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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इन्द्रधुम्न ( ३७ ) इरावान् इन्द्रद्युम्न-(१) एक असुरभावापन्न नरेश, जो श्रीकृष्ण- गमन (वन० १ । ११) । गन्धमादनजाते समय पाण्डवोंका द्वारा मारा गया (वन० १२ । ३२)। (२) एक इन्द्रसेनको पुलिन्दराज सुबाहुके यहाँ छोड़ना(वन०१४०। महर्षि (वन. २६ । २२ )। (३) राजा जनकके २७)। इसका धात्रेयिकासे द्रौपदीका समाचार पूछना (वन० पिता (वन० १३३ । ४ )। (४) एक प्राचीन २६९।११-१५)। इन्द्रसेनको द्वारका जानेका आदेश राजर्षि, जो कीर्ति लोप होनेसे स्वर्गसे भूतलपर गिरे और (विराट०४।३)। इन्द्रसेनका द्वारका-गमन (विराट एक चिरजीवी कच्छपद्वारा अपनी कीर्तिका बखान सुनकर ४ । ५८)। उपप्लव्य नगरमें अभिमन्युके विवाहमे जाना पुनः स्वर्गलोकमें जा पहुँचे थे ( वन० १९९ अध्याय )। (विराट०७२ । २३)। (३) एक कौरवपक्षका योद्धा इन्द्रद्युम्नसरोवर-(१) गन्धमादन पर्वतके समीपवर्ती (द्रोण०१५६ । १२२) (४) इन्द्रसेन (और इन्द्रसेना) सरोवर । यहाँ पत्नियोंसहित पाण्डुका आगमन ( आदि. निषधनरेश नलके पुत्र और पुत्री, इनकी माता ११८ । ५० ) । (२) द्वारकापुरीका एक सरोवर दमयन्ती थी। दमयन्तीद्वारा नलके जुएमें हारनेकी (सभा० ३८ । २९ के बाद दा. पाठ०, पृष्ठ ८१६)। आशङ्का होनेपर वार्ष्णेयसे इन्द्रसेन और इन्द्रसेनाको कुण्डिन पुर भेजवाना (वन० ६०॥१८-२४) । इन दोनोंकी पुनः इन्द्रद्वीप-एक द्वीपका नाम, जिसे पहले सहस्रबाहुने जीतकर राजा नलसे भेंट (वन० ७५ । २४)। अपने अधिकारमें किया था ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ७९२ )। इन्द्रसेना-(१) राजा नलकी पुत्री ( देखिये इन्द्रसेन और इन्द्रसेना') (२) नारायणकी कन्या और इन्द्रपर्वत-विदेहदेशवर्ती एक पर्वत (सभा० ३०।१५)। मुद्गलकी पत्नी, अप्रतिम सुन्दरी होकर भी इसने एक इन्द्रप्रस्थ-पाण्डवोंकी राजधानी ( वर्तमान दिल्ली )। हजार वर्षके बूढ़े पति मुद्गलका अनुसरण किया ( वन० विश्वकर्माद्वारा इसका निर्माण । इसका इन्द्रप्रस्थ' नाम ११३ । २४, ( विराट०२१ । ११)। होनेका कारण (आदि० २०६ । २८ के बाद)। व्यास इन्द्राणी-इन्द्रपत्नी शची ( देखिये शची)। द्वारा इसके भूभागका शोधन ( आदि० २०६ । २९)। इसका विशद वर्णन (आदि० २०६। २९ के बाद दा० पा०, इन्द्राभ-भरतवंशीय महाराज कुरुके प्रपौत्र एवं धृतराष्ट्रके पृष्ठ ५९५.२०६ । ४९ तक) । (आदिपर्वके २०७, ___सातवें पुत्र ( आदि० ९४ । ५९)। २१८, २२०, २२१ अध्यायोंमें; सभापर्वके १३, २४, इन्द्रोत-शुनकवंशी ऋषि । राजा जनमेजयको फटकारना ३२, ७३ वनपर्वके ५१, २३३, २३७, विराटपर्वके १८, (शान्ति०१५०। ९-१९)। राजा जनमेजयसे ब्राह्मणों के ५०, उद्योगपर्वके २६, ५५, ९५: भीष्मपर्वके १२१, प्रति द्रोह न करनेकी प्रतिज्ञा कराकर उन्हें अपनी शरणमें शान्तिपर्वके १२४ तथा आश्वमेधिकपर्वके १५ अध्यायोंमें लेना (शान्ति० १५१ । १०-२१) । राजा जनमेजयको भी इन्द्रप्रस्थ'का नाम आया है । मौसलपर्व ७ । ७२ में धर्मोपदेश करके उनसे अश्वमेध यज्ञ कराना (शान्ति. यह कथा आयी है कि अनिरुद्धके पुत्र वज्रको इन्द्रप्रस्थमें १५२ अमें)। यादवोंका राजा बनाया गया था।) इरा-( १ ) कुबेरकी सेवामें रहनेवाली अप्सरा ( सभा० इन्द्रमार्ग-एक प्राचीन तीर्थ । यहाँके स्नानका फल स्वर्गकी १०।११)। (२) ब्रह्माके सभाभवनमें उनकी प्राप्ति ( अनु० २५ । ९)। उपासना करनेवाली एक देवी ( सभा०११ । ३९)। इन्द्रलोकाभिगमनपर्व-वनपर्वके अन्तर्गत एक अवान्तर इरामा-एक महानदी, जिसे मार्कण्डेयजीने भगवान् बालपर्व ( अध्याय ४२ से ५१ तक )। मुकुन्दके उदरमें देखा था (वन० १८८ । १०४ )। इन्द्रवर्मा-मालवनरेश । पाण्डवपक्षके योद्धा । इनके इरावती-पञ्चनद प्रदेशकी रावी नदी, जो दिव्यरूप धारण अश्वत्थामा नामक हाथीका भीमसेनद्वारा वध ( द्रोण. करके अन्य नदियोंके साथ वरुणकी सेवामें उपस्थित १९० । १५)। होती है । सभा०९। १९)। पार्वतीजीने स्त्रीधर्म इन्द्रसेन-(१) सोमवंशीय महाराज अविक्षितके पौत्र एवं वर्णन करने के सम्बन्धमे जिन नदियोंसे सलाह ली थी, परीक्षित्के पुत्र ( आदि. ९४ । ५५ ) । (२) उनमें इरावती' भी उपस्थित थी ( अनु. १४६ । पाण्डवोंका सारथि ( सभा० ३३ . ३०) । युधिष्ठिरकी आज्ञासे इन्द्रसेनका द्वारका भगवान् श्रीकृष्णको इरावान्-अर्जुनके द्वारा नागकन्या उलूपीके गर्भसे उत्पन्न बुलानेके लिये जाना और उनसे चलनेका अनुरोध करना पुत्र ( आदि० २१३। ३६ के बाद दाक्षिणात्य (समा० १३ । ४१.४२)। इसका पाण्डवोंके साथ बन- पाठ)। प्रथम दिनके युद्धगें श्रुतायुष के साथ इनका For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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