प्रवचन ( अनु० ९४ । ९-१३ ) | नहुप के अत्याचारके विषय में भृगुजीसे इनका वार्तालाप (अनु० ९९ । १६-२१ ) । नहुपके द्वारा इनका रथमें जोता जाना ( अनु० १०० । १८-१९ ) । वायुद्वारा इनके प्रभावका वर्णन इनके क्रोधसे दग्ध होकर दानवोंका अन्तरिक्षसे गिरना ( अनु० ११५ । १ - १३ ) । अगस्त्यजीके द्वारा द्वादशवार्षिक यज्ञका अनुष्ठान और उसमें इनकी तपस्याका अद्भुत प्रभाव ( आश्व० अ० ९२ ) ।
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अगस्त्यतीर्थ-दक्षिण समुद्र के समीपवर्ती तीर्थं । पाँच नारीतीर्थों में एक ( आदि० २१५ । ३ ) । यहाँ तीर्थयात्रा के अवसरपर अर्जुनका आगमन और ब्राह्मणके शापसे ग्राह
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अग्नि
बनकर रहनेवाली अप्सरा ( वर्गाकी सखी) का अर्जुनद्वारा उद्धार ( आदि ० २१६ | २१ ) | ( वन० ८८ । १३ तथा ११८ । ४ ) में भी इस तीर्थका नाम आया है । अगस्त्यपर्वत - (१) मद्रास प्रान्तके तिनेवली जिलेका अगस्त्यकूट नामक पर्वत, जो ताम्रपर्णी नदीका उद्गमस्थान है ( - हिंदी महाभारतका परिशिष्ट पृष्ठ १ ) | ( २ ) किसीकिसीके मतमें यह कालंजर पर्वतका उपपर्वत है |
अगस्त्यवट - हिमालय के पासका एक पुण्यक्षेत्र । तीर्थयात्राके अवसरपर यहाँ अर्जुनका आगमन हुआ था ( आदि ० २१४ । २ ) ।
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अगस्त्यसरोवर ( आगस्त्यत्तर ) - पूर्वोक्त अगस्त्यतीर्थंका ही नाम अगस्त्य सरोवर है ( वन० ८२ । ४४ ) तथा (वन ० ८८ । १३) । विशेष परिचय के लिये देखिये अगस्त्यतीर्थ । अगस्त्याश्रम - ( १ ) पञ्चवटीके पासका एक पुण्यक्षेत्र, जो नासिक से २४ मील दक्षिणपूर्व की ओर है। इसे आजकल 'अगस्तिपुरी' कहते हैं ( वन० ८७ । २०६ ९६ । १ ) (२) प्रयागके अन्तर्गत एक तीर्थविशेष अगस्त्याश्रम' है । महाभारत, वनपर्वमें इसीका वर्णन जान पड़ता है । यहीं लोमशके साथ युधिष्ठिर पधारे थे ( वन ० ८७ ।२०; ९६ । १ ) । अग्नि पाँच महाभूतोंमेंसे एक तथा उसके अभिमानी देवता । ये भगवान् के मुख से उत्पन्न हैं । भृगुपत्नी पुलोमाके सम्बन्धमें इनका निर्णय देना ( वन० ५ । ३१-३४) । महर्षि भृगु ने इनको सर्वभक्षी होने का शाप दिया (बन० ६ । १४ ) । झूठी गवाही देने तथा सत्य बात न बोलनेपर सात पीढ़ियोंतक के नाश होने के सम्बन्धमें इनका वचन ( वन० ७ । ३-४ ) । भृगुके शापसे कुपित होकर इनका अन्तर्धान होना एवं ब्रह्माजीका इनको आश्वासन देना ( वन० ७ । १२-२५) । राजा श्वेतकिके द्वादशवर्षीय यश निरन्तर घृतपान करने से इनको अजीर्णताका रोग होना ( वन० २२२ । ६७ ) । अपने अजीर्णको मिटाने के लिये इनकी ब्रह्माजीसे प्रार्थना ( वन० २२२ । ६९ ) । खाण्डववन जलाने के लिये इनको ब्रह्माका आदेश ( वन० २२२ । ७७ ) । खाण्डववनको जलाने के कार्य में श्रीकृष्ण और अर्जुनसे प्रार्थना करनेके लिये इनको ब्रह्माजीकी प्रेरणा ( वन० २२३ । १० ) । खाण्डववनको दग्ध करने में सहायता के लिये इनकी श्रीकृष्ण और अर्जुनसे प्रार्थना ( वन० २२२ । १० ) । गाण्डीव धनुष, चक्र एवं दिव्यरथके लिये इनकी वरुणसे प्रार्थना ( वन० २२४ । ४ ) । इन्होंने अर्जुनको गाण्डीव धनुष, अक्षय तरकम तथा दिव्य रथ प्रदान किये और श्रीकृष्णको सुदर्शनचक्र दिया ( आदि० २२४ | १४ ) । इनके द्वारा खाण्डववनका