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उनक
द्वन्द्व युद्ध (भीष्म ४५१६९-७१)। इनके द्वारा विन्द इषुपाद-एक दानव । माता दनु' । पिता कश्यप (आदि.
और अनुविन्दकी पराजय (भीष्म० ८३ । १८-२२)। ६५।२५ ) । यही विख्यात पराक्रमी राजा नग्नजित्के इनका युद्ध करके शकुनिके पाँच भाइयोंका वध करना
रूपमें उत्पन्न हुआ था (आदि० ६७ । २०-२१)। (भीष्म० ९० । २७-४६)। अलम्बुषके साथ युद्ध और उसके द्वारा इनका वध (भीष्म० ९० । ५६
ईजिक-एक देश (भीष्म० ९ । ५२)। इला-(१)वैवस्वत मनुकी पुत्री, पुरुषरूपमें परिणत ईरी-यमराजकी सभामें वैवस्वत यमकी उपासना करनेहोनेपर इनका नाम सुद्यम्न हुआ (आदि० ७५। वाले एक सौ ईरी' नामवाले नरेश ( सभा०८ ।
१६; अनु०१४७ । २६)। [ये दो बार अपने जीवन- २३)। में स्त्री होकर पुरुष हुए थे। पहले तो इन्होंने होताओंके
ईलिन-पूरुवंशी महाराज तंसुके पुत्र । इनकी पत्नीका दोपसे कन्या होकर ही जन्म लिया था। बाद में वशिष्ठजी
नाम रथन्तरी' था। उसके गर्भसे इनके दुप्यन्ता शूर, की कृपासे पुरुष हुए और दुबारा इलावृतखण्डमें जाकर महादेवजीके शापसे स्त्री हुए थे। यह कथा श्रीमद्भागवत
__भीम, प्रवसु तथा वमु नामक पाँच पुत्र हुए थे (आदि० के नवम स्कन्धमें देखना चाहिये। 1 इनके गर्भसे पुरू
९४ । १६-१८)। रवाका जन्म हुआ ( फिर ये पुरुष हो गये )। अतः ईश-एक विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३५ )। पुरूखाके पिता और माता दोनों कहे जाते हैं ( आदि० ईशानाध्यषिततीर्थ-एक प्राचीन तीर्थ, जिसके सेवनसे ७.५ । १८-१९)। इला बुधकी पत्नी और पुरूरवाकी
सहस्र कपिलादान और अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है माता थी (अनु. १४७।२७) । (२) एक नदी,
(वन० ८४ । ८-९)। जिसने कार्तिकेयको फल-फूलकी भेंट अर्पित की थी (अनु. ८६ । २४)। इला नदी सम्बन्धी तीर्थमें युधिष्ठिरने
ईश्वर-(१) ग्यारह रुद्रों से एक, ब्रह्माजीके पौत्र एवं ब्राह्मणोंसहित स्नान किया था (वन. १५६।८)।
स्थाणुके पुत्र (आदि० ६६ । ३)। (२) एक
राजा, जो क्रोधवश नामक दैत्यों से किसीके अंशसे उत्पन्न इलावृतवर्ष-जम्बूद्वीपका मध्यवर्ती भूभाग (सभा० २८ ।
हुआ था ( आदि. ६७ । ६५ )। (३) ६ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)।
राजा पुर के द्वारा पौष्टीके गर्भसे उत्पन्न द्वितीय इलास्पद-एक प्राचीन तीर्थ, इसमें स्नान करनेसे दुर्गतिका
पुत्र, महारथी (आदि० ९४ । ५)।(४) एक निवारण तथा वाजपेय यज्ञका पुण्यफल सुलभ होता है विश्वेदेव (अनु. ९१।३७)। ( वन० ८३७७-७८)। इलिल-एक पुरुवंशी राजा । सम्राट् दुष्यन्तके पिता
उक्थ-(१) परावाणीका उत्पादक एक अग्नि, जिसकी (आदि० ७१।७ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। इनकी ।
विविध उक्थ-मन्त्रीद्वारा स्तुति की जाती है ( वन० भार्या का नाम 'रथन्तर्या' था (आदि० ७४ । १२५ के
२१९ । २५)। (२) सामवेदका एक विशेष बाद दाक्षिणात्य पाठ)। दुप्यन्तके पिता तथा माताके
भाग। ये नान दाक्षिणात्य पाठके अनुसार दिये गये हैं । उदीच्य पाठके अनुसार इनके पिताका नाम ईलिन' और माता- उक्षा-ऋषभकन्दका नाम (वन० ५९७ । १७)।
का नाम रथन्तरी' था ( आदि० ९४ । १६-१८)। उन-(१) धृतराष्ट्र के पुत्रों से एक (आदि. ६७ । इल्वल--मणिमती नगरीका निवासी एक दैत्य (वन०
१०३) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( भीष्म०६४ । ९६ । ४)। एक ब्राह्मणसे रुष्ट होने के कारण यह ब्राह्मण.
३४-३५)। (२) एक यादव राजकुमार, जिसे द्रोही होकर छलसे ब्राह्मणोंकी हत्या किया करता था
पाण्डवोंकी ओरसे रणनिमन्त्रण भेजा गया ( उद्योग (वन० ९६।५-१३)। इसका अगस्त्यजीसे मैं कितना
४। १२ )। (३) भगवान् शिवका एक नाम धन दान करना चाहता हूँ ?' यह पूछना (वन० ९९ ।
( अनु० १७ । १००)। (४) प्रजापति कविके पुत्र। १३)। इसके द्वारा श्रुता, अध्नश्व, त्रसदस्यु और
(अनु. ८५ । १३३)। (५) एक वर्णसंकर जाति । अगस्त्यजीको धनका दान (वन० ९९ । १६)।
क्षत्रिय पुरुष और शूद्रा स्त्रीके संयोगसे उत्पन्न अगस्त्यजीके हुङ्कारसे इसका भस्म होना ( वन० ५५ ।
बालक (अनु. १४८ । ७)। ५७ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)।
उग्रक-एक प्रमुख नाग (आदि. ३५ । ७)।
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