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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सृष्टि ( ३९६ ) सोमक इन्हें सुवर्णष्ठीवी नामक पुत्र की प्राप्ति (शान्ति०३१ । २३)। सेनोद्योगपर्व-उद्योगपर्वका एक अवान्तर पर्व ( अध्याय पुत्रकी मृत्युपर इनका विलाप (शान्ति. ३१ । ३७)। १ से १९ तक)। नारदजीकी कृपासे पुनः इनके पुत्रका जीवित होना सेयन-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक ( अनु० ( शान्ति० ३१ । ४२)। इन्होंने जीवनमें कभी ४।५८)। मांस नहीं खाया था ( अनु० ११५ । ६३)। (२) सैन्धव-सिन्धदेशके निवासी या स्वामी (वन० ५१ । एक दक्षिणभारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ६३)। २५)। सृष्टि-एक देवी, जो ब्रह्माकी सभामें रहकर उनकी उपासना सैन्धवायन-विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक ( अनु० करती हैं ( सभा० ११ । ४७)। ४। ५१)। सेक-एक देश, जिसे दक्षिण-दिग्विजयके अवसरपर सहदेवने सैन्धवारण्य-एक प्राचीन तीर्थ ( वन० ८९ । १५)। जीता था ( सभा० ३१ । ९)। सैन्यनिर्याणपर्व-उद्योगपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय सेदक-एक प्राचीन नरेश, जो नीतिके मार्गपर चलनेवाले। १५१ से १५९ तक)। तथा अस्त्र और उपास्त्रोंकी विद्यामें निपुण थे ( वन० सैरन्ध्री-विराटनगरमें अज्ञातवासके समय द्रौपदीका गुप्त १९६ । २)। इन्होंने अपने पास आये हुए गुरुदक्षिणा नाम तथा सैरन्ध्रीके कार्य एवं स्वरूपका वर्णन (विराट. याचक ब्राह्मणको राजा वृषदर्भके पास भेज दिया था ३ । १८-१९) (विशेष देखिये द्रौपदी)। (वन. १९६ । ४-६)। सैसिरिन्ध्र-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ५७)। सेनजित-(१) एक राजा, जिसे पाण्डवोंकी ओरसे रणनिमन्त्रण भेजनेका निश्चय किया गया था ( उद्योग सोदर्यवान्-जरासंधका ध्वजा-पताकासे मण्डित दिव्य रथ, जिसे इन्द्रने उसके मारे जानेके बाद जोतकर अपने ४ । १३.)। (२) एक प्राचीन राजा । व्यासजीद्वारा इनके अधिकारमें कर लिया था। उसमें दो महारथी योद्धा एक शोकयुक्त उद्गारोंका वर्णन ( शान्ति० २५ । १४-२८)। साथ बैठकर युद्ध कर सकते थे । इसमें बारंबार पुत्रशोकसे दुखी हुए सेनजित्का एक ब्राह्मणके साथ संवाद (शान्ति. १७४ अध्याय)। शत्रुओंपर आघात करनेकी सुविधा थी। यह दर्शनीय तथा दुर्जय था । इसी रथपर आरूढ़ होकर इन्द्रने निन्यानबे सेनानी ( सेनापति )-धृतराष्ट्रका एक पुत्र ( देखिये दानवोंका वध किया था । इसके ध्वज आदिकी विशेषतासेनापति)। का वर्णन (समा० २४ । १२-२२)। यह रथ इन्द्रसे सेनापति ( सेनानी )-धृतराष्ट्रके सौ पुत्रों से एक उपरिचर वसुको, वसुसे राजा बृहद्रथको और बृहद्रथसे (आदि० ६७ । ९७, आदि. ११६ । ९)। जरासंधको प्राप्त हुआ था ( सभा० २४ । ४८)। भीमसेनद्वारा इसका वध (भीष्म०६४ । ३२)। सेनामुख-सेनाविशेष । पत्तिकी तिगुनी संख्याको सेनामुख साम सोम-(१) चन्द्रमा । इनके सत्ताईस स्त्रियाँ थीं ) (आदि. ६६ । १६)। सप्तर्षियोंद्वारा पृथ्वी-दोहनके कहते हैं (आदि० २ । २०)। समय ये बछड़ा बने थे (द्रोण० ६९ । २३)। (विशेष सेनाविन्दु-(१) एक क्षत्रिय राजा, जो 'तुहुण्ड' नामक देखिये चन्द्रमा ।) (२) भानु नामक अनिकी तीसरी पत्नी दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुआ था (आदि० ६७ । १९-२०)। निशाके गर्भसे उत्पन्न दो पुत्रों से एक । इनके दूसरे भाईका यह द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था (आदि०१८५ । ९)। नाम अग्नि है । इनकी बहिनका नाम रोहिणी है । इनके अर्जुनने उत्तर-दिग्विजयके अवसरपर उलूकराजके वैश्वानर आदि पाँच भाई और हैं (वन० २२१ । १५)। साथ इसपर आक्रमण करके इसे राज्यच्युत किया था (सभा० २७ । १०)। पाण्डवोंकी ओरसे इसे रण सोमक-(१) सोमकवंशी क्षत्रियोंका समुदाय (आदि० निमन्त्रण भेजनेका निश्चय किया गया था ( उद्योग. १२२ । ४०)। (२) एक प्राचीन राजा, जो यम४ । १३)। इसका दूसरा नाम क्रोधहन्ता था। यह सभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं (सभा० श्रीकृष्ण एवं भीमसेनके समान पराक्रमी माना जाता ८।८)। ये पाञ्चालदेशके प्रसिद्ध दानी राजा थे। था (उद्योग० १७१। २०-२१)। इसके रथके घोड़ोंका इनके पिताका नाम सहदेव था (वन० १२५ । २६)। वर्णन (द्रोण. २३ । २५-२६)। इसके मरनेकी सौ पुत्रोंकी प्राप्तिके लिये, अपने इकलौते पुत्रकी बलि चर्चा (कर्ण०६ । ३२) । (२) पाण्डवदलका देकर, इनके द्वारा यज्ञका सम्पादन और पुत्रोकी प्राप्ति एक पाञ्चाल योद्धा । कर्णद्वारा इसका वध (कर्णः (वन० १२८ । २-७)। इनका अपने पुरोहितके साथ ४८ । १५)। समान रूपसे नरक और पुण्य लोर्कोका भोग भोगकर For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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