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स्वयंजात
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( ४०० )
होकर लोग वेदनासे स्वयं कराह उठते हैं । स्वन ( चीत्कार ) करने में कारण होनेसे इनका नाम हुआ (वन० २१९ | १५ ) ।
'स्वन'
स्वयंजात- विवाहिता पत्नीसे अपने द्वारा उत्पन्न पुत्र (बन्धुदायाद ) ( आदि० ११९ । ३३ ) ।
स्वयंप्रभा - एक अप्सरा, जिन्होंने अर्जुनके स्वागतमें इन्द्रभवनमें नृत्य किया था ( वन० ४३ । २९ ) ।
स्वयंवर - (१) आदिपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय
१८३ से १९१ तक ) | ( २ ) राजाओंकी एक सभा, जिसमें राजकन्याएँ स्वयं अपने लिये वरका वरण करती हैं ( वन० ५४ । ८ ) ।
स्वराष्ट्र - एक भारतीय जनपद ( भीम० ९ । ४८ ) । स्वरूप - एक दैत्य, जो वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना करता है ( सभा० ९ । १४ ) । स्वर्ग-पुण्य कर्मों से प्राप्त होनेवाला देवलोक, जिसमें इन्द्रलोक प्रधान है। राजा ययाति स्वर्गलोकमें जाकर देवभवनमें निवास करते थे । वहाँ देवताओं, साध्यगणों, मरुद्गणों तथा वसुओंने उनका बड़ा सत्कार किया था। वहाँ इन्द्रके साथ बातचीत करनेका उन्हें अवसर मिला था ( आदि० ८७ । १-३ ) । स्वर्गलोकमें जो रमणीय इन्द्रपुरी है, वह सौ योजन विस्तृत और एक हजार दरबाजसे सुशोभित है । वहाँ ययातिने एक हजार वर्षोंतक निवास किया था। वहीं नन्दनवन है, जहाँ इच्छानुसार रूप धारण करके अप्सराओंके साथ विहार करते हुए वे दस लाख वर्षोंतक रहे ( आदि० ८९ । १६,१९ ) । साधु पुरुष स्वर्गलोकके सात बड़े दरवाजे बतलाते हैं, जिनके द्वारा प्राणी इसमें प्रवेश करते हैं-तप, दान, शम, दम, लज्जा, सरलता और समस्त प्राणियोंके प्रति दया ( आदि० ९० । २२ ) । स्वर्ग में जो इन्द्रकी सभा है, उसकी लंबाई डेढ़ सौ और चौड़ाई सौ योजनकी है ! वह आकाश में विचरनेवाली और इच्छा के अनुसार मन्द या तीव्र गति से चलनेवाली । उसकी ऊँचाई भी पाँच योजन है । उसमें बुढ़ापा, शोक और थकावटका प्रवेश नहीं है । वहाँ भय नहीं है। वह मङ्गलमयी और दिव्य शोभासे सम्पन्न है । उसमें ठहरनेके लिये सुन्दर-सुन्दर महल और बैठने के लिये उत्तमोत्तम सिंहासन बने हुए हैं। वह रमणीय सभा दिव्य वृक्षोंसे सुशोभित है । वहाँ इन्द्राणी शची और स्वर्गलोककी लक्ष्मी के साथ देवराज इन्द्र सर्वश्रेष्ठ सिंहासन पर विराजमान होते हैं । गन्धर्व और अप्सराएँ नृत्य, वाद्य एवं गीतोंद्वारा उनका मनोरञ्जन करती हैं ( सभा० ७ अध्याय ) । स्वर्गमें राजसूय के प्रभावसे राजा हरिश्चन्द्रको सर्वोत्तम सम्पत्ति प्राप्त
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स्वर्ग
हुई थी। उसे देखकर राजा पाण्डु चकित हो गये थे और उन्होंने नारदजीके द्वारा युधिष्ठिर के पास राजसूय यश करने के लिये संदेश भेजा था ( सभा० १२ । २३२६ ) । सत्यभामाने श्रीकृष्णके साथ स्वर्गमें जाकर वहाँका वैभव देखा था और वहाँ उन्हें देवमाता अदितिका आशीर्वाद प्राप्त हुआ था ( सभा० ३८ । २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८११-८१२ ) । अर्जुनने स्वर्गलोकको जाते समय ऊपर जाकर सहस्रों अद्भुत विमान देखे । वहाँ न सूर्य प्रकाशित होते हैं न चन्द्रमा । अग्निकी प्रभा भी वहाँ काम नहीं देती है । स्वर्गके निवासी अपने पुण्य कर्मोंसे प्राप्त हुई अपनी ही प्रभासे प्रकाशित होते हैं । स्वर्गद्वारपर अर्जुनको सुन्दर विजयी गजराज ऐरावत खड़ा दिखायी दिया, जिसके चार दाँत बाहर निकले थे ( वन ० ४२ । ४० ) । सिद्धों और चारणोंसे सेवित रमणीय अमरावतीपुरी सभी ऋतुओंके फूलों और पुण्यमय वृक्षोंसे सुशोभित है । अप्सराओंसे सेवित नन्दनवनकी शोभा अद्भुत है, जो तपस्या और अग्निहोत्र से दूर रहे हैं, जिन्होंने युद्धमें पीठ दिखा दी है, वैसे लोग पुण्यात्माओंके उस लोकका दर्शन नहीं कर सकते हैं । जो यज्ञ, व्रत, वेदाध्ययन, तीर्थस्नान और दान आदि सत्कर्मों से वञ्चित हैं, शराबी, गुरुपत्नीगामी, मांसाहारी तथा दुरात्मा हैं, वे भी उस दिव्यलोकका दर्शन नहीं पा सकते ! देवताओं, सिद्धों और महर्षियोंने वहाँ अर्जुनका स्वागत-सत्कार किया । अप्सराओंने नृत्य और गीतोंद्वारा उनका मनोरञ्जन किया ( वन० ४३ अध्याय ) । जिसे स्वर्लोक कहते हैं, वह यहाँसे बहुत ऊपर है । वहाँ पहुँचने के लिये ऊपरको जाया जाता है; इसलिये उसका एक नाम ऊर्ध्वग भी है। वहाँ जानेके लिये जो मार्ग है, वह बहुत उत्तम है। वहाँके लोग सदा विमानोंपर विचरा करते हैं । जिन्होंने तपस्या नहीं की है, बड़े-बड़े यज्ञद्वारा यजन नहीं किया है तथा जो असत्यवादी एवं नास्तिक हैं, वे उस लोकमें नहीं जा पाते हैं । धर्मात्मा, मनको वशमें रखनेवाले, शम-दमसे सम्पन्न, ईर्ष्यारहित, दान-धर्मपरायण तथा युद्धकला में प्रसिद्ध शूरवीर मनुष्य ही वहाँ सब धर्मो में श्रेष्ठ इन्द्रियसंयम और मनोनिग्रहरूपी योगको अपनाकर सत्पुरुषद्वारा सेवित पुण्यवानोंके लोकोंमें जाते हैं । वहाँ देवता, साध्य, विश्वेदेव, महर्षिगण, याम, धाम, गन्धर्व तथा अप्सरा- इन सब देवसमूहों के अलग-अलग अनेक प्रकाशमान लोक हैं, जो इच्छानुसार प्राप्त होनेवाले भोगों से सम्पन्न, तेजस्वी तथा मङ्गलकारी हैं। स्वर्गमें तैंतीस हजार योजनका सुवर्णमय एक बहुत ऊँचा पर्वत है, जो मेरुगिरिके नामसे विख्यात है। वहीं देवताओंके