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सत्यवत
( ३६८ )
सनत्कुमार
इनका ऋषियोंके पूछनेपर विलम्बसे आश्रममें आनेका (२) शंयु नामक अग्निकी पत्नी । जिसके रूप और कारण बताना ( वन० २९८ । ३०-३२ )। गुणोकी कहीं तुलना नहीं थी । इसके गर्भसे एक भरद्वाज इनका युवराजपदपर अभिषेक (वन० २९९ । ११)। नामक पुत्र और तीन कन्याएँ हुई थी (वन० २१९ । पिताके साथ राज्यपालनके विषयमें वार्तालाप ( शान्ति० ४-५)। . २६७ अध्याय)। लोगोंके पूछनेपर कन्यादानके विषयमें सत्येयु-पूरुके तीसरे पुत्र । रौद्राश्वके द्वारा मिश्रकेशी नामक इनका निर्णय देना (अनु० ४४ । ५१-५६ )। अप्सराके गर्भसे उत्पन्न एक महा धनुर्धर पुत्र (आदि० (२) कौरव-पक्षके एक सेनापति, जो महारथी वीर थे ९४ । ८-१२)। (उद्योग० १६७ । ३०)।
सत्येषु-(१) त्रिगर्तराज सुशर्माका भाई ( एक संशप्तक सत्यव्रत-(१) एक प्राचीन नरेश (आदि०१।२३६)। योद्धा)। इसका अर्जुनको मारनेके लिये प्रतिज्ञा करना (२) (सत्यसेन, सत्यसंध, संध)धृतराष्ट्रका एक महारथी और अर्जुनके द्वारा इसका वध (द्रोण. १७ । १७-१८ पुत्र ( आदि० ६३ । ११९-१२० ) । ( विशेष शल्य. २७ । ४०-४१)। (२) एक राक्षस, जो देस्त्रिये- सत्यसंध) (३) त्रिगर्तराज सुशर्माका भाई
प्राचीन कालमें इस पृथ्वीका शासक था; किंतु कालसे (एक संशप्तक योद्धा ) । इसका अर्जुनको मारनेके
पीड़ित हो पृथ्वीको छोड़कर चला गया (शान्ति. २२७ । लिये प्रतिज्ञा करना (द्रोण. १७ । १७-१८)। सत्यश्रवा-कौरवपक्षका एक योद्धा, जो अभिमन्युद्वारा सत्राजित्-एक प्रमुख यादव । प्रसेनजित्के भाई । सत्राजित् मारा गया था (द्रोण० ४५ । ३)।
और प्रसेनजित्-ये दोनों जुड़वें बन्धु थे। इनके पास सत्यसंध ( सत्यवत, सत्यसेन अथवा संध)-(१) स्यमन्तकमणि थी, जिससे प्रचुर मात्रामे सुवर्ण झरता रहता धृतराष्ट्रके सौ पुत्रोंमेंसे एक । यह ग्यारह महारथियोंमेंसे था (सभा०१४। ६० के बाद दा० पाठ)। कृतवर्माने एक था ( आदि०६३ । ११९-१२०, आदि०६७।१०० मणिके लोभसे सत्राजित्का वध करवाया था----इसका आदि. ११६ । ५)। यह अपने भाइयोंके साथ शल्यकी सात्यकिने श्रीकृष्णको स्मरण दिलाया था (मौसल. ३ । रक्षामें तत्पर था (भीष्म० ६२। १७)। अभिमन्युने २३)। इनकी पुत्रीका नाम सत्यभामा था (मौसका इसे बाण मारकर घायल कर दिया था (भीष्म ६२। ५। १३)। २८-२९)। अभिमन्युके साथ इसका युद्ध (भीष्म०७३। सदश्व-एक राजा, जो यमसभामै रहकर सूर्यपुत्र यमकी २४-२६)। सात्यकिने इसे बाण मारे थे (द्रोण० ११६। उपासना करते हैं (सभा० ८ । १२)। ७.८ )। इसका एक नाम सत्यसेन भी है। यह और
सदासुवाक् ( सहस्रवाक )-धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों से एक सुषेण युद्धमें चित्रसेनके साथ खड़े थे। (कर्ण०७। (आदि०६७। १००, आदि. ११६ । ९)। १७)। भीमसेनद्वारा इसका वध (कर्ण०८४ । २-६)। (२) मित्रद्वारा स्कन्दको दिये गये दो पार्षदोंमेंसे एक, सदस्य
सदस्योर्मि-एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी
उपासना करते हैं (सभा० ८।११)। दूसरेका नाम 'सुव्रत' था (शल्य. ४५।१)। (३) 'एक महान् व्रतधारी प्राचीन नरेश । जिन्होंने अपने सदाकान्ता-एक पवित्र नदी, जिसका जल भारतवासी प्राणोद्वारा एक ब्राह्मणके प्राणोंकी रक्षा की थी और ऐसा पीते हैं ( भीम. ९ । २५)।
करके वे स्वर्गमें गये थे (शान्ति० २३४ । १६)। सदानीरा-एक पवित्र नदी, जो वरुणकी सभामें रहकर सत्यसेन ( सत्यसंध या संध )-(१) धृतराष्ट्रका उनकी उपासना करती है ( सभा० १०।२०)। इसका
एक पुत्र (आदि०६७।१०० आदि० ११६।९) जल भारतवासी पीते हैं. (भीष्म ९।२४)।( कुछ ( विशेष देखिये---सत्यसंध) । (२) त्रिगर्तराज लोगोंका मत है कि करतोया नदीका ही नाम (सदानीरा' या सुशर्माका भाई, जिसका अर्जुनके साथ युद्ध और सदानीरवहा' है । करतोया जलपाईगुड़ीके जंगलोंसे निकलउनके द्वारा वध हुआ था (कर्ण० २७ । ३-२२)। कर रंगपुर होती हुई बोगड़ा जिलेके दक्षिण हलहलिया (३) कर्णका पुत्र, जो अपने पिताका चक्ररक्षक था नदीमें मिलती है । दूसरे मतके अनुसार सरयूकी सहायक ( कर्ण० ४८ । १८)।
नदी राप्ती' ही सदानीरा है। ग्रन्थान्तरों में इसके सत्या-(१)भगवान् श्रीकृष्णकी एक पटरानी । ये श्रीजीके
अचिरवती तथा इरावती नाम भी मिलते हैं। ) साथ श्रीकृष्णका दर्शन करनेके लिये सभाभवनमें गयी थीं सनत्कुमार-एक ऋषि, जो भूतलपर प्रद्युम्नके रूपमें (सभा० ३८ । २९ के बाद दा. पाठ, पृष्ट ८२०)। अवतीर्ण हुए थे (आदि० ६७ । १५२ )। इन्होंने
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