SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सद्ग्रह ( ३६४ ) संजय बाहोकदेशके सुप्रसिद्ध राजा शल्य इसीके अंशसे उत्पन्न ६३ । ९७)। धृतराष्ट्र के द्वारा इनको अपनी विजयहुए थे (आदि.६७।६)। यह वरुणकी सभामें विषयक निराशाका अनुभव सुनाना (भादि.१।१५०-- रहकर उनकी उपासना करता था (सभा०९।१२)। २१८)। इनके द्वारा धृतराष्ट्रको आश्वासन (आदि. सकृदग्रह-एक दक्षिण भारतीय जनपद (भीष्म. ९।। १। २२२-२५१)। ये युधिष्ठिरके राजसूय यशमें ६६)। गये थे। इन्हें राजाओंकी सेवा और सत्कारके कार्यमें सगर-एक प्राचीन नरेश (आदि० १ । २३४)। ये नियुक्त किया गया था (सभा० ३५ । ६)। इनका धृतराष्ट्रको फटकारना (सभा०८१।५-१८)। इनका यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं। धृतराष्ट्र के आदेशसे विदुरको बुलाने के लिये काम्यकवनमें (सभा० ८। १९)। ये इक्ष्वाकुवंशके प्रतापी राजा जाना और विदुरसे संदेश कहना (वन०६ । ५.थे । इनकी दो रानियाँ थों-वैदर्भी और शैव्या । इनकी १७)। इनके द्वारा संताप करते हुए धृतराष्ट्रकी बातोंसंतान-प्राप्तिके लिये तपस्या और इन्हें एक पत्नीसे साठ का समर्थन (वन० ४९ । १-१३)। इनका धृतराष्ट्रसे हजार तथा दूसरीसे एक ही वंशधर पुत्र होनका वरदान दुर्योधनके वधके लिये श्रीकृष्णादिके द्वारा काम्यकवनमें (वन०४७ । १९, वन० १०६ । ७-१६)। इनकी की हुई प्रतिज्ञाका वर्णन करना ( वन०५१।१५एक रानी वैदर्भीके गर्भसे एक तुम्बी उत्पन्न हुई । राजा ४४)। धृतराष्ट्रके भेजनेसे युधिष्ठिरके पास जाकर उनकी उसे फेंकना चाहते थे, किंतु आकाशवाणीके मना करनेपर कुशल पूछना (उद्योग० २३ । ।-५)। युधिष्ठिरके रुक गये तथा उसके निर्देशके अनुसार इन्होंने उस प्रश्नोंका उत्तर देना ( उद्योग० २४ अध्याय)। पाण्डवोंतुम्बीके एक-एक बीजको निकालकर साठ हजार घृतपूर्ण __ की सभामें धृतराष्ट्रका संदेश सुनाना (उद्योग० २५ कलशोंमें रक्खा और उनकी रक्षाके लिये धायें नियुक्त अध्याय)। युधिष्ठिरको युद्धमें दोषकी सम्भावना दिखाकर कर दी। तदनन्तर दीर्घकालके पश्चात् इनके साठ हजार शान्त रहनेके लिये कहना ( उद्योग० २७ अध्याय)। पुत्र उन घड़ोंमेंसे निकल आये ( वन० १०६ । १८ से युधिष्ठिरके पाससे हस्तिनापुर लौटकर धृतराष्ट्रसे उनका बन० १.७।४ तक)। इनकी अश्वमेध यज्ञकी दीक्षा कुशल-समाचार कहना और धृतराष्ट्र के कार्योंकी निन्दा (वन० १०७।१५)। इनके साठ हजार पुत्रोंका करना (उद्योग. ३२ । ११-३०)। कौरव-सभामें कपिलकी क्रोधाग्निमें भस्म होना (वन० १०७ ॥ ३३)। आगमन ( उद्योग० ४७ । १४)। कौरवसभामें अर्जुनइनके द्वारा अपने पुत्र असमंजसका त्याग (वन० १०॥ का संदेश सुनाना ( उद्योग० ४८ अध्याय)। धृतराष्ट्रसे ३९--४३, शान्ति० ५७ । ८)। इनका अंशुमान्को युधिष्ठिरके प्रधान सहायकोंका वर्णन करना ( उद्योग. राज्य देकर स्वर्ग-गमन ( बन० १०७ । ६४)। ये ५. अध्याय)। धृतराष्ट्रको उनके दोष बताते हुए अर्जुन और कृपाचार्यका युद्ध देखनेके लिये इन्द्रके दुर्योधनपर शासन करनेकी सलाह देना ( उद्योग० ५४ विमानपर बैठकर विराटनगरके पास आये थे (विराट. अध्याय)। दुर्योधनसे पाण्डवोंके रथ और अश्वोंका वर्णन ५६ । १०)। श्रीकृष्णद्वारा इनके दान, यश आदिका करना ( उद्योग० ५६ । ७-१७)। पाण्डवोंकी युद्धके वर्णन (शान्ति. २९ । १३०-१३६) । महर्षि लिये तैयारीका वर्णन ( उद्योग० ५७ । २-२५)। अरिष्टनेमिसे इनका मोक्षविषयक प्रश्न (शान्ति. २८८। धृष्टद्युम्नकी शक्ति एवं संदेशका कथन ( उद्योग० ५७ । ३)। इन्होंने जीवनमें कभी मांस नहीं खाया था ४७-६२)। धृतराष्ट्र के पूछनेपर अन्तःपुरमें कहे हुए (अनु. ११५। ६६)। ये सायं-प्रातःस्मरणीय राजर्षि श्रीकृष्ण और अर्जुनके संदेश सुनाना (उद्योग० ५९ हैं (अनु. १६५। ४९)। अध्याय )।धृतराष्ट्रको अर्जुनका संदेश सुनाना ( उद्योग. सङ्कर-एक मिश्रित जाति । भिन्न-भिन्न वर्णके माता-पितासे ६६ । ३-१५)। धृतराष्ट्रसे श्रीकृष्णकी महिमाका वर्णन उत्पन्न होनेवाली संतानें संकरजातिके' अन्तर्गत मानी करना ( उद्योग० अध्याय ६८ से ७० तक ) । गयी हैं। भारतवर्षमें इस जातिके लोग भी रहते हैं धृतराष्ट्रसे कर्ण और श्रीकृष्णके वार्तालापका वृत्तान्त बताना (भीष्म० ९ । १३-१४)। (उद्योग. १४३ अध्याय) । धृतराष्ट्रको कुरुक्षेत्रमें सङ्कर्षण-बलदेव ( सभा० २२ । ३६ के बाद दा० सेनाका पड़ाव पड़नेके बादका समाचार सुनाना पाठ)। ( देखिये बलराम )। इनकी उत्पत्ति और आरम्भ करना ( उद्योग. १५९।)। व्यासजीकी महिमाका वर्णन (शान्ति. २०७ । १-१२)। कृपासे इन्हें दिव्यदृष्टिकी प्राप्ति ( भीष्म०२।१.)। सञ्जय-(१) गवल्गण नामक सूतके पुत्र, जो मुनियों के समान धृतराष्ट्रके पूछनेपर भूमिके गुणों का वर्णन करना (भीष्म. शानी और धर्मात्मा थे । ये धृतराष्ट्र के मन्त्री थे (आदि. ४।१• से भीष्म० ५। १२ तक)। सुदर्शन द्वीपका वर्णन For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy