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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुद्युम्न ( ३८६ ) सुनाम के मारनेपर रोती हुई द्रौपदीका इनके पास आना और यशोदा, देवकी, रोहिणी आदि श्रीकृष्णकी आठों पटइनका उसके रोनेका कारण पूछना तथा आश्वासन देना रानियाँ और एकानङ्गा नामवाली यशोदापुत्री-ये सब (विराट. १६ । ४८-५०) । विराटका इनके द्वारा उस सभा आयीं (सभा० ३८ ॥ २९ के बाद दा. पाठ, द्रौपदीको चली जानेके लिये कहलवाना (विराट. २४ । पृष्ठ ८०६-८२०)। अर्जुनका इस सभामें प्रवेश ८-१०)। द्रौपदीको राजमहलसे चली जानेके लिये इनके (मौसल० ७ । ७)। (२) एक वृष्णिवंशी राजकुमार, द्वारा राजाका संदेश सुनाया जाना (विराट० २४ । २७- जो युधिष्ठिरकी सभामें बैठता था। इसने अर्जुनसे धनुर्वेद२८)। द्रौपदीके तेरह दिन और रहने के लिये प्रार्थना की शिक्षा ली थी (सभा० ४ । २८-३५)। (३) करनेपर सुदेष्णाका उसे इच्छानुसार रहनेकी आज्ञा देना दशार्णदेशके एक राजा, जिनके पराक्रमसे संतुष्ट हो और अपने पति-पुत्रकी रक्षाके लिये उसकी शरणमें जाना महाबली भीमसेनने उन्हें अपना सेनापति बना लिया था (विराट० २४ । २९-३० दा० पाठसहित)। उत्तराके (सभा० २९ । ५-६)। (४) इन्द्रसारथि मातलिकी विवाहोत्सवमें उपप्लव्यनगरमें इनका द्रौपदीके पास जाना पत्नी (उद्योग०९७ । १९)। (५) एक संशप्तक योद्धाः (विराट० ७२ । ३०)। जिसका अर्जुनके साथ युद्ध हुआ था (द्रोण. १८।२०)। सद्यम्र-एक प्राचीन राजर्षि, जो यम-सभामें रहकर सूर्यपुत्र सुधामा-कुशद्वीपका एक सुवर्णमय पर्वत, जो मूंगोंसे भरा यमकी उपासना करते हैं (सभा० ८। १६)। अपने हुआ और दुर्गम है (भीष्म १२।१०)। भाई महर्षि शङ्कके भेजनेसे न्यायके लिये लिखितका इनके सुनक्षत्रा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य०४६।९)। पास आना और इनके द्वारा चोरीके दण्डरूपमें लिखितका सुनन्दा-(१) केकयराजकुमारी, जो कुरुवंशी राजा हाथ कटवाया जाना (शान्ति०२३१ २९-३६) दण्डरूप सार्वभौमकी पत्नी थीं । इनके गर्भसे जयत्सेनका जन्म धर्मके पालनसे इन्हें परम सिद्धिको प्राप्ति (शान्ति. २३ । हुआ था (आदि० ९५ । १६) । (२) काशिराज ४५)। महर्षि लिखितको धर्मतः दण्ड देनेसे इन्हें परम सर्वसेनकी पुत्री, जो दुष्यन्तपुत्र सम्राट भरतकी पत्नी उत्तम लोकोंकी प्राप्ति ( अनु० १३७ । १९)। थीं। इनके गर्भसे भुमन्यु नामक पुत्रका जन्म हुआ था सधन्या-(१) महर्षि अङ्गिराके पुत्र । केशिनीके लिये प्रह्लाद- (आदि० ९५ । ३२)। (३) शिबिदेशकी राजकन्या, पुत्र विरोचनके साथ इनका संवाद होनेपर प्रह्लादके पास जो महाराज प्रतीपकी पत्नी थीं । इनके गर्भसे देवापि, निर्णयके लिये जाना तथा उनका निर्णय देना (सभा० शान्तनु तथा बाह्रीकका जन्म हुआ था (आदि० ९५ । ६८। ६५-८७; उद्योग. ३५। १४-३६)। इनका ४४)। (४) चेदिनरेश सुबाहुकी बहिन । राजमाताने विरोचनको जीवनदान देना (उद्योग० ३५ । ३७-३८)। दमयन्तीको इसीके साथ रहनेके लिये आज्ञा दी थी (वन० शर-शय्यापर पड़े हुए भीष्मको देखनेके लिये जाना (अनु. ६५। ७३-७६) । विदर्भ-निवासी सुदेव ब्राहाणके साथ २६ । ७)। ये महर्षि अङ्गिराके आठवें पुत्र थे (अनु० एकान्तमें दमयन्तीको बात करते देखकर इसका राज८५ । ३०-३१)। इन्होंने स्कन्दको एक शकट और माताको इसकी सूचना देना (वन० ६८ । ३३-३४ )। विशाल कुबरसे युक्त रथ प्रदान किया था (अनु० ८६ ।। ब्राह्मण सुदेवके कहने से इसके द्वारा दमयन्तीके ललाटमें २४)। (२) एक संशप्तक योद्धा, जो अर्जुनद्वारा स्थित प्राकृतिक टीकेकी मैलका धोया जाना और पहचाननेमारा गया (द्रोण०१८ । ४२)। (३) पाण्डवपक्षका के बाद रोना तथा दमयन्तीको हृदयसे लगाना (वन. एक पाञ्चाल योद्धा, जो द्रुपदका पुत्र था, इसके घोड़ोंका ६९। १०-१२) । इसके पिताका नाम वीरबाहु था वर्णन (द्रोण० २३ । ५५) । यह वीरकेतुका भाई और यह दमयन्तीकी मौसेरी बहिन थी (वन० ६९ । था । वीरकेतुके मारे जानेपर दुखी हो भाइयोसहित इसने आचार्य द्रोणपर आक्रमण किया था (द्रोण. १२२ । सुनय-एक दक्षिण भारतीय जनपद (भीष्म०९।६४)। १४)। द्रोणाचार्यने इसे रथहीन करके मार गिराया सनसा-एक पवित्र नदी, जिसका जल भारतवासी पीते हैं (द्रोण. १२२१४५-४९)। (४) एक प्राचीन नरेश, (भीष्म०९।३१)। जिन्हें मान्धाताने जीत लिया था (द्रोण०६२।१०-११)। . सुनाभ-(पद्मनाभ )-(१) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक सुधर्मा-(१) एक यादवोंकी सभा, जहाँ जाकर सैनिकोंने (आदि. ११६ । ५)। भीमसेनके साथ इसका युद्ध सुभद्राहरणका समाचार सुनाया था (आदि० २१९ । और उनके द्वारा वध (भीष्म० ८८ । १२ के बाद १०)। इस सभाको दाशाहीं कहते थे। इसकी लंबाई. दा. पाठसहित १३)। (२) वरुणका मन्त्री, जो चौड़ाई एक-एक योजन थी। इसमें बैठे हुए भगवान् अपने पुत्रों और पौत्रोंसहित गौ और पुष्कर नामक श्रीकृष्णके पास देवराज इन्द्र आये और भौमासुरको तीर्थों के साथ वरुणदेवकी उपासना करता है (सभा०९। मारकर अदितिके कुण्डल लानेके लिये उनसे प्रार्थना की। २८-२९)। (३) एक दिव्य पर्वत, जो धनाधीश इस कार्यको सम्पन्न करके भगवान् जब स्वर्गसे लौटे, तब कुबेरकी सभा रहकर उनकी सेवा करता है (सभा० उनको और उनकी नवागत रानियोंको देखनेके लिये १०। ३२-३३)। For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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