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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कपिला गाय ( ५४ ) करंजनिलया ९ । २८ )। (४) पञ्चशिखकी माता (शान्ति० कपोतरोमा-उशीनरकुमार शिबिके पुत्रका नाम । उसका २१८ । १५)। दूसरा नाम औद्भिद' था (वन० १९७ । २७-२८)। कपिला गाय-इसकी उत्पत्ति तथा दानका वर्णन ( अनु० यमकी सभामें विराजमान होनेवाले नरेशोंमें इनका भी ७७ अ०; अनु० १३० । १९-२०)। नाम आया है (सभा० ८ । १७)। ये कलिङ्गराज कपिलावट-एक तीर्थ, यहाँ उपवाससे सहस्र गोदानका चित्राङ्गदकी कन्याके खयंवरमें गये थे (शान्ति०४।६)। फल प्राप्त होता है (वन० ८४ । ३.)। कबन्ध-एक राक्षस । भगवान् श्रीरामद्वारा इसका वध कपिलाश्च-महाराज कुबलाश्वके पुत्र । ये तीन भाई धन्धुकी (सभा० ३८ । २९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ट ७९४ क्रोधाग्निसे बच गये थे । इन्हींसे इक्ष्वाकुवंशी नरेशोंकी का दूसरा कालम ) । इसका लक्ष्मणको पकड़ना वंश-परम्परा चालू हुई (वन० २०४ । ४०)।ये पृथ्वीके (वन० २७९ । ३०)। लक्ष्मणद्वारा इसका मारा उन प्राचीन शासकोंमेंसे हैं, जो इसे छोड़कर स्वर्गको जाना (वन० २७९ । ३८-३९) । शापसे मुक्त होनेपर चले गये (शान्ति० २२७ । ५१)। इसका विश्वावसु गन्धर्वके रूपमें प्रकट हो सोताजीका पता कपिलाह्रद-वाराणसीके अन्तर्गत एक तीर्थ, जहाँ स्नानसे बताना ( वन० २७९ । ४२-४३)। राजसूय यज्ञका फल मिलता है (वन० ८४ । ७८)। कमठ-(१) युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान कम्बोजराज यहाँ स्नानका फल (अनु० २५ । २५)। (सभा० ४ । २२)। (२) एक ऋषि, जिन्होंने कपिस्कन्ध-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य.४५।५७)। तपस्याद्वारा सिद्धि प्राप्त की थी ( शान्ति० २९६ । १४कपोत-गरुडकी प्रमुख संता से एक(उद्योग० १०१।१३)। कमला-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य०४६ । ९)। कपोत, कपोती और बहेलियेकी कथा-(शान्ति. कमलाक्ष-(१) कौरवपक्षका एक महारथी योद्धा, जिसे १४३ अध्यायसे १४९ तक)। कपोतके द्वारा शरणागत दुर्योधनने अर्जुनपर आक्रमण करने के लिये शकुनिके साथ भेजा अतिथिका सत्कार ( शान्ति. १४३ । ४)। बहेलियेको था (द्रोण. १५६ । १२०-१२३)। (२) तारकाउसके कर-कर्मके कारण सगे-सम्बन्धियोंने भी त्याग दिया सुरका पुत्र । त्रिपुरोंमेंसे रजतमयपुरका अधिपति( कर्ण था (शान्ति० १४३ । १०-१४)। पक्षियोंके वधसे ३३ । ५)। शिवजोद्वारा तीनों पुरोंका संहार (कर्ण०३४। पत्नीसहित जीविका चलानेवाले उस बहेलियेको एक दिन ११४)। अन्यत्रके वर्णन के अनुसार कमलाक्षके अधिकारमै आँधी-वर्षाके कारण महान् कष्टकी प्राप्ति (शान्ति० १४३। सुवर्णमय पुर था और शिवजीने तीनों पुरीको दग्ध १८-२५)। सर्दीसे व्याकुल होकर पृथ्वीपर गिरी किया (द्रोण. २०२ । ६४-८३)। हुई एक कपोतीको उठाकर उसने पीजड़ेमें डाल लिया । स्वयं दुखी होकर भी उस पापीने दूसरोंको सताना न कमलाक्षी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका (शल्य०४६ । ६)। छोड़ा (शान्ति. १४३ । २५-२७)। बहेलियेका एक कम्प-एक वृष्णिवंशी राजकुमार, जो मृत्युके पश्चात वृक्षके नीचे विश्राम (शान्ति० १४३ । २८-३३)। विश्वेदेवोंमें मिल गया (स्वर्गा० ५। १६ )। उसी वृक्षपर रहनेवाले कबूतरद्वारा अपनी प्यारी भार्या कम्पन-एक महाबली नरेश, जो युधिष्ठिरकी सभामें कबूतरीका गुणगान तथा पतिव्रता स्त्रीकी प्रशंसा विराजमान होते थे (सभा० ४ । २२)। (शान्ति.१४४ । १-१७)। कबूतरीका कबूतरसे कम्पना-एक सिद्धसेवित नदी, जिसका जल भारतीय प्रजा शरणागत व्याधकी सेवाके लिये प्रार्थना (शान्ति. १४५ पीती है ( भीष्म० ५। २५)। इसमें स्नान करनेसे अध्याय)। कबूतरके द्वारा अतिथिसत्कार और अपने पुण्डरीक यज्ञका फल प्राप्त होता है (वन० ८४।११६)। शरीरका बहेलियेके लिये परित्याग (शान्ति० १४६ कम्बल-(१) एक प्रमुख नाग (आदि०३५। १०)। ये अध्याय ) । बहेलियेका वैराग्य ( शान्ति. १४७ वरुणकी सभामें भी विराजमान होते हैं (सभा० १ । अध्याय)। कबूतरीका विलाप, अग्निमें प्रवेश तथा ९)। मातलिके उपाख्यानमें ये कश्यपके वंशज कहे गये उन दोनों कपोतदम्पतिको स्वर्गलोककी प्राप्ति (शान्ति. हैं (उद्योग० १०३ । ९)। प्रयागतीर्थमें कम्बल नागका १४८ अध्याय)। बहेलियेकी तपस्या तथा दावानलमें स्थान है, जो ब्रह्माजीकी वेदीके अन्तर्गत है (वन० ८५। दग्ध होकर उसका स्वर्गलोकमें जाना । कपोतकी शरणागत- ७६-७७)। (२) कुशद्वीपका चौथा वर्ष ( भीष्म० वत्सलता तथा कपोतीके पातिव्रत्यकी अनुकरणीयता । १२। १३)। कपोत-कपोतीके इस प्रसंगको श्रवण करनेका फल करंजनिलया-वृक्षोंकी माता अनला या वीरुधा, जो करंज (शान्ति. १४९ अध्याय)। नामक वृक्षपर निवास करती है । यह वरदायिनी तथा For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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