________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
उतथ्य
उत्तङ्क
युधिष्ठिरके राजसूययज्ञमें उण्डूनिवासी भेंट लेकर आये ३।१४०)। नागलोकमें वस्त्र बुनती हुई दो स्त्रियों थे (वन० ५५ । २२)।
तथा चक्र घुमाते हुए छः कुमारों एवं एक दिव्य पुरुषका
इन्हें दर्शन होना तथा इनका उनकी स्तुति करना (आदि. उतथ्य-महर्षि अङ्गिराके मध्यम पुत्र (आदि०६६।५)। महाराज मान्धाताको राजधर्मके विषयमें इनका उपदेश
३ । १४४-१४९)। इनके द्वारा घोड़ेकी गुदा फूंकनेसे
आगकी लपटोका प्रकट होना एवं आगसे भयभीत होकर (शान्ति० ९० और ११ अध्यायोंमें)। सोमकी कन्या
तक्षकका कुण्डल देना (आदि०३ । १५१-१५३ )। भद्राके साथ विवाह ( अनु०१५४ । १२)। वरुणद्वारा भद्राका अपहरण किये जानेपर इनका सम्पूर्ण जल पी
नागलोकमें देखे हुए कुमार आदिके विषयमें इनका गुरुसे
पूछना (आदि.३। १६३) । बैल और उसपर चढ़े लेना (अनु. १५४ । २२-२८)।
हुए पुरुषके सम्बन्धमें इनकी जिज्ञासा ( आदि० ३ । उत्कल-भारतवर्षका एक जनपद (भीष्म० ९ । ४१)।
१६५)। गुरुके द्वारा इनके प्रश्नोंका समाधान (आदि. कर्णने दुर्योधनके लिये इस देशको जीता था ( द्रोण० । ३ । १६६-१६८) । तक्षकके विनाशहेतु सर्पयज्ञके लिये ४।८)।
राजा जनमेजयको सर्पसत्रकी सलाह देना (आदि. ३ । उत्कोचक-एक प्राचीन तीर्थ, जहाँ महर्षि धौम्य तपस्या १७८-१८४)।(२) गौतम ऋषिके शिष्य, द्वारका जाते करते थे, पाण्डवोंने यहींपर धौम्यमुनिका पुरोहितके रूपमें
समयमार्गमें श्रीकृष्णसे इनकी भेंट और उनसे कौरवों पाण्डवोंवरण किया था (आदि० १८२।२-६)।
का समाचार पूछना (आश्व० ५३ । ८-१४)। कुपित
होकर इनका श्रीकृष्णको शाप देनेके लिये उद्यत होना उत्क्राथिनी-स्कन्दकी अनुचरी मातृका ( शल्य० ४६ ।
(आश्व० ५३ । २०-२२)। श्रीकृष्णसे अध्यात्मतत्त्वका १६)।
वर्णन करनेके लिये कहना (आश्व० ५४।१)। शापउत्क्रोश-इन्द्रद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक, दानसे निवृत्त होकर इनका श्रीकृष्णसे विश्वरूपका दर्शन इसके दूसरे साथीका नाम पञ्चक था (शल्य०४५। करानेके लिये प्रार्थना करना (आश्व० ५५। ३-३)। ३५)।
श्रीकृष्णसे जलके लिये वरदान माँगना ( आश्व० ५५। उत्तर-(१) आयोदधौम्यके तीसरे शिष्य वेदके शिष्य
१३)। श्रीकृष्णका इन्हें उत्तङ्क नामक मेघोंसे जल प्राप्त (आदि०३ । ८३)। इनकी गुरुसेवा (आदि० ३ ।
होनेका वर देना (आश्व० ५५ । ३५-३७)। इनकी ८५)। इनके द्वारा गुरुपत्नीकी अवैध आज्ञाका उल्ल
उत्कृष्ट गुरुभक्ति (आश्व० ५६ । २-६)। उत्तङ्कका वन (आदि० ३। ८७)। गुरुपत्नीके कहनेपर इनका
गुरुके लिये काष्ठका बोझ लाना । उस बोझके साथ गिरी राजा पौष्यके यहाँसे कुण्डल लानेके लिये जाना ( आदि. हुई सफेद जटा देखकर वृद्धावस्थाका अनुमान करके इनका ३ । ९८)। इनके द्वारा अमृतस्वरूप गोमयका भक्षण रोदन) गुरुपुत्रीका इनके आँसुओंको अपने हाथमे लेना (आदि०३।१०१)। गुरुपत्नीके लिये राजासे कुण्डल- और उसका हाथ जलना, गुरुके पूछनेपर 'घर जानेकी की याचना (आदि.३।१०४)। क्षत्राणीके अन्तः- आशा न मिलनेसे ही मुझे दुःख हुआ है' यह बताना पुरमें उपस्थित न होनेकी बात बताकर इनका राजाको तथा गुरुका इन्हें आज्ञा लेकर घर जानेका आदेश देना;
आलम्भ देना (आदि०३ । १०६)। फिर आचमन उत्तङ्कका 'गुरुदक्षिणा क्या दूँ ?' यह पूछना, गुरुका आदिसे शुद्ध होनेपर इनको क्षत्राणीका दर्शन होना और बिना दक्षिणाके ही संतोष व्यक्त करके उन्हें पुत्री देनेकी उनसे इनका कुण्डल माँगना (आदि. ३ । १११)। इच्छा व्यक्त करना तथा उत्तङ्कका षोडशवर्षीय युवक होकर इनका राजा पौष्यको अपवित्र अन्न खिलानेके कारण शाप उसका पाणिग्रहण करना (आश्व० ५६ । ७-२४)। देना (आदि. ३ । ११६) । पौष्यद्वारा इनको अनपत्य इनका गुरुपत्नीसे गुरुदक्षिणा माँगनेका आग्रह और होनेका शाप ( आदि०३ । ११७) । कुण्डल लेकर अहल्याका मदयन्तीके कुण्डल माँगना (आश्व० ५६ । आते समय इनकी क्षपणकरूपधारी तक्षकसे भेंट तथा २५-२९) । कुण्डल लाने के लिये सौदासके पास जाकर उसके द्वारा कुण्डलोंका हरण होना (आदि.३।१२७)। उनके साथ इनका वार्तालाप करना ( आश्व० ५७ । ३इनका क्षपणकका पीछा करना एवं क्षपणकका तक्षकरूपमें १८) । मदयन्तीको राजाका संदेश सुनाकर कुण्डल प्रकट होकर नागलोकमें जाना (आदि. ३ । १२९. माँगना (आश्व० ५७ । १९)। राजा सौदाससे रानीके १३०)। नागलोक जाते समय इनकी सहायताके लिये लिये संदेशका प्रमाण माँगना (आश्व० ५८ ।।)। इन्द्रका वज्रको आदेश देना (आदि.३।१३.)। मदयन्तीको राजाका संदेश सुनाकर कुण्डल प्राप्त नागलोकमें जाकर इनके द्वारा तशकको स्तुति (आदि. करना ( आश्व० ५८ । ३)। सौदासके साथ
For Private And Personal Use Only