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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संजय ( ३६५ ) सत्य करना (भीष्म० ५। १३) । धृतराष्ट्रसे भीष्मजीकी एक दिन रणभूमिसे भागकर आनेपर माताने इसे कड़ी मृत्युका समाचार सुनाना ( भीष्म १३ अध्याय)। फटकार दी और युद्ध के लिये प्रोत्साहन दिया ( उद्योग ( यहाँसे सौप्तिकपर्वके ९ वें अध्यायतक संजयने धृतराष्ट्र- अध्याय १३३ से १३६ । १२ तक) | माताके से युद्धका समाचार सुनाया है। ) धृतराष्ट्र- उपदेशसे युद्धके लिये उद्यत हो उसकी आज्ञाका यथावत् को उपालम्भ देना (द्रोण० ८६ अध्याय)। धृतराष्ट्रसे रूपसे पालन किया (उद्योग० १३६ । १३-१६)। छाड़ जानका कारण सञ्जयन्ती-दक्षिण भारतकी एक नगरी, जिसे सहदेवने बताना (द्रोण. १८२ अध्याय)। कौरवपक्षके मारे दक्षिण-दिग्विजयके समय दुतोंद्वारा संदेश देकर ही अपने गये प्रमुख वीरों का परिचय देना (कर्ण०५ अध्याय)। अधिकारमें करके वहाँसे कर वसूल किया था ( समा. पाण्डवपक्षके मारे गये प्रमुख वीरोंका परिचय देना (कर्ण ३१।०)। ६ अध्याय)। कौरवपक्षके जीवित योद्धाओंका वर्णन सञ्जययानपर्व-उद्योगपर्वका एक अवान्तर पर्व (अध्याय (कर्ण० ७ अध्याय)। सात्यकिद्वारा जीते-जी इनका २० से ३२ तक)। बंदी बनाया जाना (शल्य० २५ । ५७-५८) । व्यासजी सञ्जीवनमणि-एक प्रकारकी मणि, जो नागोंके जीवनकी के अनुग्रहसे सात्यकिकी कैदसे छुटकारा पाना (पास्य. आधारभूत है । बभ्रुवाहनद्वारा आहत अर्जुनके अचेत २९ । ३९)। इनकी दिव्यदृष्टिका चला जाना (सोप्तिक. हो जानेपर उलूपीने इसका स्मरण करके हस्तगत किया ९। ६२)। धृतराष्ट्रको सान्त्वना देना (स्त्री० ।। २३ था। यह मणि सदा मरे हुए नागराजोंको जीवित किया ४३)। धृतराष्ट्रसे स्वजनोंका मृतक कर्म करनेको कहना (सी०९ । ५-७)। युधिष्ठिरद्वारा इन्हें कृताकृत __करती थी। उलूपीकी आज्ञासे बभ्रुवाहनने इसे लेकर कार्योंकी जाँच तथा आय-व्ययक निरीक्षणका कार्य सौंपा अर्जुनकी छातीपर रखा, जिससे अर्जुन जीवित हो उठे जाना (शान्ति०४१।)। धृतराष्ट्र और गान्धारी- (भाश्व० ८०। ४२-५२)। के साथ इनका वनगमन (आश्रम०१५।८)। यात्रा- सञ्जीवनी-एक विद्या, जिसके द्वारा मृत व्यक्तिको भी के प्रथम दिन गङ्गातटपर धृतराष्ट्र के लिये शय्या बिछाना जीवन-दान दिया जा सकता है। शुक्राचार्यने इसी विद्याके (आश्रम० १८।१९)। वनवासी महर्षियोंसे पाण्डवों बलसे देवासुर संग्राममें मारे गये दानवोंको जिलाया था तथा उनकी पत्नियोंका परिचय देना (भाश्रम. २५ (आदि. ७६ । ८)। इसीके बलसे उन्होंने अध्याय)। ये वनमें छठे समय अर्थात् दो दिन उपवास दानवोंद्वारा मारे गये कचको तीन बार जिला दिया था। करके तीसरे दिन आहार ग्रहण करते थे (भाश्रम ३७। शुक्राचार्यने कचको भी इस विद्याका उपदेश दिया था १३)। ये सदा धृतराष्ट्र के पीछे चलते और ऊँची-नीची (आदि० ७६ । २८-६१)। भूमिमें उन्हें सहारा देकर ले चलते ये (आश्रम ३७। सणु-एक भारतीय जनपद (भीष्म ९ । ४३)। १६-१७ ) । वनमें दावानल प्रज्वलित हो जानेपर सतत-कुरुक्षेत्रकी सीमाके अन्तर्गत एक विष्णु-सम्बन्धी धृतराष्ट्रने सञ्जयको दूर भाग जानेके लिये कहा । सञ्जयने तीर्थ, जहाँ श्रीहरि सदा निवास करते हैं (वन० ८३ । इस तरह दावानलमें जलकर होनेवाली मृत्युको राजाके लिये १०)। वहाँ स्नान और भगवान् श्रीहरिको नमस्कार अनिष्ट बतायी, किंतु उससे बचानेका कोई उपाय न करनेसे मनुष्य अश्वमेध-यज्ञका फल पाता तथा भगवान् देखकर अपना कर्तव्य पूछ। । राजाने कहा कि गृहत्यागियों- विष्णुके लोकमें जाता है (वन० ८३ । १०.१.)। के लिये यह मृत्यु अनिष्टकारक नहीं, उत्तम है, तुम भाग सत्य-(१) एक ऋषि, जो युधिष्ठिरकी सभामें विराजते जाओ। तब सञ्जयने राजाकी परिक्रमा की और उन्हें थे ( सभा० ४।१०)। (२) एक अग्नि, जो ध्यान लगानेके लिये कहा । राजा धृतराष्ट्र, निश्च्यवन नामक अग्निके पुत्र हैं। वे निष्पाप तथा कालगान्धारी और कुन्ती तीनों दग्ध हो गये, किंतु ये दावा- धर्मके प्रवर्तक हैं। वेदनासे पीड़ित प्राणियोको कष्टसे नलसे मुक्त हो गये। फिर गङ्गातटपर तपस्वी जोंको निष्कृति (छुटकारा) दिलानेके कारण इनका दूसरा नाम राजाके दग्ध होनेका समाचार बताकर ये हिमालयको चले निष्कृति है। ये ही प्राणियोंद्वारा सेवित गृह और उद्यान गये (आश्रम. ३७ । १९-३४) । (२) सौवीर आदिमें शोभाकी सृष्टि करते हैं। इनके पुत्रका नाम देशका एक राजकुमार, जो हाथमें ध्वज लेकर जयद्रथके स्वन है (वन० २१९ । १३-१५)। (३) कलिङ्गपीछे चलता था (वन० २६५।।.)। द्रौपदी-हरणके सेनाका एक योद्धा, जो कलिङ्गराज श्रुतायुका चक्ररक्षक समय अर्जुनद्वारा इसका वध (वन० २७१। २०)। (३) था। भीमसेनद्वारा इसका वध (भीष्म० ५४ । .१)। सौवीर देशका एक राजकुमार, जिसकी माता विदुला थी। (४) विदर्भनिवासी एक धर्मात्मा तपस्वी ब्राह्मण For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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