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श्रीहरिः
महाभारतकी नामानुक्रमणिका संक्षिप्त परिचयसहित
अंश
अक्षयवट
१७७ । १२)। परशुरामजीको भीष्मके साथ युद्ध करने के अंश-कश्यपके द्वारा अदितिके गर्भसे उत्पन्न बारह आदित्यों
लिये कहना (उद्योग० १७८ । १५)। भीष्मके साथ मेंसे एक (आदि० ६५। १५)। ये अर्जुनके जन्मोत्सवमें युद्धमें परशुरामजीका सारथ्य करना ( उद्योग० १७९ । पधारे थे (आदि० १२३ । ६६) । खाण्डव-वन-दाहके
९)। बाणशय्यापर पड़े हुए भीष्मजीके पास आये हुए युद्धमें इन्द्रकी ओरसे युद्धके लिये इनका आगमन ऋषियोंमें एक ये भी थे (अनु० २६ । ८)। (आदि० २२६ । ३५) । इनके द्वारा स्कन्दको पाँच अकृतश्रम-वानप्रस्थ-धर्मका पालन करनेवाले एक मुनि पार्षद प्रदान किये गये (शल्य० ४५ । ३४)। शान्तिपर्वके (शान्ति० २४४ । १७)। २०८ वें अध्यायमें तथा अनुशासनपर्वके ८६ और १५१ अकर-यदुवंशान्तर्गत सात्वतवंशीय श्वफल्कके पुत्र, जिन्हें वें अध्यायोंमें भी इनका नाम आया है ।
दानपति भी कहते हैं । ये वृष्णिवीरोंके सेनापति थे अंशावतरणपर्व-आदिपर्वके अध्याय ५९ से ६४ तकके (आदि० २२० । २९)।(इनकी माताका नाम गान्दिनी' विषयका नाम ।
और पत्नीका नाम सुतनु' था, वह आहुककी पुत्री थीअंशुमाली-सूर्यका एक नाम ( सभा० ११ । १८)।
पुराणान्तरसे ) द्रौपदीके स्वयंवरमें इनका आगमन अंशुमान् (१) सगरके पौत्र तथा असमञ्जसके पुत्र । इनके
(आदि. १८५। १८)।सुभद्राहरणके समय रैवतक
पर्वतपर होनेवाले उत्सबमें ये भी थे (आदि० २१८1१०)। प्रयत्नसे यज्ञकी पूर्ति (अनु० १०७ । ६१) । इनपर महात्मा कपिलकी कृपा (अनु० १०७ । ५६-५८)।
सुभद्राके लिये श्रीकृष्णके साथ दहेज लेकर गये थे इनका राज्याभिषेक (अनु. १०७ । ६४)। इनका अपने
(आदि० २२० । २९)। ये उपप्लव्य नगरमें अभिमन्युके
विवाहके अवसरपर आये थे (विराट० ७२ । २२)। पुत्र दिलीपको राज्य देकर स्वर्गगमन (अनु० १०७ । ६६)। (२) द्रौपदीके स्वयंवरमें पधारे हुए एक राजाका
अक्रूर और आहुकमें बड़ा वैर था और ये दोनों श्रीकृष्ण
को अपने विरोधीका पक्षपाती समझकर उनसे मन-ही-मन नाम ( आदि० १८५ । ११)। (३) एक विश्वेदेवका नाम (अनु० ९१ । ३२)।(४) भोजराज अंशुमान्,
असंतुष्ट रहते थे । इससे श्रीकृष्णको बड़ी चिन्ता थी जो द्रोणाचार्यद्वारा मारे गये थे। इनकी चर्चा कर्णपर्व
(शान्ति० ८१ । ९-११) । सभापर्वके ४, वनपर्वअध्याय ६ श्लोक १४ में आयी है।
के१८, ५१; मौसलपर्वके ६ तथा स्वर्गारोहणपर्वके ५ वें
अध्यायोंमें भी इनका नाम आया है। ये विश्वेदेवों में मिल अकम्पन-सत्ययुगका एक राजा । नारदजीके साथ उसका
गये थे। संवाद (द्रोण. ५२ । २६ )। नारदजीके उपदेशसे उसका शोकरहित होना (द्रोण. ५४ । ५२, शान्ति.
अक्रोधन-पूरुवंशी अयुतनायीके पुत्र । इनकी माता थी २५६ । ७ से २५८ अ० तक)।
पृथुश्रवाकी पुत्री कामा । इनकी पत्नी थी कलिङ्गराजकुमारी
करम्भा । इनके पुत्रका नाम 'देवातिथि' था (आदि. अकर्कर-एक नागका नाम (आदि० ३५ । १६)।
९५ । २१)। अकृपार-इन्द्रद्युम्न सरोवरमें रहनेवाला एक चिरजीवी कच्छप (वन० १९९ । ८) । इसने इन्द्रद्युम्नकी लुप्त कीर्तिका
अक्ष-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य० ४५ । ५८)। भूमिपर प्रसार किया था।
अक्षप्रपतन-आनर्त देशके अन्तर्गत एक स्थान, जहाँ श्रीअकृतव्रण-परशुरामजीके प्रिय शिष्य और सखा । इनके
कृष्णने गोपति और तालकेतु नामक असुरोंको मारा था
(सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ पृष्ठ ८२४)। द्वारा युधिष्ठिरसे परशुरामोपाख्यानका वर्णन (वन० ११५ से ११७ अ०तक)। इनका श्रीकृष्णके हस्तिनापुर जाते समय
अक्षमाला ( अरुन्धती )-बसिष्ठकी पत्नी ( उद्योग. मार्गमें उनसे भेंट करना ( उद्योग०८३।६४ के बाद)। ११७ । ११)। (देखिये अरुन्धती) होत्रवाहनको परशुरामजीके आगमनकी सूचना देना और अक्षयवट-गयाके अन्तर्गत एक त्रिभुवनविख्यात तीर्थ । अम्बाका परिचय पछना ( उद्योग०१७६।११-४३)। (वन०८४॥ ८३,९५। १४)।( कहते हैं,यहाँ अक्षयअम्बाको भीष्मसे ही बदला लेनेकी सलाह देना (उद्योग वटवृक्ष है, जिसका प्रलयकालमें क्षय नहीं होता।) म. ना०१
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