________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूर्यतीर्थ
( ३९५ )
संजय
१५ । १९-२०)। जिधर सूर्यका उदय हो वही पूर्व दिशा त्रिगतॊको मारकर ये उनकी सेनामें घुस गये थे । है। पूर्व दिशा ही सूर्यमार्गका द्वार है ( उद्योग. १००। (विराट. ३२ । १९-२१)। ये उदार : ३-५)। ये दूसरोका अहित करनेवाले कृतघ्न असुरोंका (उद्योग० १७१ । १५-१६)। द्रोणद्वारा इनके मारे क्रोधपूर्वक विनाश करते हैं ( उद्योग० १०८ । १६)। जानेकी चर्चा ( कर्ण० ६ । ३४ )। पूर्वकालमें भगवान् सूर्यने वेदोक्त विधिसे यज्ञ करके आचार्य सूर्यध्वज-एक राजा, जो द्रौपदी-स्वयंवरमें उपस्थित था कश्यपको दक्षिणारूपमें जिस दिशाका दान किया था, उसे (आदि० १८५ । १०)। दक्षिण दिशा कहते हैं ( उद्योग० १०९ । १)। जिसमें सूर्यनेत्र-गरुड़की प्रमुख संतानों की परम्परामें उत्पन्न एक दिनके पश्चात् सूर्यदेव अपनी किरणोंका विसर्जन करते हैं,
पक्षी ( उद्योग० १०१ । १३)। वही पश्चिम दिशा है ( उद्योग० ११० । २)। कर्णके प्रति कुन्तीके कथनका सर्यद्वारा समर्थन । उद्योग सूर्यमास-कोरवपक्षका योद्धा, जो अभिमन्युद्वारा मारा गया १४६ । १-२)। इनके विस्तार आदिका वर्णन (भीष्मः था (द्रोण० ४८ । १५-१६)। १२ । ४४-४५)। कर्ण और अर्जुनके द्वैरथयुद्ध में कर्णकी सूर्यवर्चा-एक देवगन्धर्व, जो कश्यपद्वारा मुनिके गर्भसे उत्पन्न विजयके लिये इन्द्रसे इनका विवाद (कर्ण० ८७।५७-५९)। हुआ था (आदि० ६५ । ४२)। यह अर्जुनके जन्मोत्सवइनके द्वारा स्कन्दको पार्षद प्रदान (शल्य० ४५।३१)। में आया था (आदि० १२२ । ५५)। महादेवजीने इन्हें तेजस्वी ग्रहोंका अधिपति बनाया सूर्यवर्मा-त्रिगर्तदेशका राजा, जो अश्वमेधीय अश्वके पीछे (शान्ति. ११२।३१) । इन्होंने याज्ञवल्क्यको वेद- गये हुए अर्जुनके साथ युद्ध में परास्त हुआ था (आश्व० ज्ञानका वरदान दिया (शान्ति० ३१८ । ६-१२)। ७४ । ९-१३)। इसके भाईका नाम केतुवर्मा था, जो महापद्मनामक नागसे इनका उञ्छ एवं शिलवृत्तिकी अर्जुनद्वारा मारा गया था (आश्व० ७४ । १४-१५)। महिमाका वर्णन करना ( शान्ति० ३६३ अध्याय)। सूर्यश्री-एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९१ । ३३)। कार्तिकेयको सुन्दर कान्तिकी भेंट देना (अनु० ८६ । २३)। महर्षि जमदग्निसे क्षमा-प्रार्थना करके उनकी
- सूर्यसावित्र-एक सनातन विश्वेदेव ( अनु० ९१ । ३४ )। शरणमें आना ( अनु० ९५ । २० से ९६ । ७ तक)। सूर्याक्ष-एक राजा, जो क्रथननामक असुरके अंशसे उत्पन्न जमदग्नि ऋषिको छाता और जूता देना (अनु० ९६। हुआ था (आदि० ६७ । ५७)। १४-१५)। देवासुर-संग्राममें राहुद्वारा सूर्य और चन्द्रमाके संजय-(१) एक प्राचीन नरेश (आदि० १ । २२५)। घायल होनेसे सब ओर अन्धकार छा गया । देवतालोग ये यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं असुरोद्वारा मारे जाने लगे । उस समय देवताओंकी (सभा० ८।१५) । वितिके पुत्र, जिनके पर्वत और प्रार्थनासे अत्रिमुनिने चन्द्रमाका खरूप धारण किया और नारद ये दोनों ऋषि मित्र थे (द्रोण० ५५ । ५)। सूर्यदेवको तेजस्वी बनाया था (अनु० १५६ । २-१०)। इनका नारदको अपनी कन्या देना स्वीकार करना कुन्तीने व्यासजीके समक्ष अपने गर्भसे सूर्यदेवताद्वारा । (द्रोण. ५५ । १३ ) । पुत्रकी कामनासे कर्णकी उत्पत्तिका प्रसङ्ग सुनाया था (आश्रम० ३० अध्याय)। ब्राह्मणोंकी आराधना करना (द्रोण० ५५। १८-१९)। (२) एक विख्यात दानव, जो कश्यपद्वारा कद्रूके गर्भसे नारदजीसे पुत्रप्राप्तिका वर माँगना ( द्रोण० ५५ । उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६५ । २६) । यह राजा २२-२३)। इन्हें सुवर्णष्ठीवी नामक पुत्रकी प्राप्ति दरदके रूपमें पृथ्वीपर पैदा हुआ था (आदि०६७।५८)। (द्रोण. ५५ । २४)। लुटेरोंद्वारा मारे जानेपर सूर्यतीर्थ-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ,
इनका पुत्रके शोकसे विलाप करना ( द्रोण० ५५ । जहाँ स्नान और देवता-पितरोंका अर्चन करके उपवास
३३-३४ )। इन्हें नारदजीका षोडशराजकीयोपाख्यान
सुनाकर समझाना (द्रोण० ५५। ३६ से द्रोण ७१ । ३ करनेवाला पुरुष अग्निष्टोम यज्ञका फल पाता और सूर्यलोकमें
तक )। नारदजीके समझानेसे इनका शोकरहित होना जाता है ( वन० ८३ । ४८-४९)।
(द्रोण०७१ । ४-५) । नारदजीके प्रभावसे इनके सूर्यदत्त-विराटके भाई ( उद्योग० ५७ । ६) । इनका पुत्रका जीवित प्रकट होना (द्रोण. ७१ । ८)।
एक नाम शतानीक भी था (विराट० ३१ । ११-१२)। भगवान् श्रीकृष्णका युधिष्ठिरको समझानेके लिये नारदइन्होंने गोहरणके समय कवच धारण करके युद्धके लिये सुंजय-संवादको प्रस्तुत करके षोडशराजकीयोपाख्यान प्रस्थान किया था (विराट० ३१ । १५)। इन्होंने सुनाना (शान्ति. २९ अध्याय ) । संजयका पर्वत त्रिगोंकी सेनापर आगेसे आक्रमण किया था और सौ मुनिसे पुत्र-प्राप्तिके लिये वर माँगना (शान्ति०३१ । १५)।
For Private And Personal Use Only