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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सोमकीर्ति www.kobatirth.org ( ३९७ ) छूटना ( वन० १२८ । ११ - १८ ) । इन्होंने गोदान करके स्वर्ग प्राप्त किया था (अनु० ७६ । २५-२७ ) । इन्होंने जीवनमें कभी मांस नहीं खाया था ( अनु० ११५ । ६३) । सौभद्र गणना है । इनके तृप्त होनेसे सोम देवताकी तृप्ति होती है ( सभा० ११ । ४७-४८ ) । ये सभी पितर ब्रह्माजीकी सभामें उपस्थित हो प्रसन्नतापूर्वक उनकी उपासना करते हैं ( सभा० ११ । ४९ ) । सोमतीर्थ - ( १ ) कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ, जो जयन्तीमें है । वहाँ स्नान करनेसे मनुष्यको राजसूय यज्ञका फल प्राप्त होता है ( वन० ८३ । १९ ) । ( २ ) कुरुक्षेत्रकी सीमा के अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ, जिसमें स्नान करनेसे सोमलोककी प्राप्ति होती है ( वन० ८३ । ११४-११५, १८५ ) । सोमदत्त - कुरुवंशी महाराज प्रतीपके पौत्र एवं वाह्रीकके पुत्र । इनके भूरि, भूरिश्रवा तथा शल नामके तीन पुत्र थे । ये अपने तीनों पुत्रोंके साथ द्रौपदीके स्वयंवरमें पधारे थे ( आदि० १८५ । १४-१५) । युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें भी इनका शुभागमन हुआ था ( सभा० ३४ । ८ ) | देवकी के स्वयंवर के समय शिनिके साथ इनका बाहुयुद्ध तथा शिनिका इन्हें पटककर लात मारना एवं इनकी चुटिया पकड़ना ( द्रोण० १४४ । ११ - १३ ) । शिनिके छोड़ देनेपर इनकी तपस्या और बदला लेनेके लिये वर एवं पुत्र की प्राप्ति ( द्रोण० १४४ । १५-१९ ) । सात्यकिके साथ युद्धमें इनका पराजित होना ( द्रोण ० १५६ । २१-२९ )। सात्यकि एवं भीमसेन के प्रहार से मूर्छित होना ( द्रोण० १५७ । १०-११ ) । सात्यकिद्वारा इनका वध ( द्रोण० १६२ । ३३ ) । इनके शरीरका दाह-संस्कार ( स्त्री० २६ । ३३ ) । धृतराष्ट्रद्वारा इनका श्राद्ध ( आश्रम ० ११ । १७ ) । व्यासजीके आवाहन करनेपर कुरुक्षेत्र में मरे हुए कौरव वीरोंके साथ ये भी गङ्गाजलसे प्रकट हुए थे ( आश्रम ० ३२ । १२ ) । महाभारतमें आये हुए सोमदत्त के नाम-बाहीक बाह्रकात्मज, कौरव, कौरवेय, कौरव्य, कुरुपुङ्गव आदि । सोमधेय - एक पूर्वभारतीय जनपद, जहाँके निवासियों को भीमसेनने पराजित किया था ( सभा० ३० । १० ) । सोमप- ( १ ) स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७०)। ( २ ) एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३४ ) | सोमपद - एक तीर्थ, जहाँ माहेश्वर पदमें स्नान करनेसे अश्वमेध यज्ञका फल मिलता है ( वन० ८४ । ११९ ) । सोमपा - सात पितरोंमेंसे एक । इनकी चार मूर्त पितरोंमें Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोमकीर्ति - धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ६७ । ९९; आदि० ११६ । ८ ) । है (अनु० १६५ । ३३ ) । सोमगिरि - एक पर्वत, जो सायं प्रातः स्मरण करने योग्य सोमश्रवा - एक तपस्यापरायण ऋषि, जो श्रुतश्रवाके पुत्र थे । इनको पुरोहित बनानेके लिये जनमेजयकी इनके पितासे प्रार्थना ( आदि० ३ । १३-१५ ) । ये सर्पिणीके गर्भ से उत्पन्न, तपस्वी और स्वाध्यायशील थे । ब्राह्मणको अभीष्ट वस्तु देनेका इनका गुप्त नियम था । जनमेजय इनके नियमको स्वीकार करके इन्हें अपने साथ ले गये (आदि० ३ | १६-२० ) । सोमा - एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके जन्मोत्सवमें आकर नृत्य किया था ( आदि० १२२ । ६१ ) । सोमाश्रम - एक तीर्थ, जिसकी यात्रा करनेसे मनुष्य इस भूतलपर पूजित होता है ( वन० ८४ । १५७ ) । सोमाश्रयायण - गङ्गातटवर्ती एक प्राचीन तीर्थ । एकचक्रासे पाञ्चाल जाते समय यहाँ पाण्डवोंका आगमन हुआ था । यहाँ स्त्रियोंके साथ चित्ररथ ( गन्धर्व ) जलक्रीड़ा करता था, जो अर्जुनसे पराजित हुआ ( आदि० १६९ । ३-३३)। 1 सौगन्धिक- कुबेरका एक कानन, जिसकी सुगन्धका भार लेकर समीरण कुबेरसभामें धनाध्यक्षकी सेवा करता है ( सभा० १० । ७ ) । सौगन्धिकवन - एक तीर्थभूत वन, ब्रह्मा आदि देवता, तपोधन ऋषि, सिद्ध, चारण, गन्धर्व, किन्नर और बड़ेबड़े नाग निवास करते हैं । वहाँ प्रवेश करते ही मानव सब पापोंसे मुक्त हो जाता है ( वन० ८४ । ४-६ )। सौति - रोमहर्षण - पुत्र उग्रश्रवा, जिन्होंने नैमिषारण्यवासी शौनक आदि ऋषियोंको महाभारत श्रवण कराया था ( आदि० १।५ ) । सोमवर्चा - ( १ ) एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३३) । (२) एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९१ । ३६ ) । सौदास - एक - एक इक्ष्वाकुवंशी राजा ( देखिये कल्माषपाद सौप्तिक - महाभारतका एक प्रमुख पर्व । सौभ - राजा शाल्वका आकाशचारी विमान, जिसे सौभनगर भी कहा जाता था । भगवान् श्रीकृष्णने चक्रद्वारा इसका विध्वंस किया था ( वन० २२ । ३३-३४ ) । सौभद्र - दक्षिण समुद्रके निकटका एक तीर्थ । पाँच नारीतीर्थोंमेंसे एक (आदि० २१५ । १ - ३ ) । वहाँ तीर्थयात्राके लिये अर्जुनका आगमन और शापवश ग्राह बनकर रहनेवाली वर्गा ( अप्सरा ) का उनके द्वारा उद्धार ( आदि० For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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