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शिव
( ३५१ )
शिशुपाल
उशनापर इनका कोप करना और उन्हें शिश्नद्वारसे बाहर महायोगी, महेश, महेश्वर, महिषघ्न, मखन, मीढ्वा, निकालना ( शान्ति. २८९ । १४-३४ )। मृगव्याध, मुनीन्द्र, नन्दीश्वर, निशाचरपति, नीलग्रीव शुक्राचार्यको अभयदान देना (शान्ति० २८९ । ३६)। नीलकण्ठ, नीललोहित, पशुभर्ता, पशुपति, पिनाकधूका आसुरभावको नष्ट करना (शान्ति. २९४ । १६-१७)। पिनाकगोप्ता, पिनाकहस्त, पिनाकपाणि, पिनाकी, पिङ्गल, व्यासजीको पुत्र प्राप्ति के लिये वर देना (शान्ति० ३२३ । प्रजापतिमखघ्न, रुद्र, ऋषभकेतु, सर्व, सर्वयोगेश्वरेश्वर, २७-२९ ) । व्यासपुत्र शुकदेवका उपनयन-संस्कार स्थाण, त्रिशूलहस्त, त्रिशूलपाणि, त्रिलोचन, त्रिनयन, करना (शान्ति. ३२४ । १९)। पुत्रशोकमें व्याकुल त्रिनेत्र, त्रिपुरघाती, त्रिपुरघ्न, त्रिपुरहर्ता, त्रिपुरमर्दन, व्यासजीको समझाना (शान्ति. ३३३ । ३४-३०)। त्रिपुरनाशन, त्रिपुरान्तक, त्रिपुरान्तकर, त्रिपुरार्दन नारायणके साथ युद्ध करना (शान्ति० ३४२ । ११०- त्रिपुरविघ्न, व्यक्ष, त्र्यम्बक, उग्र, उग्रेश, उमापति, ११६)। वैजयन्त पर्वतपर ब्रहासे परमपुरुषके विषयमें विशालाक्ष, विलोहित, विरूपाक्ष, वृषभध्वज, वृषभाङ्क इनका प्रश्न (शान्ति० ३५० । २३-२४)। शिवके वृषभवाहन, वृषध्वज, वृषकेतन, वृषाङ्क, वृषवाहन, याम्य, माहात्म्यका विशेष वर्णन (अनु० १४ अध्याय)। तण्डि यति, योगेश्वर आदि । (२) एक अग्नि, जो शक्तिकी मुनिको वर प्रदान करना (अनु० १६ । ६९-७१)। आराधनामें लगे रहते हैं। ये समस्त दुःखातुर मनुष्योंका इनके सहस्रनामका वर्णन (अनु. १७ अध्याय)। शिव (कल्याण) करते हैं। इसीसे इन्हें शिव कहते हैं दक्षने इनको एक वृषभ प्रदान किया, जो इनका वाहन (वन० २२१ । २)। और ध्वज हआ (अनु. ७७ । २०-२८)। वरुण- शिवा-१) अनिल नामक वसुकी भार्या । इनके दो रूपसे इनके यशका वर्णन ( अनु. ८५। ८८
पुत्र थे-मनोजव तथा अविज्ञातगति (आदि०६६ । १६)। इनके धर्मसम्बन्धी रहस्यका वर्णन (अनु.
२५)। (२) अङ्गिराकी भार्या जो शील, रूप और १३३ अध्याय)। तीसरा नेत्र प्रकट करके हिमालयको
सद्गणोंसे सम्पन्न थीं (वन० २२५ ।।)। (३) दग्ध करके पुनः उसे प्रकृतिस्थ करना (अनु. १५०।
भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल यहाँके निवासी पीते हैं ३३-३०)। पार्वतीजीके साथ संवाद (अनु० १४०। (भीष्म० ९ । २५)।
के बादसे अनु० १४५ अध्यायतक)। पार्वतीजीस पोटेट-एक तीर्थ, जहाँ सरस्वतीका दर्शन होता है। स्त्री-धर्मका वर्णन करनेके लिये कहना ( अनु० १४६ ।
उसमें स्नान करके मनुष्य सहस्त्र गोदानका फल पाता है २-१२)। इनके द्वारा श्रीकृष्णकी वंशपरम्परा तथा
(वन० ८२ । ११२-११३)। माहात्म्यका कथन ( अनु० १४७ अध्याय) । इनके द्वारा दक्ष-यश-विध्वंस (अनु० १६०। ११--२४)। शिशिर-सोमनामक वमुद्वारा मनोहराके गर्भसे उत्पन्न चार
पुत्रों से एक । शेष तीनके नाम हैं-वर्चा, प्राण और इनका त्रिपुरोको दग्ध करना (अनु० १६० । २५-- ३१) । पाँच शिखावाले बालकका रूप धारण करके रमण ( आदि० ६६ । २२)। इनका पार्वतीकी गोदमें आना (अनु० १६० । ३२)। शिशु-भगवान् स्कन्दकी कृपासे सप्तमातृकाओंके पुत्र, जो ये मुजवान् नामक पर्वतपर सदा तपस्या करते हैं अद्भुत पराक्रमी, अत्यन्त दारुण और भयङ्कर थे। इनकी ( आश्व० ८।)। इनको नाममयी स्तुति (आश्व. आँखें रक्तवर्णकी थीं। मातृकाओंसहित इन्हें 'वीराष्टक' 6। १२-३२)।
कहा जाता है (वन० २२८ । ११-१२)। महाभारतमें आये हुए शिवके नाम-अजा अम्बिकाभर्ता, शिशुपाल-चेदिदेशका एक प्रसिद्ध राजा, जिसके रूपमें
अनङ्गाङ्गहर, अनन्त, अन्धकघाती, अन्धकनिपाती, हिरण्यकशिपु दैत्य ही इस भूतलपर उत्पन्न हुआ था अथर्वा, बहुरूप, भगन, भव, भवन, भीम, शङ्कर (आदि.६७ । ५)। द्रौपदीके स्वयंवरमें इसका शर्व, शिपिकण्ठ, श्मशानवासी, श्रीकण्ठ, शुक्र, शूलभृत्।
आगमन ( आदि० १८५ । २३)। यह दमघोषका पुत्र शूलधर, शूलधूक, शूलहस्त, शूलाङ्क, शूलपाणि, शूली, था । द्रौपदी स्वयंवरमें धनुषपर हाथ लगाते ही यह दक्षकतुहर, धन्वी, ध्रुव, धूर्जटि, दिग्वासा, दिव्यगोवृषभ- घुटनोंके बल पृथ्वीपर गिर पड़ा था ( आदि० १०६ । ध्वज, एकाक्ष, गणाध्यक्ष, गणेश, गौरीश, गौरीहृदय- २५)। यह कलिङ्गराजकी कन्याके स्वयंवरमें भी गया था वल्लभ, गिरीश, गिरिश, गोवृषाङ्क, गोवृषध्वज, गोवृषो- (शान्ति.१।६)। युधिष्ठिरके मयनिर्मित सभाभवनमें त्तमवाहन, हर, इर्यक्ष, जटाधर, जटिल, जटी, कामाङ्ग- यह भी विराजमान होता था (सभा० ४ । २९)। नाश, कपाली, कापालि, कपर्दी खटवानधारी, कृत्तिवासा, यह जरासंधका आश्रय लेकर उसका प्रधान सेनापति हो कुमारपिता, ललाटाक्ष, लेलिहान, महादेव, महागणपति, गया था (सभा. १४ । १०-११)। भीमसेन अपनी
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