SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शुनक ( ३५५ ) शूरसेन इन्द्रका नाम । इनका सप्तर्षियोंके पास जाना (भनु० ९३ । ५९) । कृत्याका वध करके सप्तर्षियोंकी रक्षा करना (अनु० ९३ । १०५ ) । सप्तर्षियोंके मृणाल चुराना (अनु० ९३ | १०९ )। सप्तर्षियोंके सामने शपथ खाना (अनु० ९३ । १३२ )। सप्तर्षियोंको अपना परिचय देना (अनु. ९३ । १३४-१३९)। अगस्त्यजीके कमलोकी चोरी होनेपर शपथ खाना (अनु. ९४ । ४.)। शुनक-(१) एक महर्षि, जो रुके पुत्र थे। इनका जन्म प्रमद्वराके गर्भसे हुआ था। शुनक वेदोंके पारङ्गत विद्वान् और धर्मात्मा थे। इन्हें शौनकका पितामह कहा गया है (आदि०५।१०)ये यधिधिरकी सभा में विराजते थे (सभा०४।१०)। श्रीकृष्णके दूत बनकर हस्तिनापुर जाते समय मार्गमें इन्होंने उनका अभिनन्दन किया था (उद्योग. ८३ । ६४ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। कहीं कहीं शौनकको शुनकका पुत्र बताया गया है ( अनु० ३० । ६५)। (२) एक राजर्षि, जो चन्द्रहन्तानामक असुरके अंशसे उत्पन्न हुए थे (आदि. ६७ । ३८)। चन्द्रतीर्थमें इन्हें परमधामकी प्राप्ति हुई थी (वन० १२५ । १८-१९ ) । महाराज हरिणाश्वसे इन्हें खङ्गकी प्राप्ति हुई और इन्होंने वह खड्न उशीनरको प्रदान किया था (शान्ति. १६६ । ७१)। शुभवक्त्रा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका(शल्य०४६७)। शुभाङ्गद-एक राजा, जो द्रौपदीके स्वयंवरमें पधारे थे (आदि. १८५ । २२)। शुभाङ्गी-एक दशाई कुलकी कन्या, जो सोमवंशी महाराज कुरुकी पत्नी थी। इसके गर्भसे विदूर नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (आदि० ९५ । ३९)। शकर-एक देश, जहाँके राजा कृतिने युधिष्ठिरको राजसूय यज्ञमें सैकड़ों गजरत्न भेंट किये थे (सभा०५२ । २५)। शद्र-चौथे वर्ण या जातिके लोग, इन्हें नकुलने दिग्विजयके समय जीतकर अपने अधीन कर लिया था (सभा. ३२।१०)। एक दक्षिण भारतीय जनपदका भी यह नाम है ( भीष्म. ९।६७ )। भगवान्की शरणमें जानेसे पापयोनिके जीव तथा शूद्र भी परमगतिको प्राप्त होते हैं ( भीष्म० ३३ । ३२ ) । शूद्र जनपदके लोग दुर्योधनको आगे करके कर्णके पृष्ठभागमें रहकर धृतराष्ट्रपुत्रोंके साथ-साथ युद्धक्षेत्रमें गये थे (द्रोण. ७ । १५-१६)। शुन्यपाल-दिपलोकके एक ऋषि, जो पाण्डवोंके दूत बनकर हस्तिनापुरको जाते हुए श्रीकृष्णसे मार्गमें मिले थे ( उद्योग० ८३।६४ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। ये एक वानप्रस्थी ऋषि थे और वानप्रस्थधर्मका पालन करनेसे स्वर्गको प्राप्त हो गये (शान्ति० २४४१ १८)। शूर-(१) एक प्राचीन नरेश (भादि० १ । २३२)। (२) महाराज ईलिनके द्वारा रथन्तरीके गर्भसे उत्पन्न पाँच पुत्रोंमेंसे एक । शेष चारके नाम हैं-दुष्यन्त, भीम, प्रवसु और वसु ( आदि. ९४ । १७-१८)।(३) सौवीरदेशका एक राजकुमार (वन० २६५ । १०)। द्रौपदीहरणके समय अर्जुनद्वारा इसका वध (वन. २७१ । २७)। शूरसेन ( शूर )-(१) वसुदेवजीके पिता । यदुवंशके एक श्रेष्ठ पुरुष । इनकी पुत्रीका नाम था पृथा (आदि. ६७। १२९, आदि. १०९।१)। इनके द्वारा अपनी पुत्री पृथाका अपने मित्र राजा कुन्तिभोजको गोद देना ( आदि० ६७ । १३१; भादि. १०९।२; आदि. १०।३)। ये यदुवंशी देवमीढके पुत्र थे । इनके पुत्रका नाम वसुदेव हुआ (द्रोण. १४४ । ६-७)। कहीं-कहीं इन्हें चित्ररथका पुत्र कहा गया है । सम्भव है, देवमीढका ही दूसरा नाम चित्ररथ' हो (अनु० १४७ । २९-३२ )। (२)एक जनपद और वहाँके निवासी (आधुनिक मथुरामण्डल या व्रजमण्डल )। इस देशके लोग जरासंधके भयसे अपने भाइयों और सेवकोंके साथ दक्षिण दिशामें भाग गयेथे (सभा० १४ । २६-२८)। सहदेवने दक्षिणदिग्विजयके समय इन्द्रप्रस्थसे चलकर सबसे पहले शूरसेननिवासियोंपर ही पूर्णरूपसे विजय पायी थी (सभा०३३ । १-२)। इस देशके लोग राजसूय यशमें युधिष्ठिरके लिये भेंट लाये थे (सभा०५२।१३)। पाण्डवलोग पाञ्चालसे दक्षिण यकृल्लोम तथा शरसेन देशोंके बीचसे होकर मत्स्य देशको गये थे ( विराट ५।४)। यह एक भारतीय जनपद है ( भीष्म०१। २९, ५२ )। इस देशके शूरवीर सैनिक अपना शरीर निछावर करनेको उद्यत हो विशाल रथसमुदायके द्वारा पितामह भीष्मकी रक्षा करते थे ( भीष्म १८ । १२-१४)। इस देशके सैनिकोंने कृतवर्मा और काम्बोजनरेशके साथ आकर अर्जुनको आगे बढ़नेसे रोका था (द्रोण. ९१ । ३७-३०)। शूरसेनदेशीय योद्धाओंने अर्जुनपर बाणोंकी वर्षा की (द्रोण. ९३ । २)। सात्यकिको आगे बढ़नेसे रोका था (द्रोण.१४१।९)। युधिष्ठिरने शूरसेनोंका संहार करके भूतलपर रक्तोंकी कोच मचा दी (द्रोण. १५७ । २९)। भीमसेनने शूरसेन देशके रणदुर्मद क्षत्रियोंको काट-काटकर वहाँकी रणभूमिको पाट दिया, जिससे वहाँ खूनकी कीच मच गयी (द्रोण० १६३ । ४-५) । शूरसेननिवासी यज्ञ करते हैं (कर्ण०१५। २८)। पाण्डवपक्षके शूरसेनदेशीय For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy