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सुस्थल
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सुस्थल - एक भारतीय जनपद और वहाँ के निवासी ( सभा० १४ । १६) ।
सुखर - गरुड़की प्रमुख संतानोंकी परम्परामें उत्पन्न एक पक्षी (उद्योग० १०१ । १४) ।
सूर्य
सूक्ष्म - एक विख्यात दानव, जो कश्यपद्वारा दनुके गर्भ से उत्पन्न हुआ था (आदि० ६५ । २५ ) । यही इस भूतलपर राजा बृहद्रथके रूपमें उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६७ । १८-१९) ।
सुहोत्र - (१) एक प्राचीन नरेश ( आदि ० १ । २२६ ) । सम्राट भरत पौत्र एवं भुमन्युके ज्येष्ठ पुत्र थे । इनकी माताका नाम 'पुष्करिणी' था ( आदि० ९४ । २४ ) । इन्हें ही भूमण्डलका राज्य प्राप्त हुआ और इन्होंने राजसूय तथा अश्वमेध आदि अनेक यज्ञ किये थे । इनके राज्यकी विशेषता ( आदि० ९४ । २५-२९ । इनके द्वारा इक्ष्वाकुकुलनन्दिनी सुवर्णाके गर्भ से अजमीढ़, सुमीढ़ तथा पुरुमीढ़की उत्पत्ति ( आदि० ९४ । ३० ) । इनकी दानशीलता और पराक्रम आदि गुणोंका विशेष वर्णन ( द्रोण ० ५६ अध्याय ) । ये अतिथि सत्कारके प्रेमी थे । इनके राज्यमें इन्द्रने एक वर्षतक सुवर्णकी वर्षा की थी । नदियाँ अपने जलके साथ सुवर्ण बहाया करती थीं । इन्द्रने बहुत-से सोनेके कछुए, केकड़े, नाकेँ, मगर और सूँस आदि उन नदियों में गिराये थे । राजाने सारी सुवर्ण-राशि ब्राह्मणोंमें बाँट दी थी ( शान्ति० २९ । २५ - २९ ) । ( २ ) मद्रराज द्युतिमान्की पुत्री विजयाके गर्भसे पाण्डुकुमार सहदेवद्वारा उत्पन्न ( आदि० ९५ । ८० ) । ( ३ ) एक ऋषि, जो अजातशत्रु युधिष्ठिरका आदर करते थे ( वन० २६ । २४ ) । ( ४ ) एक कुरुवंशी नरेश, इनका राजा उशीनरवंशी शिविके मार्गको रोकना । नारदजीके कहनेपर इनका शिविको मार्ग देना ( वन० १९४ । २,७ ) | ( ५ ) एक राक्षस, जो प्राचीनकालमें इस भूतलका शासक था, पंरतु कालवश इसे छोड़कर चल बसा (शान्ति० २२७/५१) । सुहोता - सम्राट् भरतके पौत्र एवं भुमन्युके पुत्र । इनकी माताका नाम 'पुष्करिणी' था ( आदि० ९४ । २४ ) । सुझ - ( १ ) पूर्व- भारतका एक प्राचीन जनपद, जिसपर महाराज पाण्डुने विजय पायी थी (आदि ०११२ । २९ ) । भीमसेनने भी पूर्व-दिग्विजयके समय इस जनपदको जीता था ( सभा० ३० । १६ ) । ( २ ) उत्तरभारतका एक पर्वतीय प्रदेश, जिसे अर्जुनने उत्तर- दिग्विजयके समय जीता था सभा० २७।२१ ) ।
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सुहनु-एक दानव, जो वरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना सूचीवक्त्र - स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ । ७२ ) । करता है (सभा० ९ | १३) । सुहवि-सम्राट् भरतके पौत्र एवं भुमन्युके पुत्र । इनकी माताका नाम 'पुष्करिणी' था ( आदि० ९४ । २४ )। सुहस्त - धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक (आदि० ६७ । १०२; आदि० ११६ । १० ) । भीमसेनद्वारा इसका वध ( द्रोण० १५७ । १९ ) ।
सूत - एक ऋषि, जो शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मंजीको देखनेके लिये आये थे ( शान्ति० ४७ । १२ ) । ये विश्वामित्रके ब्रावादी पुत्र ( अनु० ४ । ५७ ) । सूपकर्ता - भाँति-भाँतिके व्यञ्जन बनानेवाला रसोइया (विराट० २ । ९ ) ।
सूर्य - ( १ ) भगवान् सूर्य या सविता । दिवःपुत्र आदि बारह नाम विवस्वान् (सूर्य) के ही बोधक माने गये हैं । इनमें अन्तिम नाम रवि है । रविको 'मा' कहा गया है । उनके पुत्र देवभ्राट् हैं ( आदि० १ । ४२-४३ ) । छलसे अमृतपान करते हुए राहुके गुप्त भेदका इनके द्वारा उद्घाटन हुआ (आदि० १९ । ५ ) । इसीसे इनके प्रति राहुकी शत्रुता हो गयी ( आदि० १९ ।९ ) । राहुसे पीड़ित हो इनका जगत्के विनाशके लिये संकल्प हुआ ( आदि ० २४ । १० ) । फिर देवताओंकी प्रेरणासे अरुणने इनका सारथ्य ग्रहण किया ( आदि० २४ २० ) । कश्यपके द्वारा अदिति के गर्भसे प्रकट बारह आदित्य इन्हींके स्वरूप हैं ( आदि० ६५ | १४-१५ ) । इनकी भार्या त्वष्टाकी परम सौभाग्यवती पुत्री "संज्ञा' देवी हैं ( आदि० ६६ । ३५) । इनके द्वारा कुन्तीके गर्भ से कर्णका जन्म ( आदि० ११० । १८ ) । वसिष्ठजीद्वारा इनकी स्तुति ( आदि ० १७२ । १८ के बाद दा० पाठ ) । वसिष्ठकी प्रार्थनापर इनके द्वारा अपनी पुत्री तपतीका संवरणके लिये समर्पण ( आदि० १७२ । २६ । धौम्यद्वारा युधिष्ठिरको सूर्यदेवके एक सौ आठ नामोंका उपदेश, युधिष्ठिरद्वारा इनकी पूजा, उपासना और पूर्वोक्त नामोंका जप एवं स्तुति, इससे संतुष्ट होकर इनका उन्हें दर्शन एवं अन्नपात्र देना तथा चौदहवें वर्ष में राज्य प्राप्त होनेका आशीर्वाद प्रदान करना ( वन० ३ । १५ – ७४ ) । धौम्यद्वारा इनकी गतिका वर्णन ( वन० १६३ । २८-४२ ) । कर्णको स्वप्न में दर्शन देकर इनका इन्द्रको कवच - कुण्डल न देनेका आदेश देना ( वन० ३०० । १०–२०; वन० ३०१ अध्याय ) । कर्णसे इन्द्रकी शक्ति लेकर ही कवच-कुण्डल देनेकी सम्मति देना ( वन० ३०२ । ११ - १७ ) । कुन्तीके आवाहनपर प्रकट होना और उनके साथ वार्तालाप करना ३०६ । ८-२८ ) । कुन्तीके उदरमें इनके द्वारा गर्भस्थापन ( वन० ३०७ । २८ ) | द्रौपदीद्वारा भगवान् सूर्यकी उपासना और इनका द्रौपदीकी रक्षाके लिये अदृश्यरूपसे एक राक्षसको नियुक्त कर देना ( विराट०
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