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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तुभ स्वन २२८ । १७)। अपने बड़े भाई जरितारिसे अपनी रक्षा- शिखण्डिनीको पुरुषत्वका दान ( उद्योग. १९२।९)। के लिये कहना ( आदि० २३९ । ४)। इसके द्वारा इसके लिये स्त्री ही बने रहनेके निमित्त कुबेरका शाप अग्निकी स्तुति ( आदि० २३१ । १२-१४)। अग्नि- (उद्योग. १९२ । ४५-४७)। कुबेरद्वारा शापका देवकी कृपासे खाण्डववनदाहके समय इसकी रक्षा अन्त बतलाया जाना ( उद्योग० १९२ । ५०)। (आदि० २३१ । २१)। स्थूलकेश-एक प्राचीन ऋषि, जो सम्पूर्ण प्राणियोंके हितमें स्तुभ-भानु नामक अग्निके छः पुत्रोंमेंसे एक (वन० लगे रहते थे (आदि० ८ । ५)। इनके द्वारा जंगलमें २२१ । १५)। अनाथ पड़ी हुई प्रमद्वरा' का पालन-पोषण, नामकरण स्त्रीपर्व-महाभारतका एक प्रधान पर्व । एवं महर्षि रुरुको वाग्दान (आदि.८।९-१६)। स्त्रीराज्य-प्राचीन कालका एक राज्य, जहाँके नरेश युधिष्ठिर- स्थूलवालुका-एक पवित्र नदी, जिसका जल भारतवासी के राजसूय-यज्ञमें आये थे ( वन० ५१ । २५)। पीते हैं (भीष्म० ९ । १५)। स्त्रीविलापपर्व-स्त्रीपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय स्थूलशिरा-एक ऋषि, जो राजा युधिष्ठिरकी सभामें १६ से २५ तक)। विराजते थे ( समा० ४। ११) । राजा युधिष्ठिरका इनके रमणीय आश्रमपर जाना (वन० १५५।८)। स्थण्डिलेयु-पूरुके तीसरे पुत्र रौद्राश्वके द्वारा मिश्रकेशी इनका हस्तिनापुरमें दूत बनकर जाते हुए श्रीकृष्णसे मार्गमें नामक अप्सराके गर्भसे उत्पन्न एक महाधनुर्धर पुत्र भेंट करना ( उद्योग० ८३ । ६४ के बाद दा० पाठ)। (आदि० ९४ । ८-१०)। ये पूर्वकालमें मेरुके पूर्वोत्तर भागमें तपस्या करते थे। स्थाणु-(१)ब्रह्माजीके मानसपुत्र, जो मरीचि आदि छः पुत्रों इनकी वायुपर प्रसन्नता और वृक्षोंपर रुष्ट होकर उन्हें से भिन्न थे। ग्यारहों रुद्र इन्हींके पुत्र थे (आदि० शाप देना (शान्ति. ३४२ । ५९)। ये शरशय्यापर ६६ । १-३)। (२) ब्रह्माजीके पौत्र एवं स्थाणुके पड़े हुए भीष्मजीको देखने के लिये आये थे (अनु. पुत्र, जो ग्यारह रुद्रों से एक हैं (आदि०६६ । ३)। २६ । ५)। (३) एक महर्षि, जो इन्द्रकी सभामें विराजते थे (सभा० ७ । १७)। स्थूलाक्ष-एक दिव्य महर्षि, जो शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मस्थाणुवट-कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक प्राचीन तीर्थ, जीको देखनेके लिये आये थे (अनु. २६।७)। वहाँ स्नान करके रातभर निवास करनेवाला मनुष्य रुद्र- स्मृति-स्मरणकी अधिष्ठात्री देवी, जो कुमार महासेनकी लोकमें जाता है (वन० ८३ । १७८-१७९)। सेनाके आगे-आगे चलती थीं (शल्य. ४६ । ६४)। स्थाणुस्थान-महात्मा स्थाणुका मुञ्जवट नामक स्थान, जहाँ स्यमन्तक-एक दिव्य मणि, जो भगवान् सूर्यन सत्राजितको एक रात रहनेसे गणपति-पदकी प्राप्ति होती है (वन० दी थी। सत्राजित् और प्रसेनजित्के यहाँ जो स्यमन्तक८३ । २२ )। सरस्वतीके पूर्वतटपर जो वसिष्ठजीका मणि थी, उससे प्रचुरमात्रामें सुवर्ण झरता रहता था आश्रम है, यहीं भगवान् स्थाणुने तप, सरस्वतीका (समा० १४ । ६० के बाद दा० पाठ)। (कृतवर्माके पूजन और यज्ञ करके तीर्थकी स्थापना की थी, षडयन्त्रसे यह मणि चुरायी गयी और सत्राजित् मार डाले इसलिये यह स्थान स्थाणुतीर्थके नामसे प्रसिद्ध हुआ। गये) सात्यकिने इस घटनाका भगवान् श्रीकृष्णको स्मरण यही देवताओंने स्कन्दका सेनापतिके पदपर अभिषेक कराया था (मौसक० ३।२१)। किया था (शल्यः ४२ । ४-७)। स्यूमरश्मि-एक प्राचीन ऋषि, जो गायके भीतर प्रविष्ट स्थिर-मेरुद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक। हुए थे । इनका कपिलके साथ संवाद तथा इनके द्वारा दूसरेका नाम अतिस्थिर था (शल्य० ४५।४८)। यज्ञकी अवश्यकर्तव्यताका निरूपण (शान्ति. २६८ अध्याय ) । प्रवृत्ति-निवृत्ति मार्गके विषयमें स्यूमरश्मि स्थूण-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेसे एक (अनु० ।। और कपिलका संवाद (शान्ति. २६९ अध्याय)। इनके संवादमें-चारों आश्रमोंमें उत्तम साधनोंके द्वारा स्थूणकर्ण-एक ऋषि, जो अजातशत्रु युधिष्ठिरका आदर ब्रह्मकी प्रासिका कथन (शान्ति० २.. अध्याय)। करते थे (वन० २६ । २३)। स्थूणाकर्ण एक यक्ष, जिसने शिखण्डीको अपना पुरुषत्व सज-एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३३)। दिया था। इसका शिखण्डिनीका मनोरथ पूर्ण करनेकी स्वक्ष-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ४५)। प्रतिज्ञा करना (उद्योग० १९१ । २४-२५)। इसके द्वारा खन-सत्यके पुत्र । ये रोगकारक अग्नि हैं । इनसे पीड़ित For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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