SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कच्छ www.kobatirth.org ( ५२ ) कच्छ - एक भारतीय जनपद ( भीष्म० ९ । ५६ ) । कच्छपी - नारदजीकी वीणा ( शल्य० ५४ । १९ ) । कठ- एक धर्मज्ञ जितेन्द्रिय ऋषि जो युधिष्ठिरकी सभा में विराजते थे ( सभा० ४ । १८ ) । राजसूय यज्ञमें युधिष्ठिरने इनका सत्कार किया था ( सभा० ४५ । ३८ के बाद दाक्षिणात्य पाठ पृष्ठ ८४३ ) | ये सर्पदंशनसे मरी हुई प्रमद्वराको देखने आये थे ( आदि०८ । २५ ) । कणिक - ( १ ) धृतराष्ट्रका एक मन्त्री, जो कूट राजनीति और अर्थ - शास्त्रका पण्डित तथा उत्तम मन्त्रका ज्ञाता ब्राह्मण था (आदि० १३९ । २ ) । इसके द्वारा धृतराष्ट्रको कुटनीतिका उपदेश ( आदि० १३९ । १-९२) । ( २ ) भरद्वाजकुलमें उत्पन्न एक कूटनीतिज्ञ ब्राह्मण, जिसने सौवीरनरेश शत्रुंजयको कूटनीतिका उपदेश किया था ( शान्ति० १४० अ० ) । कण्टकिनी - स्कन्द की अनुचरी मातृका (शल्य० ४६ । १६ ) । कण्डरीक - एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि, जिनके कुलमें प्रतापी राजा ब्रह्मदत्त उत्पन्न हुए थे ( शान्ति० ३४२ । १०५ ) । कण्डु - एक महर्षि, जिनकी पुत्री 'वाक्ष' ने दस प्रचेताओंके साथ विवाह सम्बन्ध स्थापित किया था ( आदि ० १९५ । १५ ) । कण्डूति - स्कन्द की अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ । १४ ) । कण्व - ( १ ) कश्यपगोत्रीय प्राचीन महर्षि, जिनका । आश्रम मालिनी नदी के तटपर था ( आदि० ७० । २१-२८ ) । इनके आश्रमका वर्णन ( आदि० ७० । २४-२९ ) । इन्हें मेधातिथिका पुत्र और पूर्व दिशामें रहनेवाला ऋषि बताया गया है ( शान्ति० २०८ | २७; अनु० १५१ । ३१; अनु० १६५ । ३८ ) । इनके द्वारा शकुन्तलाका पालन-पोषण एवं नामकरण ( आदि० ७२ । १३-१६ ) । शकुन्तला के गान्धर्व विवाहका समर्थन ( आदि० ७३ । २६-२७ ) । इनका शकुन्तलाके प्रति पातिव्रत्य धर्मका उपदेश एवं इसकी महिमाका वर्णन ( आदि ० ७४ । ९-१० ) । शकुन्तलाको पतिगृह पहुँचाने के लिये शिष्योंको इनका आदेश ( आदि०७४ १०-११ ) । इनके द्वारा स्त्रियोंको पिताके घर में अधिक दिनोंतक रहनेका निषेध ( आदि० ७४ । १२ ) । आचार्य बनकर इनके द्वारा राजा भरतके 'गोवितत' नामक अश्वमेध यज्ञका सम्पादन (आदि०७४ । १३० ) । इनका दुर्योधनको समझाते हुए मातलिका उपाख्यान सुनाना (उद्योग ० ९७ । १२ से १०५ । ३७ तक ) । इन्हें भरतसे दक्षिणारूपमें जाम्बूनद सुवर्णके बने हुए एक हजार कमल प्राप्त हुए थे ( द्रोण० ६८ । १११२ ) | ( २ ) प्राचीन युगान्तरके एक प्रसिद्ध तपस्वी महामुनि, जिन्हें ब्रह्माजीने वर दिया था ( अनु० १४१ में दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ट ५९१५ ) । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कनकाङ्गद 1 कण्वाश्रम - कण्व मुनिका आश्रम । यह लक्ष्मीद्वारा सेवित तथा लोकपूजित है । यह स्थान धर्मारण्यके अन्तर्गत है यहाँ प्रवेश करनेमात्रसे मनुष्य पापमुक्त हो जाता है ( वन० ८२ । ४५-४६ ) । प्रवेणी नदीके उत्तरमार्गमैं कण्वका पुण्यमय आश्रम है, जहाँ वरुणस्रोतस् नामक पर्वतपर सूर्यके पार्श्ववर्ती माठर देवताका विजयस्तम्भ सुशोभित है ( वन० ८८ । १०-११)। ( किसी-किसीके मत में यह स्थान राजपूतानेमें कोटासे चार मील दक्षिणपूर्व चम्बल नदी के तटपर स्थित है | ) कथक - स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ६७ ) । कदलीवन-सौगन्धिक कमलोंसे भरी हुई कुबेर- पुष्करिणीके तटपर स्थित सुवर्णमय केलोंसे भरा हुआ एक उपवन, जो हनुमानजी का निवासस्थान था ( वन० १४६ । ५८ ) । कद्र - दक्ष प्रजापतिकी एक पुत्री ( आदि० ६५ । १३) । यह नागों की माता और कश्यपकी पत्नी हैं। कश्यपके वर देनेको उद्यत होनेपर इनके द्वारा उनसे एक हजार नागके पुत्ररूपमें पानेकी प्रार्थना (आदि० १६ । ५-८)। पाँच सौ वर्षों बाद इनको एक हजार पुत्रोंकी प्राप्ति ( आदि० १६ । १५ ) । इनके द्वारा अपने पुत्रोंको आज्ञापालन न करनेके कारण शाप (आदि० २० । ८ ) । 'उच्चैःश्रवा घोड़ेका रंग क्या है ? इस प्रश्नपर कद्र और विनताका परस्पर विवाद करना । पराजित होनेपर दासी बनने की शर्त रखना और कद्रका छलपूर्वक विनताको अपनी दासी बनाना ( आदि० २० । २ से २३ । ४ तक ) । इनके द्वारा अपने पुत्रोंकी सूर्यके तापसे रक्षाके लिये इन्द्रकी स्तुति ( आदि० २५ । ७-१७ ) । कद्रकी प्रमुख संतानोंकी नामावली ( आदि० ३५ अध्याय ( ) । ये ब्रह्मसभा ब्रह्माजीकी उपासना करती हैं ( सभा० ११ । ४१–४३ ) | यह स्कन्दग्रहके रूपमें सूक्ष्म शरीर धारण करके गर्भवती स्त्रियोंके गर्भ में प्रवेश कर जाती और वहाँ उस गर्भको खा जाती हैं। इससे वह गर्भिणी सर्प पैदा करती है (वन० २३० । ३७-३८ ) । इसकी शान्तिका उपाय ( वन० २३० । ४३ - ४५ ) । कमोर - प्रात: और सायं स्मरण करनेयोग्य एक राजर्षि ( अनु० १६५ । ५३ )। कनकध्वज - धृतराष्ट्रका पुत्र ( कनकाङ्गद ) ( आदिο ११६ । १४ ) | यह द्रौपदीके स्वयंवर में गया था ( आदि०१८५ । ३ ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( भीष्म० ९६ । २६-२७ ) । For Private And Personal Use Only कनकाक्ष - स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य०४५ | ७४ )। कनकाङ्गद ( कनकध्वज ) - धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( आदि० ६७ । १०५ ) | ( देखिये कनकध्वज )
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy