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शुक्राचार्य
( ३५४ )
शुनःसख
और प्रणाम करके इन्हें अपना पिता तथा माता कारण इनका शुक्र नाम पड़ना और पार्वतीजीका इन्हें मानना तथा कभी भी इनसे द्रोह न करनेकी प्रतिज्ञा अपना पुत्र स्वीकार करना (शान्ति० २८९ । ३२करना (आदि. ७६ । ४४-६४)। इनका मदिरा- ३५)। इनके द्वारा महादेवजीको शाप (शान्ति. पानको ब्रह्महत्याके समान बतलाकर उसे ब्राह्मणों के लिये ३४२ । २६)। इन्हें तण्डिसे शिवसहस्रनामका उपदेश सर्वथा निषिद्ध घोषित करना (आदि०७६ । ६७-६८)। प्राप्त हुआ था और इन्होंने गौतमको उसका उपदेश देवयानीके प्रति इनके द्वारा अपने प्रभाव का वर्णन (आदि० दिया (अनु. १७ । १७७)। ये भृगुके सात पुत्रीम७८ । ३७-४०) शर्मिष्ठाद्वारा पोड़ित हुई देवयानीको से एक हैं (अनु०८५ । १२९ ) । बलिके पूछनेपर इनका आश्वासन देना, सहनशीलताकी प्रशंसा करते उन्हें पुष्पादि-दानका महत्त्व बताना (अनु० ९८ । हए क्रोधका वेग रोकनेवालोंको परम श्रेष्ठ बतलाना १६-६४ )।
( आदि० ७९ । १-७)। अधर्मका फल अवश्य महाभारतमें आये हुए शुक्राचार्यके नाम-भार्गव प्राप्त होता है-इसे दृष्टान्तपूर्वक वृषपवाको समझाना भार्गवदायाद, भृगुश्रेष्ठ, भृगूदह, भृगुकुलोदह, भृगुनन्दन, (आदि० ८० । १-६ )। इनके द्वारा देवयानीको ।
___ भृगुसूनु, कविपुत्र) कविसुत, काव्य, उशना आदि । प्रसन्न करनेके लिये वृषपर्वाको आदेश (आदि०८.।
शुक्ल-पाण्डवपक्षका एक पाञ्चालदेशीय योद्धा (द्रोण०२३। ९-१२)। ययातिके साथ अपने विवाहके लिये इनसे 3 देवयानीकी प्रार्थना (आदि.८१३.)। ययाति ५९)। कर्णद्वारा इसका घायल होना ( कर्ण०५६ । अपनी पुत्रीको ग्रहण करनेके लिये कहना (आदि०८१।
४५)। ३.)। धर्म-लोपके भयसे भीत हुए ययातिको इनका शुचि-(१) एक राजा, जो यमसभामें रहकर सूर्यपुत्र आश्वासन देना (आदि. ८१। ३३)। देवशनीके यमकी उपासना करते हैं (सभा० ८।१४)(२) साथ विवाह करने एवं शर्मिष्ठाके साथ दारोचित व्यवहार
एक वणिक, व्यापारीदलका स्वामी, इसकी वनमें दमयन्तीन करनेके लिये ययातिको इनकी आज्ञा (आदि
से भेंट और बातचीत (वन० ६४ । १२७-१३१)। ३४-३५)। इनके द्वारा ययातिको जराग्रस्त होनेका
(३) एक अग्नि, जिनमें हवाके चलनेसे अग्नियोंके शाप (आदि० ८३ । ३.)। फिर उनके प्रार्थना करने
परस्पर सम्पर्क हो जानेपर अष्टाकपाल पुरोडाशद्वारा पर इनका ययातिको अपनी वृद्धावस्था दूसरेसे बदल
आहुति डाली जाती है (वन० २२१ । २४)। (४) सकनेकी सुविधा देना ( आदि० ८३ । ३९)। ये देव
विश्वामित्रके ब्रह्मवादी पुत्रों से एक (अनु० ४ । ५४)। राज इन्द्रकी सभामें विराजमान होते हैं (सभा०। (५) महर्षि भृगुके पुत्र ( अनु० ८५ । १२८)। २२)। ग्रहरूपसे ब्रह्माजीको सभामें भी उपस्थित होते शचिका-एक अप्सरा, जिसने अर्जुनके जन्म-महोत्सवमें हैं (सभा०११। २९ ) । ये मेरुपर्वतके शिखरपर नृत्य किया था (आदि. १२२ । ६२)। दैत्यों के साथ निवास करते हैं। सारे रत्न और रत्नमय शुचिव्रत-एक प्राचीन राजा ( आदि० १ । २३६)। पर्वत इन्हीं के अधिकार में हैं । भगवान् कुबेर इन्हींसे धनका
शुचिश्रवा-भगवान् श्रीकृष्णका नाम । इस नामकी निरुक्ति चतुर्थ भाग प्राप्त करके उसे उपयोगमें लाते हैं ( भीष्म०
(शान्ति० ३४२ । ९१)। ६। २२-२३)। ये शरशय्यापर पड़े हुए भीष्मजीको देखने के लिये गये थे (शान्ति. ४७।८)। महाराज २४
शुचिस्मिता-एक अप्सरा, जो कुबेरकी सभामें रहकर पृथुके पुरोहित बने थे ( शान्ति० ५९ । ११०)।
___ उनकी सेवा करती है (सभा० १०।१०)। इन्द्रको श्रेयःप्राप्तिके लिये प्रह्लादके पास भेजना (शान्तिः शुण्डिक-पूर्व-भारतका एक जनपद, जिसे कर्णने जीता १२४ । २७)। ये वानप्रस्थ-धर्मका पालन करके स्वर्ग था (वन० २५४ । ८)। को प्राप्त हुए हैं ( शान्ति० २४४ । १७-१८)। शुनाशेप-ऋचीक ( अजीगत ) का एक महातपस्वी पुत्र, वृत्रासुरसे देवताओंद्वारा पराजित होनेपर भी दुखीन जिसे राजा हरिश्चन्द्र के यज्ञमें यज्ञपशु बनाकर लाया गया होनेका कारण पूछना (शान्ति. २७९ । १५)।
था । विश्वामित्रने देवताओंको संतुष्ट करके इसे छुड़ा लिया सनत्कुमारजीसे वृत्रासुरको भगवान् विष्णुका माहात्म्य
था, इसलिये यह विश्वामित्रके पुत्रभावको प्राप्त हो बताने के लिये कहना (शान्ति० २८०। ५)। योगबल
गया। देवताओंके देनेसे इसका नाम देवराता हुआ से कुबेरके धनका अपहरण करना (शान्ति. २८९ ।
और यह विश्वामित्रका ज्येष्ठ पुत्र माना गया (अनु. ९)। भयके कारण सूर्यके उदरमें लीन होना (शान्ति. ३।६-८)। २८९ । १९-२०)। शिवजीके लिंगसे निर्गत होनेके शुनःसख-संन्यासोके वेषमें कुत्तेके साथ विचरनेवाले
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