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उग्रकर्मा
उण्ड्र ( या उड्र)
उग्रकर्मा (१) शाल्व देशका राजा. जो भीमसेन के द्वारा दिया, फिर मद्यनिषेधकी आज्ञा जारी की (मौसल. मारा गया (कर्ण० । ४१)। (२) केकय-राज- १। २७-३०)। उग्रसेन मृत्युके पश्चात् विश्वेदेवोंमें कुमार विशोकका सेनापति, कर्णद्वारा इसका वध मिल गये थे ( स्वर्गा० ५। १७.१८)। (६) सोम(कर्ण० ८२ । ४-५)।
वंशीय राजा अविक्षितके पौत्र तथा परीक्षितके पुत्र उग्रतीर्थ-क्रोधवशसंज्ञक दैत्यके अंशसे प्रकट हुआ एक
(आदि० ९४ । ५२-५४)। क्षत्रिय राजा ( आदि०६७।६५)।
उग्रायुध-(१) धृतराष्ट्रका एक पुत्र (आदि० ६७ । उग्रतेजा-(१) भगवान् शिवका एक नाम (अनु० १७ ।
९९)। यह द्रौपदीके स्वयंवरमैं गया था ( आदि. ५७)। (२) एक श्रेष्ठ नाग, जो बलरामजीके परम
१८५। २)। (२) पाण्डवपक्षीय एक पाञ्चाल योद्धा, धाम पधारनेके समय उनके स्वागतके लिये आया था
कर्णद्वारा घायल (वर्ण० ५६ । ४४)। (३) कौरव( मौसल० ४ । १६ )।
पक्षका एक योद्धा, जो पराक्रमी और आदर्श धनुर्धर था,
युद्धक्षेत्र में मारा गया (शल्य. २ । ३७)। (४) उग्रश्रवा-(१) लोमहर्षणपुत्रः सौतिः पौराणिक
एक दुर्धर्ष चक्रवर्ती नरेश, जिसे भीष्मजीने किसी समय (आदि०१।१)। (२) धृतराष्ट्रका एक पुत्र
मारा था (शान्ति० २७ । १०)। (आदि० ६७ । १०० ) । भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण० १५७ । १९)।
उग्रायुधपुत्र-कौरव-पक्षका एक संशप्तक योद्धा, जिसे उग्रसेन-(१) महाराज जनमेजयका एक भाई, जिसने
अर्जुनने मारा था ( कर्ण० १९ । ७)। अन्य दो भाइयोंके साथ सरमा-पुत्रको मारा था उच्चैःश्रवा-(१) समुद्र-मन्थनके समय समुद्रसे प्रकट (आदि.३ । १-२) (२) मुनि'नामवालो कश्यपकी हुआ सर्वश्रेष्ठ अश्व, जो देवलोक में चला गया ( आदि. पत्नीका एक पुत्र, देवगन्धर्व (आदि० ६५ । ४२)। १८ । ३३-३७)। इसके शरीरका रंग कैसा है-इस यह अर्जुनका जन्मोत्सव देखने गया था (आदि०१२२।। प्रश्नको लेकर कद् एवं विनताका विवाद (आदि० ५५)। विराटनगरमें अर्जुन और कृपाचार्यका युद्ध २० । २ से २३ । ३ तक)। (२) पूरुवंशी महाराज देखनेके लिये भी इसने पदार्पण किया था ( विराट ० ५६ । कुरुके पौत्र तथा अविक्षित्के छठे पुत्र ( आदि. ९४ । ११-१२)। (३)एक राजा, जो स्वर्भानु' नामक असुरके अंशसे प्रकट हुआ था (आदि०६७ । १२-१३)। उच्छिख-तक्षककुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके (४) (चित्रसेन ) धृतराष्ट्रका एक पुत्र (आदि० समन जलमग
सर्पसत्रमें जल मरा था (आदि. ५७ । ५)। ६७ । १००)। भीमसेनद्वारा इसका वध (द्रोण. १३७ । २५-३०)। (५) ये वृष्णिवंशके प्रतापी उच्छ्रङ्ग-विन्ध्यद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक, राजा और राजा कुन्तिभोजके फुफेरे भाई थे इसका दूसरा साथी अतिशृङ्ग था ( शल्य० ४५ । ४१)। ( आदि० ६७ । १३०; २१६ । ८ )। राजा उज्जयन-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक ( अनु० उग्रसेनका दूसरा नाम आहुक था ( उद्योग० १२८ । ३८-३९; अनु. १४ । ४१)। इनके मन्त्री वसुदेव थे।
और पुत्र बलवान् कंस; कंस अपने पिता उग्रसेनको केट उज्जयन्त पर्वत-सौराष्ट्र देश ( काठियावाड़) के पिण्डारक करके मन्त्रियोंके साथ इनका राज्य भोगने लगा ( सभा० क्षेत्रके अन्तर्गत एक महान् सिद्धिदायक पर्वत ( वन० २२ । ३६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ट ७३१)। उग्रसेन- ८ । २१)। की सम्मतिसे श्रीकृष्णने भाइयोसहित कंसको मारकर पुनः उजानक-मानसरोवरसे आगे गन्धमादनके निकट आर्टिषणउग्रसेनको ही मथुराके राज्यपर अभिषिक्त किया (सभा० के आश्रमके पासका एक तीर्थभूत सरोवर, इसमें स्नान पृष्ट ७३२)। उग्रसेन और वृष्णिवंशको जरासंधसे सदा करनेसे पापोंसे छुटकारा मिलता है (वन० १३० । १७; क्लेश प्राप्त होता था (सभा० पृष्ट ७३२)। शाल्वके
अनु. २५ । ५५)। चढ़ाई करनेपर उग्रसेनके द्वारा नगरकी सुरक्षा (वन.
उज्जालक-मरुप्रदेशमें स्थित बालुकामय समुद्र (वन०२०२। १५ । २३)। श्रीकृष्णसे नारदजीकी पूज्यताके विषयमें उजा प्रश्न (शान्ति० २३० । ३)। साम्बके पेटसे पैदा हुआ ५६) । मुसल उग्रसेनको दिया गया, उसे देखकर ये दुखी हुए उण्ड्र (या उडू)-दक्षिण भारतका एक जनपद, जिसे और उसे कुटवाकर चूर्ण बनवाकर इन्होंने समुद्र में फेंकवा सहदेवने दूतोद्वारा जीत लिया था (सभा०३३ । ७१)।
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