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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुवास्तुक www.kobatirth.org ( ३९३ ) सुवास्तुक - एक राजा, जिसे पाण्डवोंकी ओरसे रणनिमन्त्रण भेजने का निश्चय किया गया था ( उद्योग ० ४ । १३ ) । सुवाह - स्कन्दका एक सैनिक ( शल्य० ४५ | ६६ ) । सुविशाला - स्कन्द की अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । २८ ) । सुवीर - ( १ ) एक राजा, जो क्रोधवशसंज्ञक दैत्यके अंशसे उत्पन्न हुआ था ( आदि० ६७ । ६०) । ( २ ) एक क्षत्रियकुल, जिसमें अजविन्दु नामक कुलाङ्गार राजा उत्पन्न हुआ था (उद्योग०७४ । १४) । ( ३ ) राजा द्युतिमान्के धर्मात्मा जो सम्पूर्ण लोकोंमें विख्यात थे । ये इन्द्रके समान पराक्रमी थे । इनके पुत्रका नाम दुर्जय था अनु० २ । १०-१२ )। पुत्र, सुवेणा - एक नदी, जिसे मार्कण्डेयजीने बालमुकुन्दके उदरमें देखा था ( वन० १८८ । १०४ ) । सुव्रत - ( १ ) एक अनन्तकीर्ति अमित तेजस्वी महात्मा, जिनका पवित्र आश्रम उत्तराखण्ड में है ( वन० ९० । १२ - १३ ) | ( २ ) मित्रद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक । दूसरेका नाम सत्यसंध था ( शल्य० ४५ । ४१ ) । ( ३ ) विधाताद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक । दूसरेका नाम सुकर्मा था ( शल्य० ४५ । ४२ ) । सुशर्मा - ( १ ) वृद्धक्षेमका पुत्र एवं त्रिगर्तदेशका राजा : जो द्रौपदीके स्वयंवरमें गया था ( आदि० १८५ । ९) । इसका दुर्योधनको मत्स्यदेशपर आक्रमण करनेकी सलाह देना ( विराट० ३० । १ - १३ ) । इसके द्वारा विराटनगरपर चढ़ाई ( विराट० ३० । २६ ) । गोहरणके समय इसका युद्धमें राजा विराटको बंदी बनाना ( विराट० ३३ । ७-९ ) । भीमसेनद्वारा जीते-जी इसका पकड़ा जाना ( विराट० ३३ । २५-४८ ) । युधिष्ठिरकी कृपासे इसका ( दासभावसे ) छुटकारा ( विराट० ३३ । ५८६१) । पाण्डवों की ओरसे इसे रणनिमन्त्रण भेजनेका निश्चय किया गया था ( उद्योग० ४। २० ) । प्रथम दिनके संग्राममें चेकितानके साथ इसका द्वन्द्वयुद्ध (भीष्म० ४५ | ६०-६२ ) । अर्जुनद्वारा पराजित होकर युद्धसे हट जाना ( भीष्म० ८२ । १ ) । अर्जुनके साथ युद्ध ( भीष्म० ८४ । ५३३ भीष्म० १०२ । १० - १८ ) । अर्जुन और भीमसेनके साथ युद्ध ( भीष्म० ११४ अध्याय ) । धृष्टद्युम्नके साथ युद्ध ( द्रोण० १४ । ३७-३९ ) । अर्जुनको मारनेके लिये भाइयोसहित इसकी प्रतिज्ञा ( द्रोण० १७ । ११-१८ ) । भाइयों और संशप्तकसेनासहित इसका शपथ खाना (द्रोण० १७ । २९-३६ ) । द्रोणाचार्य के मारे जानेपर युद्धस्थलसे भागना ( द्रोण० १९३ । १८ ) । अर्जुनके साथ युद्ध करते समय संशप्तकद्वारा इसका अर्जुनको रथ और सारथिसहित पकड़वा लेना ( कर्ण० ५३ । १३ - १६ ) । अर्जुनद्वारा इसका मारा जाना (शय० २७ । ४६ ) । महाभारतमें आये हुए सुशर्मा के नाम - प्रस्थलाधिप, म० ना० ५० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुसामा प्रस्थलाधिपति, रुक्मरथ, त्रैगर्त, त्रिगर्त, त्रिगर्ताधिपति, त्रिगर्तराष्ट्र और त्रिगर्तराज आदि । (२) पाण्डवपक्षका एक पाञ्चालयोद्धा । चित्रसेनके साथ इसका द्वन्द्वयुद्ध ( भीष्म० ११६ । २७ - २९ ) । इसका भीष्मद्वारा पीड़ित होना तथा अर्जुनद्वारा इसकी रक्षा ( भीष्म० ११८ । ४१-४२ ) । कर्णके साथ इसका युद्ध और उसके द्वारा वध ( कर्ण० ५६ । ४४-४८ ) । सुशोभना - मण्डूकराजकी कन्या । इसका इक्ष्वाकुवंशी राजा परीक्षित के साथ मिलन और विवाह ( शल्य० १९२ । ९-१२ ) । इसका अपनी शर्तके अनुसार बावलीमें लुप्त होना ( शल्य० १९२ । २२ ) । पुनः इसकी राजासे भेंट शल्य० १९२ । ३५ ) । इसके गर्भ से शल, दल, बल नामक तीन पुत्रकी उत्पत्ति ( शल्य० १९२ । ३८ ) । सुश्रवा-विदर्भराजकुमारी, पूरुवंशीय राजा जयत्सेनकी पत्नी, चीनकी माता ( आदि० ९५ । १७ ) । सुश्रुत विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रोंमेंसे एक ( अनु० ४ । ५५ ) । सुषेण - ( १ ) धृतराष्ट्रके कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके सर्प सत्र में दग्ध हो गया था ( आदि० ५७ । १६) । ( २ ) धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक ( आदि० ६७ । ९७; आदि० ११६ । ७) । भीमसेनद्वारा इसका बध ( भीष्म० ६४ । ३४ द्रोण० १२७ । ६० ) । ( धृतराष्ट्रपुत्र 'सुषेण' का वध दो स्थलोंमें आया है; अतः अनुमान होता है कि उनके दो पुत्र इस एक ही नामसे प्रसिद्ध थे । उनका पृथक-पृथक और भी नाम रहा होगा, पर उस नामसे उनकी प्रसिद्धि नहीं थी । ) (३) पूरुवंशीय महाराज अविक्षित्‌के पौत्र एवं परीक्षित्के पुत्र ( आदि० ९४ । ५२ - ५५ ) | ( ४ ) जमदग्निपुत्र । माता रेणुका । मातृ-वधकी आशा न मानने से इन्हें पिताका शाप ( बन० ११६ । १२ ) । परशुरामद्वारा शापसे इनका उद्धार ( वन० ११६ । १७ ) । (५) वानरराज वालीके श्वसुर । ताराके पिता । इनका सहस्रकोटि ( दस अरब ) वानर सेनाके साथ श्रीरामके पास उपस्थित होना ( वन० २८३ । २) । ( ६ ) कर्णका पुत्र तथा चक्ररक्षक । नकुलके साथ इसका युद्ध ( कर्ण० ४८ । १८, ३४ - ४० ) । उत्तमौजाद्वारा इसका वध ( कर्ण० ७५ । १३) । ( ७ ) कर्णका पुत्र । नकुलद्वारा इसका वध ( शल्य० १० । ४९-५० ) | ( कर्णपुत्र 'सुषेण का वध दो स्थानोंपर आया है; अतः यह अनुमान होता है कि कर्णके दो पुत्र इसी नाम से प्रसिद्ध थे । ) सुसंकुल - उत्तरभारतका एक जनपद इसे और यहाँके राजाको अर्जुनने जीता था ( सभा० २७ । ११ ) । सुसामा - धनञ्जयगोत्रीय एक श्रेष्ठ ब्राह्मण, जो युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें सामगान करते थे ( सभा० १३ । ३४ ) । For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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