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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्यक ( ३६६ ) सत्यवती - ( शान्ति. २७२ । ६)। इनके अहिंसापूर्ण यज्ञका सत्यभामा-भगवान् श्रीकृष्णकी पटरानी, भगवान् श्रीकृष्णवर्णन (शान्ति. २७२ । १०-२०)। (५) ने नरकासुरको मारकर इनके साथ नरकासुरके घरका भगवान् श्रीकृष्ण का एक नाम और इसकी निरुक्ति निरीक्षण किया । फिर वे इन्हें साथ लेकर इन्द्रलोकमें (कान्ति० ३४२ । ७५-७६) । (६) वीतहव्यवंशी गये । वहाँ शचीदेवीने इन्हें देवमाता अदितिसे मिलाया । बितत्यके पुत्र । इनके पुत्रका नाम संत था ( अनु० था । माता अदितिने इन्हें यह वर दिया था कि ३० । ६२)। 'जबतक श्रीकृष्ण मानवशरीरमें रहेंगे तबतक तू भी सत्यक-एक यदुवंशी क्षत्रिय, जो सात्यकिके पिता थे वृद्धावस्थाको प्राप्त न होगी, दिव्य सुगन्ध एवं उत्तम (आदि. ६३ । १०५)। ये रैवतक पर्वतपर होनेवाले गुणोंसे सुशोभित होगी।' सत्यभामा शचीके साथ स्वर्गमें उत्सवमें सम्मिलित थे (आदि० २१८।१)। इनके घूम-फिरकर उनकी अनुमति ले भगवान् श्रीकृष्णके साथ द्वारा अभिमन्युका श्राद्ध किया गया (आश्व०६२।६)। पुनः द्वारका आ गयीं। द्वारकामें इन्हें रहने के लिये श्वेत सत्यकर्मा-त्रिगर्तराज सुशर्माका भाई, जिसने अर्जुनको रंगका प्रासाद (महल) प्राप्त हुआ था, उसमें विचित्र मारनेके लिये प्रतिज्ञा की थी। यह एक संशप्तक योद्धा था मणियोंके सोपान लगे थे, उसमें प्रवेश करनेपर ग्रीष्म ऋतु(द्रोण. १७ । १७.१८)। अर्जुनद्वारा इसका वध में भी शीतलताका अनुभव होता था । यह महल (पास्य. २७ । ३९-४०)। एक सुन्दर उद्यानमें बनाया गया था। इसमें चारों ओर सत्यजित्-राजा द्रुपदके भाई, जिसे साथ ले द्रुपदने अर्जुन ऊँची ध्वजाएँ फहराती थीं, ये सभाभवनमें भगवान्का वैभव एवं नवागता रानियोंको देखने गयी थीं (सभा० पर धावा किया था (भादि० १३७ । ४२)। अर्जुनके साथ इनका युद्ध (आदि. १३ । ४६) । अर्जुनसे ३८ । २९ के बाद, दा. पाठ, पृष्ठ ८०८, ८११, ८१२, ८१५, ८२०)। इनका काम्यकवनमें श्रीकृष्णके पराजित होकर इनके द्वारा युद्ध-भूमिका त्याग (आदि. साथ आकर द्रौपदीसे मिलना (वन०१८३।११)। १३७॥ ५३) । अर्जुनद्वारा इन्हें युधिष्ठिरकी रक्षाका भार सौंपा जाना (द्रोण. १७॥ ४४-४५)। द्रोणाचार्यद्वारा इनका द्रौपदीसे पतिको अपने अनुकूल बनाये रखनेका उपाय पूछना (वन.२३३ | ४-८)। इनका द्रौपदीइनका वध (द्रोण० २१ । २१)। इनके मारे जानेकी को आश्वासन देकर द्वारकाको प्रस्थान करना ( वन. चर्चा (कर्ण० ६ । ४)। २३५ । ४-१८)। ये सत्राजित्की पुत्री थीं, भगवान् सत्यदेव-कलिङ्गसेनाका एक योद्धा, जो कलिङ्गराज श्रीकृष्णके परमधाम-गमनके पश्चात् जब अर्जुन द्वारकामें श्रुतायुका चक्ररक्षक था । भीमसेनद्वारा इसका वध आये थे, उस समय उनके पास आकर रुक्मिणी आदि (भीष्म० ५४ । ७६)। रानियोंके साथ इन्होंने विलाप किया था ( मौसल. ५। सत्यधर्मा-एक सोमकवंशी राजकुमार, जो युधिष्ठिरके १३)। श्रीकृष्णप्रिया सत्यभामा तपस्याका निश्चय करके सहायक थे ( उद्योग० १४१ । २५)। वनमें चली गयी थीं (मौसल० ७।७४)। सत्यधति-(१) पाण्डवपक्षके महारथी योद्धा, जिन्हें __ सत्ययुग-चारों युगोंमें प्रथम युग (विशेष देखिये कृतयुग)। भीष्मजीने रथियोंमें श्रेष्ठ माना था ( उद्योग० १७१ । १४)। ये द्रौपदीके स्वयंवरमें भी पधारे थे (आदि सत्यरथ--त्रिगर्तराज सुशर्माका भाई, जो अपने पाँच रथी १८५। १०)। ये सुचित्तके पुत्र थे । इन्होंने युद्धमें बन्धुओंमें प्रधान था ( उद्योग. १६६।१)। इसने हिडिम्बाकुमार घटोत्कचकी सहायता की थी (भीष्म० अर्जुनको मारनेके लिये प्रतिज्ञा की थी (द्रोण. १७। ९३ । १३)। इनके घोड़ोंका रंग लाल था, परंतु १७-१८)। (यह एक संशप्तक योद्धा था ।) उनके पैर काले रंगके थे। ये सभी सुवर्णमय विचित्र सत्यवती-(१) उपरिचर वसुके वीर्यद्वारा ब्रह्माजीके कवचोंसे सुसजित थे। कुमार सत्यधृति अस्त्रोंके ज्ञान, शापसे मत्स्यभावको प्राप्त हुई 'अद्रिका' नामक अप्सराके धनुर्वेद तथा ब्राह्मवेदमें भी पारंगत थे (द्रोण.२३। गर्भसे उत्पन्न एक राजकन्या । मल्लाहोंने मछलीका पेट ३६, ३१)। द्रोणाचार्यद्वारा इनके मारे जानेकी चर्चा चीरकर एक कन्या और पुरुष निकाला, जब राजाको इस(कर्ण० ६ । ३४)।(२) राजा क्षेमका पुत्र पाण्डव- की सूचना दी गयी, तब राजाने उन दोनों बालकोंमेंसे पक्षका योद्धा, इसके घोड़ोंका वर्णन (द्रोण. २३ । पुत्रको स्वयं ग्रहण कर लिया, वही मत्स्य' नामक धर्मात्मा ५४)। राजा हुआ, उनमें जो कन्या थी, उसके शरीरसे मछलीसत्यपाल-एक ऋषि, जो राजा युधिष्ठिरकी सभामें विराजते की गन्ध आती थी, अतः राजाने उसे मल्लाहको सौंप ये (सभा०४।१४)। दिया और कहा-यह तेरी पुत्री. होकर रहे । सत्त्व, For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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