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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौभपति ( ३९८ ) स्तम्बमित्र पाह २१५ । ८-१४ ) । युधिष्ठिरका यहाँ आगमन और माता स्वीकार करना (वन० २३० । १५)। माताअर्जुनके पराक्रमको सुनकर प्रसन्नताका अनुभव करना ओंको पीडाकारक ग्रह बननेका आदेश (वन० २३० । (वन० ११८ । ४-७)। २२) । इनके द्वारा स्वाहा देवीका सत्कार (वन० सौभपति-शाल्वराज ( आदि० १०२ । ६१ ) । २३१ । ५-६)। रुद्रदेवके साथ इनकी भद्रवट-यात्रा ( देखिये शाल्व) (वन० २३११५४)। मारुतका स्कन्दकी रक्षाका भार सौभर-पाञ्चजन्य नामक पितरोंके लिये उत्पन्न किये हुए पाँच स्वीकार करना ( वन० २३१ । ५६ ) । इनके द्वारा पुत्रों से एक । इनकी उत्पत्ति वर्चाके अंशसे हुई थी महिषासुरका वध ( वन० २३१ । ९६ )। इनके (वन० २२० । ६-९)। प्रसिद्ध नामोंका वर्णन (वन० २३२ । ३-९)। इनकी उत्पत्तिकी कथा (शल्य० ४४ अध्याय )। इनका सौमदत्ति-सोमदत्तपुत्र भूरिश्रवा ( विशेष देखिये अभिषेक और इनके महापार्षदोंके नाम-रूप आदिका भूरिश्रवा)। वर्णन (शल्य० ४५ अध्याय)। इनके द्वारा तारकासुर, सौम्याक्षद्वीप-एक द्वीपका नाम ( सभा० ३८ । २९ के महिषासुर, त्रिपाद और हृदोदरका वध ( शल्य. बाद दा० पाठ)। ४६ । ७३-७५)। इनके द्वारा बाणासुरकी पराजय और सौरभेयी-एक अप्सरा, जो वर्गाकी सखी है (आदि० क्रौञ्च-पर्वतका विदारण ( शल्य. ४६ । ८३-८४ )। २१५ । २०)। यह ब्राह्मणके शापसे ग्राह' भावको इनके द्वारा तारकके पुत्र और उसके छोटे भाईका वध प्राप्त हुई थी (आदि० २१५ । २३ )। अर्जुनद्वारा (शल्य. ४६ । ९०-९१ )। भगवान् शंकरने इन्हें इसका ग्राह-योनिसे उद्धार हुआ (आदि० २१६ । २१)। भूतोका श्रेष्ठ राजा बनाया (शान्ति. १२२ । ३२)। यह कुबेरकी सभामें उनकी सेवाके लिये उपस्थित होती है हिमालयपर शक्ति गाड़ना और उसे उखाड़नेकी घोषणा (सभा० १० । ११)। करना (शान्ति० ३२७ । ९-११)। इनकी उत्पत्तिका सौवीर-सिन्धु अथवा उससे लगा हुआ देश, जहाँका वर्णन तथा इनके विभिन्न नामोंका कारण ( अनु० ८५ । राजा विपुल अर्जुनके हाथसे मारा गया था (आदि. ६८-८२ ) । इनके द्वारा तारकासुरके वधका पुनर्वर्णन १३८ । २०-२२)। ( अनु. ८५ । १६४ )। इनकी उत्पत्तिके प्रसङ्गका सौवीरी-राजा पूरुके पौत्र एवं प्रवीरके पत्र मनस्यकी पुनः उल्लेख (अनु० ८६ । ५-१४) । इनके देवपत्नी ( आदि० ९४ । ५-७)। सेनापति-पदपर अभिषेकका दुबारा वर्णन ( अनु० ८६ । सौशल्य-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ४०)। २८ )। इनके द्वारा तारकासुरके वधकी पुनः चर्चा ( अनु० ८६ । २९ )। इनका धर्म-सम्बन्धी रहस्य सौश्रुति-त्रिगर्तराज सुशर्माका भाई, जिसका अर्जुनके साथ । (अनु० १३४ । ३-७)। युद्ध और उनके द्वारा इसका वध (कर्ण०२७।३-२२)। स्कन्दग्रह-मातृकागण और पुरुषग्रहोंका समुदाय ( वन० सौहृद-एक दक्षिणभारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ५९)। २३० । ४३-४४)। स्कन्द-देव-सेनापति कुमार कार्तिकेय, जो खाण्डव-वनके युद्ध में स्कन्दापस्मार-स्कन्दके शरीरसे उत्पन्न हुआ प्रसव-ग्रह शक्ति लेकर श्रीकृष्ण और अर्जुनसे युद्ध करनेके लिये आये (वन० २३० । २६)। थे (आदि० २२६ । ३३)। इनका प्राकट्य और स्कन्ध-धृतराष्ट्र के कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके स्कन्द नाम पड़नेका कारण (वन० २२५ । १६-१८)। सर्पसत्रमें दग्ध हो गया ( आदि० ५७ । १८)। इनका क्रौञ्च पर्वतको विदीर्ण करना ( वन० २२५।। ३३) । इनका मातृकाओंको माता स्वीकार करना स्कन्धाक्ष-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. ४५। ६०)। ( वन० २२६ । २४ ) । इनके शरीरसे विशाखकी स्तनकुण्ड-एक तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे वाजपेययज्ञका उत्पत्ति ( वन० २२७ । १६-१७ )। पराजित हुए फल मिलता है (वन० ८४ । १५२)। देवताओंसहित इन्द्रको इनका अभयदान देना (वन० स्तनपोषिक-एक दक्षिणभारतीय जनपद ( भीष्म न २२७ । १८)। इनके पार्षदोंका वर्णन (वन० २२८ अध्याय )। इनका इन्द्रके साथ वार्तालाप, इन्द्रद्वारा देव-सेनापति-पदपर अभिषेका देव-सेनाके साथ इनका स्तनवाल-एक दक्षिणभारतीय जनपद (भीष्म०९।६३)। विवाह ( वन० २२९ अध्याय)। कृत्तिकाओंको माता स्तम्बमित्र-एक शार्ङ्गक, जो मन्दपाल ऋषिके द्वारा स्वीकार करना ( वन० २३० । ६ )। मातृगणोंको जरिता ( पक्षिणी ) के गर्भसे उत्पन्न हुआ था ( आदि० For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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