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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शना ( ३८५ ) सुदेष्णा एक नरेश, जो राजा नग्नजित्द्वारा बन्दी बनाये गये थे। सुदेव-(१) विदर्भनरेशद्वारा दमयन्तीकी खोजमें नियुक्त भगवान् श्रीकृष्णने नग्नजित्के समस्त पुत्रोंको पराजित करके किये गये ब्राह्मणोंमेसे एक, जिन्होंने चेदिराजके महलमें इन्हें बन्धनमुक्त किया था (उद्योग० ४८ । ७५)।(४) दमयन्तीको पहचानकर उससे वार्तालाप किया (वन. एक द्वीप ( जो जम्बूद्वीपका ही नामान्तर है ) संजयद्वारा ६८ । २-३०)। इनका चेदिनरेशकी माताको दमयन्तीधृतराष्ट्रसे इसका वर्णन (भीष्म० ५ । १३ से ६ का परिचय देना (वन० ६९ । १-९)। दमयन्तीको अध्यायतक)।(५) जम्बूद्वीपके जामुन वृक्षका नाम, देखकर प्रसन्न हुए राजा भीमद्वारा इन्हें पुरस्कार-प्राप्ति इस वृक्षकी ऊँचाई ग्यारह हजार योजन है । इसके फलोकी (वन० ६९।२७) । दमयन्तीका इन्हें अयोध्यानरेश लम्बाई ढाई हजार अरनि मानी गयी है (भीष्म० ७ । ऋतुपर्णके पास स्वयंवरका संदेश देकर भेजना और इनका १९-२२)।(६) कौरवपक्षका एक राजा, जो सात्यकि- अयोध्या जाकर राजा ऋतुपर्णसे स्वयंवरके लिये दमयन्तीद्वारा मारा गया था (द्रोण. ११८ | १४-१५)।(७) का संदेश कहना (बन० ७० । २२-२७) । (२) मालवनरेश, पाण्डवपक्षका एक योद्धा, अश्वत्थामाद्वारा महाराज अम्बरीषका एक शान्त स्वभाववाला सेनापति, इसका वध (द्रोण. २०० । ७३-८३)।(८) जिसे राजासे पूर्व ही स्वर्गलोककी प्राप्ति हो चुकी थी। धृतराष्ट्रका एक पुत्र, जिसने भीमसेनपर आक्रमण किया उसे इन्द्रके पास देखकर राजाका चकित होकर उसके और फिर उन्हीं के द्वारा मारा गया (शल्य. २७ । ३१- विषयमें इन्द्रसे पूछना (शान्ति० ९८ । ३-११)। ५०)। (९) अग्निदेवके पुत्र, इनकी माता इक्ष्वाकु राजाकी आज्ञासे राक्षसोंसे लड़नेके लिये इसका प्रस्थान वंशी दुर्योधनकी पुत्री सुदर्शना थी(अनु०२।३५.३६)। (शान्ति० ९८ । ११ के बाद दा. पाठ)। शत्रुको महाराज ओघवान्की पुत्री ओघवती के साथ इनका विवाह प्रबल देखकर इसका शिवजीकी शरणमें जाना और उन्हें (अनु० २।३८-३९) । अतिथि-सत्कारद्वारा मृत्यु प्रसन्न करना (शान्ति० ९८ । ११ के बाद दा० पाठ)। आदिपर इनकी विजय (अनु० २ । ४०-९८)। शिवजीद्वारा हसे वरदान-प्राप्ति (शान्ति० ९८ । ११ के बाद दा० पाठ)। इसके द्वारा राक्षसोका संहार और सुदर्शना-माहिष्मती-नरेश नील (या दुर्योधन) की अनुपम स्वयं भी वियमद्वारा मारा जाना तथा मरते-मरते वियमको सुन्दरी पुत्री, जो प्रतिदिन पिताके अग्निहोत्र-गृहमें अग्नि भी मार डालना (शान्ति० ९८ । ११ के बाद दा० को प्रज्वलित करनेके लिये उपस्थित होती थी (सभा. पाठ)।(३) काशिराज हर्यश्वके पुत्र, जो देवताके समान ३१ । २८)। इसके ऊपर अग्निदेवकी आसक्ति (सभा० तेजस्वी और दूसरे धर्मराजके समान न्यायप्रिय थे। पिताके ३१ । ३०-३१)। पिताद्वारा इसका अग्निदेवकी पश्चात् ये काशिराजके पदपर अभिषिक्त हुए । इसी बीच सेवामें समर्पण (सभा० ३१॥३३)। यह राजा दुर्योधन (नील) द्वारा नर्मदा नदीके गर्भसे उत्पन्न हुई थी। वीतहव्यके पुत्रोंने इनपर आक्रमण करके इन्हें धराशायी इसका अग्निदेवके साथ विवाह (अनु० २।३४)। कर दिया। तत्पश्चात् इनके पुत्र दिवोदास पिताके राज्यपर अग्निके द्वारा इसे सुदर्शन नामक पुत्रकी प्राप्ति (अनु० अभिषिक्त हुए (अनु. ३० । १३-१५)। २। ३६)। सुदेवा-(१) अङ्गराजकी पुत्री, जो महाराज अरिहकी सुदामा-(१) दशार्णके एक महामना नरेश, जिनके दो पत्ना था। इसके गभस ऋक्षनामक पुत्रका जन्म हुआ पुत्रियाँ थीं, एकका विवाह विदर्भ-नरेश भीमसे और था (आदि. ९५ । २४) । (२) दशार्हकुलकी दूसरीका चेदिराज वीरबाहुके साथ हुआ था (वन० ९६ । कन्या, जो पुरुवंशी महाराज विकुण्ठनकी पत्नी थी। इसके गर्भसे अजमीढका जन्म हुआ था (आदि० ९५। १४-१५)। (२)उत्तरभारतका एक जनपद (भीष्म ३६)। ५। ५५) । इसे और यहाँके राजाको अर्जुनने जीता था (सभा० २७ । ११)। (३) पाण्डवपक्षका एक सुदेष्ण-(१) देवराज इन्द्र द्वारकामें आकर जिन प्रधान-प्रधान योद्धा, हमके रथके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण.२३॥ ४९)। यादवोंसे मिले थे, उनमेंसे एक ये भी थे (सभा० ३८१२९ के बाद दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ८०६)। (२) एक (४) स्कन्दकीअनुचरी एक मातृका (शल्य०४६ । १०)। भारतीय जनपद (भीष्म०९ । ४६)। सदास-कोसलदेशके एक राजा, जो सायं-प्रातः स्मरण सुदेष्णा-मत्स्यराज विराटकी भार्या, केकयराजकी कन्या । कीर्तन करने के योग्य हैं (अनु० १६५ । ५७)। इनका दूसरा नाम चित्रा भी था (विराट. १।६)। सुदिन-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत एक लोकविख्यात इनके पास अज्ञातवासके लिये सैरन्ध्रीवेशमें द्रौपदीका तीर्थ, जिसमें स्नान करके मनुष्य सूर्यलोकमें जाता है। आना और बातचीत करनेके बाद इनका द्रौपदीकी शोंको (वन० ८३ । १००)। स्वीकार करते हुए उसे अपने यहाँ आश्रय देना (विराट. सुदिवा-एक वानप्रस्थी ऋषि, जो वानप्रस्थ-धर्मका पालन ९।८-३६)। सैरन्ध्रीके विषयमें इनसे कामासक्त करते हुए स्वर्गलोकको प्राप्त हुए (शान्ति० २४४ । कीचककी बातचीत और उसके प्रार्थना करनेपर इनका उसे १७-१८)। अपनी सम्मति देना (विराट. १४।६-१०)। द्रौपदीको सुदृष्ट-एक भारतीय जनपद (भीष्म० ९ । ५१)। कीचकके घर भेजना (विराट. १५ अध्याय)। कीचक म. ना०४९ For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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