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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३६ ) इन्द्रदमन % उत्तम दानके विषयमें पूछना (अनु. ६२ । ५३)। अमरेश्वर, अमरेन्द्र, अमरोत्तम, असुरार्दन, असुरसूदन, ब्रह्माजीसे गोलोक और गोदानके विषयमें प्रश्न (अनु० बलभित्, बलहन्, बलहन्ता, बलजित्, बलनाशन, बल७२।६-१२) । ब्रह्माजीसे दुसरेकी गौका अपहरण करने- निषदन, बलसूदन, बलवृत्रन, बलात्रहन, बलवृत्रनिषके फलके सम्बन्धमें प्रश्न ( अनु० ७४ । १)। ब्रह्माजी- दन, बलवृत्रसूदन, भूतभव्येश, शचीपति, शक्र, शम्बरसे गोलोककी श्रेष्ठताके विषयमें प्रश्न (अनु. ८३ । १३. हन्, शम्बरपाकहन्, शतक्रतु, शतमन्यु, दशशताक्ष, १४)। कार्तिकेयको भेंट समर्पित करना (अनु० ८६ । दशशतनयन, दशशतेक्षण, दैत्यनिबर्हण, दैत्यासुरनिबर्हण, २५)। अगस्त्यजीको अपना परिचय देकर कमलकी दानवशत्रु, दानवघ्न, दानवारि, दानवसूदन, देवश्रेष्ठ, चोरीका कारण बताना ( अनु. ९४ । ४७-४९)। देवदेव, देवाधिप, देवगणेश्वर, देवपति, देवराज, देवराट, मातलिके पूछनेपर सबके वन्दनीय पुरुषका परिचय देना देवेश, देवेन्द्र, हरि, हरिश्मश्रु, हरिय, हरिमान्, हरि(अनु० ९६ । २२ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ १७८३)। वाहन, ईश्वर, जगदीश्वर, काश्यप, कौशिक, किरीटी, कुशिधृतराष्ट्र के रूपमें इनके द्वारा गौतमनामक ब्राह्मण- कोत्तम, लोकत्रयेश, लोकेश्वरेश्वर, मधवा, महेन्द्र, मरुके हाथीका अपहरण कर लिये जानेपर इनके साथ त्पति, मरुत्वान्, मुकुटी, नमुचिन, नमुचिहन्, पाकशासन, संवाद ( अनु० १०२ । ७-६१) । महर्षि विद्युत्प्रभको पर्जन्य, पुरन्दर, पुरुभूत, पूषानुज, पुष्करेक्षण, सहस्रका पापसे छूटनेका उपाय बताना (अनु० १२५ । ४८-५०)। सहस्राक्ष, सहस्रलोचन, सहस्रनवन, सहस्रनेत्र, सर्वदानवबृहस्पतिजीसे धर्मके विषयमें जिज्ञासा ( अनु० १२५। सूदन, सर्वदेवेश, सर्वलोकामर, सुरश्रेष्ठ, सुराधिप, सुर५९) । अश्विनीकुमारोंके निमित्त च्यवनके साथ संघर्ष गणेश्वर, सुरपति, सुरपुङ्गव, सुरराट, सुरराज, सुरारिइन्, (अनु० १५६ । १६-३१)। पञ्चशिखावाले बालकके सुरर्षभ, सुरसत्तम, सुरेश, सुरेश्वर, सुरेन्द्र, सुरोत्तम, रूपमें शिवजीपर व प्रहार करते समय इनकी बाँहका त्रैलोक्यपतिः त्रैलोक्यराज, त्रिभुवनेश्वर, त्रिदशाधिप, स्तम्भित होना और शिवजीकी कृपासे पुनः इनका संकट त्रिदशाधिपति, त्रिदशेश, त्रिदशेश्वर, त्रिदशेन्द्र, त्रिदिवेमुक्त होना (अनु. १६० । ३३-३६ ) । वृहस्पतिजीको श्वर, त्रिलोकराजा त्रिलोकेश, वज्रभृत, वज्रधर, वज्रधारी, मरुत्तका यज्ञ करानेसे रोकना ( आश्व० ५। १८-२१)। वज्रधृक, वजहस्त, वज्रपाणि, वज्रायुध, वज्री, वरद, वासव, बृहस्पतिजीसे उनकी चिन्ताका कारण पूछना (आश्व० विबुधश्रेष्ठ, विबुधाधिप, विबुधाधिपति, विबुधेश्वर, विश्वभुक, ९।१-५)। अग्निको दूत बनाकर भरुत्तके पास संदेश वृषाकपि, वृत्रशत्रु, वृत्रहन्, वृत्रहन्ता, वृत्रनिषूदन । भेजना ( आश्व० ९। ८)। गन्धर्वराज धृतराष्ट्रको दूत (२)पाञ्चजन्यद्वारा बलसे प्रकट किया गया 'इन्द्र' नामक बनाकर मरुत्तके पास भेजना (आश्व० १०।२)। अग्नि (वन० २२० । ७)। मरुत्तपर वज्र-प्रहार करनेको उद्यत होना ( आश्व०१०। इन्द्रकील-हिमालय और गन्धमादनसे आगेका एक पर्वत, ८)। मरुत्तके यज्ञमें जाना ( आश्व० १०।२०)। जिसका अभिमानी देवता कुबेरका उपासक है (सभा. यज्ञमण्डपकी व्यवस्था करना (आश्व० १०।२६-३०)। १०। ३२, वन०३७ । ४२)। इनके द्वारा शरीरस्थ वृत्रासुरका संहार (आश्व०११ । १९)। चाण्डालरूपसे उत्तङ्कको अमृत पिलानेके लिये इन्द्रजित्-राक्षसराज रावणका पुत्र, इसका लक्ष्मणके साथ प्रकट होना (आश्व० ५५ । १८-१९)। मुनिके इनकार युद्ध (वन० २८५। ८)। इसके द्वारा राम-लक्ष्मणका करनेपर अन्तर्धान होना (आश्व० ५५ । २२)। ब्राह्मण मूर्छित होना ( बन० २८८ । २६) । लक्ष्मणद्वारा इसका वध ( वन० २८९ । २३)। का रूप धारण करके उत्तङ्ककी सहायता करना ( आश्व० ५८।३२-३३)। उत्तङ्क मुनिके डंडे में वज्रास्त्रका संयोग इन्द्रतापन-वरुणकी सभामें उनकी उपासना करनेवाला करना ( आश्व० ५८ । ३५ )। इनके द्वारा स्वर्गमें एक दैत्य ( सभा० ८। १५)। श्रीकृष्णका स्वागत ( मौसल. ४ । २८) । इन्द्रका इन्द्रतीर्थ-सरस्वती तटवर्ती एक तीर्थ, जहाँ इन्द्रने सौ यज्ञोंयुधिष्ठिरको अपने रथपर बैठकर सदेह स्वर्ग चलने के लिये का अनुष्ठान किया था; इसकी विशेष महिमा (शल्य. कहना और उनके आश्रितवात्सल्यकी परीक्षा करना ४८। १८, ४९ । २-५)। (महाप्रस्था० ३। १-२९)। धर्मप्रेरित इन्द्रके द्वारा इन्दतोया-गन्धमादनपर्वतके निकट बहनेवाली एक नदो, युधिष्ठिरकी पुनः परीक्षा--देवदूतद्वारा उन्हें मायामय यहाँ स्नान और तीन रात उपवासका फल अश्वमेधका नरकका दर्शन करवाना (स्वर्गा० २ अ०में)। पुण्य (अनु० २५ । ११)। महाभारतमें आये हुए इन्द्रके नाम---अदितिनन्दन, इन्द्रदमन-एक प्राचीन नरेश । इनके द्वारा ब्राक्षणको धन आखण्डल, अमरश्रेष्ठ, अमराधिप, अमरराल, अमरेश, दान (शान्ति. २५ । १८)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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