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( ६ )
मङ्किगीताके रूपमें नियतिवादका जो विवेचन है, वह बौद्ध और जैन-ग्रन्थोंमें उल्लिखित मङ्खलिगोसाल के सिद्धान्तोंसे भी अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान करता है । महाभारतकी इस प्राचीन सामग्रीका जो शान्ति पर्वके कितने ही अध्यायोंमें उपनिबद्ध है, अभीतक कोई सुन्दर विवेचन नहीं हुआ । प्राचीन कालमें मॠिषिके नियतिवाद और बृहस्पतिके लोकायत दर्शन या प्रत्यक्षवादका — जिसे विदुरनीतिके अनुसार तादात्विक दृष्टि भी कहते थे – बहुत प्रचार था । ययाति और धृतराष्ट्र-जैसे राजर्षियोंको महाभारत में ही नियतिवादी कहा गया है । इसी प्रकार महात्मा विदुर और भगवान् श्रीकृष्ण प्रज्ञावादी दर्शनके, जिसे 'बुद्धियोग' भी कहा गया है, प्रतिपादनकर्ता थे । महाभारतकी यह सामग्री उसकी भंडार- कोठरियों में छिपे हुए ज्ञान रत्न हैं । आशा है कालान्तर में इनका वित्रेचन करनेवाले ग्रन्थोंकी रचना होगी। नाग्द-राजनीति, कणिक-नीति, विदुर-नीति आदि प्रकरण राजशास्त्र एवं लोकके व्यावहारिक नीतिशास्त्रके अद्भुत ग्रन्थ हैं । इसी प्रकार महर्षि सनत्सुजातद्वारा कथित सनत्सुजातीय नामक अध्यात्मप्रकरण महाभारतका अत्यन्त उज्ज्वल और मूल्यवान् रत्न है, जो किसी वैदिक चरण में विकसित अध्यात्मशास्त्रका ही अवशिष्ट रूप है और जिसमें वैदिक निगद या बाह्य शब्दोंकी अपेक्षा वेदके गूढ़ अध्यात्मरहस्यका आत्मसात् करनेपर ही अधिक बल दिया गया है । इन सबसे अधिक प्रभाखर श्रीमद्भगवद्गीता प्रसिद्ध ही है, जिसके ज्ञानमय आलोक का वस्तुत: वारापार नहीं है । महाभारतका अनुशीलन उस सर्वेक्षण के समान है, जिसमें मणिरत्न, सुवर्ण आदिकी खानोंके लिये भूमिको शोधा जाता है ।
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जिनके ज्ञान नेत्रोंमें इस प्रकारका अञ्जन लगा हो, उन्हें महाभारत में क्या कुछ देखनेको न मिलेगा ? जिन्हें धर्म और संस्कृतिके मणिरत्नोंकी पहचान हो, उनके लिये जो निधि महाभारत में है, वह अन्यत्र कहीं नहीं है । इस प्रकारके अतिविशिष्ट ग्रन्थका स्मरण करके हृदय गद्गद हो जाता है । जैसा वायुपुराण के कर्ता कहा है
'भगवान् व्यासने वेदोंके समुद्रको अपनी बुद्धिरूपी मथानीसे मथकर ऐसे महाभारतरूपी चन्द्रमाको जन्म दिया, जिसके प्रकाश से यह सारा लोक प्रकाशित है'.
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मति मन्थानमाविध्य येनासौ श्रुतिसागरात् । प्रकाशं जनितो लोके महाभारतचन्द्रमाः ॥ वायु० १ | ४४-४५ )
भारतीय लोकमानस व्यासके प्रति अपनी बढ़ी दुई कृतज्ञताको प्रकट करने के लिये इससे अच्छे और कौन-से शब्द प्राप्त कर सकता था ? जैसा आचार्य दण्डीने बुद्धिवादियोंकी ओरसे व्यासको श्रद्धाञ्ज अर्पित करते हुए लिखा है – महामुनि व्यासने महाभारतके रूपमें जो विद्या इस राष्ट्रको समर्पित की, वह मानवरूपी मर्त्य यन्त्रों में चैतन्य-मन्त्र फूँकनेका साधन है
मर्त्ययन्त्रयेषु चैतन्यं महाभारतविद्यया । अर्पयामास तत्पूर्वं यस्तस्मै मुनये नमः ॥ ( अवन्तिसुन्दरीकथा श्लोक ४ ) भगवान् व्यासके रूपमें उस महासागरकी जय हो, जिससे महाभारतरूपी अमृतका जन्म हुआ ।
काशी विश्वविद्यालय,
फाल्गुन शुक्ला ९० सं० २०१५ } वासुदेवशरण अग्रवाल
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