________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शिशुपालवधपर्व
( ३५२ )
शुकदेव
दिग्विजययात्रामें इसके द्वारा सम्मानित हुए थे (सभा० २९। ११-१२)। यह युधिष्ठिरके राजसूय यज्ञमें आया था ( सभा० ३४ । १४) । राजसूय यशमें अग्रपूजाके समय श्रीकृष्णके प्रति इसके आक्षेपपूर्ण वचन (सभा० ३७ अध्याय)। युधिष्ठिरका इसे समझाना और भीष्मका
आक्षपोका उत्तर देना (सभा०३८।१-२९)। श्रीकृष्णकी अग्रपूजाके कारण राजसूय यज्ञमें उपद्रव मचानेके लिये इसका प्रयत्न (सभा० ३९।११-१२)। इसके द्वारा भीष्मकी निन्दा (सभा० ४१ अध्याय)। इसकी बातोसे भीमसेनका कुपित होना ( सभा०४२ । १-१२) । भीष्मजीके द्वारा इसके जन्मकालिक वृत्तान्तका वर्णन । इसके जन्म समयकी आकाशवाणी, इसकी मृत्युके निमित्तका उद्घोष तथा श्रीकृष्णकी गोदमें आनेपर इसकी दो भुजाओं तथा एक आँखका विलीन होना आदि (सभा० ४३ अध्याय)। इसका भीष्मको फटकारना (सभा० ४४ । ६-३२) । श्रीकृष्णकी अनुपस्थितिमें इसके द्वारा द्वारकाका दाह (सभा०४५। ७)। इसके द्वारा वसुदेवजीके यज्ञीय अश्वका अपहरण (सभा० ४५ । १)। इसका बभ्रकी पत्नीका हरण करना (सभा० ४५। १०)। विशाला-नरेश (अपने मामा) की पुत्रीका अपहरण (सभा०४५।११) श्रीकृष्णद्वारा इसका शिरश्छेदन ( वध)(सभा० ४५।२५)। परमात्मा श्रीकृष्णमें इसके तेजका समावेश (समा०४५। २१-२७)। श्रीकृष्णका अर्जुनके प्रति इसके वधका
कारण बताना (द्रोग० १८१।२१.२२)। महाभारतमें आये हुए शिशुपालके नाम-चेद्य, चेदिप,
चेदिपति, चेदिपुङ्गव, चेदिराट, चेदिराज, चेदिवृष,
श्रोतश्रवस, दमघोषसुत, दमघोषात्मज आदि । शिशुपालवधपर्व-सभापर्वके अन्तर्गत एक अवान्तर पर्व
(अध्याय १० से ४५ तक)। शिशुमारमुखी-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य.
४६ । २२)। शिशुरोमा-तक्षककुलमें उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजयके
सर्पसत्रमें जल गया ( आदि० ५७ । १०)। शीघ्रा-भारतवर्षकी एक प्रमुख नदी, जिसका जल यहाँके निवासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । २९)। शीतपूतना-भयङ्कर आकारवाली एक पिशाची, जो मानवी स्त्रियोंके गर्भका हरण करनेवाली है (वन० २३० । २८)। शीताशी-शाकद्वीपकी एक पवित्र जलवाली नदी (भीष्मः
१५ । ३२)। शोलवान-एक दिव्य महर्षि, जो हस्तिनापुर जाते समय
मार्गमें श्रीकृष्णसे मिले थे (उद्योग० ८३ । ६४ के बाद
दाक्षिणात्य पाठ)। शक-(१)शर्यातिवंशज पृषतके पुत्र, जो अपने पराक्रमसे
शत्रुओंको संतप्त करनेवाले थे। इन्होंने सारी पृथ्वीको जीतकर अपने अधिकारमें कर लिया था और अश्वमेध-जैसे सौ बड़े-बड़े यज्ञका अनुष्ठान किया था, देवता तथा पितरोंकी आराधना की थी। तदनन्तर राज्य त्यागकर ये शतशृङ्ग पर्वतपर आ गये और शाक एवं फल मूलका आहार करते हुए तपस्या करने लगे। इन्होंने ही श्रेष्ठ उपकरणों तथा शिक्षाके द्वारा पाण्डवोंकी योग्यता बढ़ायी, इनके कृपाप्रसादसे सभी पाण्डव धनुर्वेदमें पारंगत हो गये थे। इन्होंने अर्जुनको नाना प्रकारके अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये थे (आदि. १२३३१ के बाद दा. पाठ, पृष्ठ १६९)।(२) रावणका मन्त्री, जो पानरका रूप धारण करके श्रीरामकी सेनामें आनेपर विभीषणद्वारा बंदी बना लिया गया था (वन० २८५। ५२) राक्षसरूपमें प्रकट होनेर श्रीरामने अपनी सेनाका दर्शन कराकर इसे मुक्त कर दिया था ( बन० २८३ । ५३) । (३) गान्धारराज सुबलका एक पुत्र शकुनिका भाई, इरावान्द्वारा इसका वध (भीष्म. ९०। २६-३२)। शुकदेव-व्यासजीके पुत्र तथा शिष्य । व्यासजीने पहले इन्हींको महाभारत ग्रन्थका अध्ययन कराया था (आदि. १।१०४)। शुकदेवजीने गन्धर्व, यक्ष तथा राक्षसोंको चौदह लाख श्लोकोंसे युक्त महाभारतकी कथा सुनायी थी (आदि.१।०६-१०८ स्वर्गा० ५। ५५-५६)। इन्होंने सम्पूर्ण वेदों तथा महाभारतकी भी इन्हें शिक्षा दी थी ( आदि. १३ । ८९)। ये युधिष्ठिरकी सभामें विराजमान होते थे (सभा० ४ । ११)। धर्मपालनसे ही इनका हृदय शुद्ध हुआ है (वन०१२)। व्यासजीसे इनके अनेक प्रश्न (शान्ति०२३१।९)। शुकदेवजीके प्रश्नके अनुसार व्यासजीके द्वारा ज्ञानके साधन
और उसकी महिमा, योगसे परमात्माकी प्राप्ति, कर्म और शानके अन्तर, ब्रह्मप्राप्तिके उपाय, ब्रह्मचर्य-आश्रम, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ और संन्यास-आश्रम, संन्यासके आचरण, परमात्माकी श्रेष्ठता, उसके दर्शनके उपाय, ज्ञानोपदेशके पात्रके निर्णय, महाभूतादि तत्त्वोंके विवेचन बुद्धिकी श्रेष्ठता, प्रकृति-पुरुष-विवेक, शानके साधना ज्ञानीके लक्षण, परमात्म-प्राप्तिके साधन, संसारनदी, ज्ञानसे ब्रह्मकी प्राप्ति, ब्रह्मवेत्ताके लक्षण, शरीरमें पञ्चभूतॊके कार्य और गुणोंकी पहचान, परमात्मसाक्षात्कारके प्रकार, कामवृक्षः उसे काटकर मोक्षप्राप्ति, शरीरनगर तथा पञ्चभूतः मन और बुद्धिके गुण आदिका वर्णन (शान्ति० २३९ । मे २५५ अध्यायतक)।
For Private And Personal Use Only