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शतरुद्र
( ३३८ )
शतरुद्र-वेदका शतरुद्रिय-प्रकरण, जिसमें रुद्रदेवके सौ के साथ युद्ध (द्रोण. १६ । ७-८)। इसके घोड़ौका
नामोंका उल्लेख है ( अनु० १५०।१४)। वर्णन (द्रोण० २३ ॥३०)। इसके द्वारा भूतकर्माका शतलोचन-स्कन्दका एक सैनिक (शल्य.४५। ६०)। वध (द्रोण. २५ । २३) चित्रसेनकी पराजय (द्रोण. शतशीर्षा-नागराज वासुकिकी पत्नी (उद्योग. ११७ । १६८ । १२) । धृतराष्ट्रपुत्र श्रुतकर्माके साथ इसका
घोर युद्ध (कर्ण० २५ । १३-१६) । अश्वत्थामाके शतङ्ग-(१) एक पर्वत, जहाँ गन्धमादन, इन्द्रद्युम्न साथ इसका युद्ध (कर्ण० ५५ । १४-१७) । इसके
और हंसकूटको लाँघकर राजा पाण्डुने पदार्पण किया था, द्वारा कलिङ्गराजकुमारका वध (कर्ण० ८५।२१)। वहाँ वे तपस्वी-जीवन बिताते हुए भारी तपस्यामें संलग्न अश्वत्थामाद्वारा इसका वध ( सौप्तिक. ८ । ५७. हो गये (आदि. ११८ । ५.)। यहीं पाँचों पाण्डवों- ५८)। का जन्म हुआ था। शतशृङ्गनिवासी ऋषि-मुनि अर्जुन- महाभारतमें आये हुए शतानीकके नाम-नकुलदायाद, के जन्मसे बहुत प्रसन्न हुए थे । इन सब भाइयोंका नकुलसुत, नकुलात्मज और नाकुलि आदि । नामकरण संस्कार भी यहीं हुआ था (आदि. १२२, (२) परीक्षित् पुत्र जनमेजयकी पत्नी वपुष्टमाके गर्भसे उत्पन्न १२३ अध्याय)। राजा पाण्डुकी मृत्यु और उनके साथ राजकुमार । इसकी पत्नी विदेहराजकुमारी थी और इसके माद्रीके चितारोहणकी घटना भी यहीं घटित हुई थी पुत्रका नाम था अश्वमेधदत्त (आदि. ९५ । ८६)। (आदि. १२४ अध्याय)। स्वप्नावस्थामें श्रीकृष्णके (३) कुरुकुलके एक प्राचीन राजर्षि, जिनके नामपर साथ कैलास जाते हुए अर्जुनको मार्गमें शतशृङ्ग पर्वत नकुलने अपने पुत्रका नाम रखा था (वन० २२० । मिला था (द्रोण० ८० । ३२)। सुलभाके पूर्वजोंके ८४)। (४) (सूर्यदत्त) मत्स्यनरेश विराटके भाई यज्ञमें देवराज इन्द्रके सहयोगसे द्रोण, शतशृङ्ग और __ और सेनापति, जिन्होंने गोहरणके समय सोनेका कवच चक्रद्वार नामक पर्वत ईटोकी जगह चुने गये थे धारण करके त्रिगतोंके साथ युद्ध के लिये प्रस्थान किया (शान्ति. ३२० । १८५) । (२) एक राक्षस, (विराट० ३१ । ११-१२)। इनका दूसरा नाम सूर्यदत्त जिसके संयम,' वियम' और महाबली 'सुयम' नामक था (विराट. ३१ । १५) । त्रिगोंके साथ इनका तीन पुत्र थे (शान्ति. ९८।११के बाद दा०पाठ, पृष्ठ घोर संग्राम (विराट. ३३।१९-२१)। इन्हें भीष्मने ४६४७)।
धराशायी एवं घायल किया था (भीष्म० ११८।२७)। शतसहस्र-कुरुक्षेत्रकी सीमामें स्थित एक लोकविख्यात ये पाण्डवोंके प्रमुख सहायक थे (द्रोण. १५८ । ४१)। तीर्थ, जहाँ स्नान करनेसे सहस्र गोदानका फल मिलता शल्यद्वारा इनका वध (द्रोण. १६७।३०)। (५) है । वहाँ किये गये दान और उपवासका महत्त्व अन्यत्रसे विराटका छोटा भाई । द्रोणाचार्यद्वारा इसका वध (द्रोण.
सहस्रगुना अधिक है (बन० ८३ | १५-१५९)। २१।२८)। शतसाहस्रक-गोमतीके रामतीर्थके अन्तर्गत एक तीर्थ, शतायु-(१) पुरूरवाके द्वारा उर्वशीके गर्भसे उत्पन्न जिसमें स्नान करके नियम पालनपूर्वक नियमित भोजन छः पुत्रोंमेंसे एक । शेष पाँचके नाम हैं-आयु, धीमान्, करनेवाला मनुष्य सहस्र गोदानका फल पाता है (वन०
अमावसु, दृढायु और वनायु (आदि०७५। २४-२५)। ८४ । ७४-७५)।
(२) एक कौरवपक्षीय योद्धा, जो भीष्मनिर्मित क्रौञ्चशतानन्द-एक दिव्य महर्षि, जो भीष्मजीको देखनेके लिये
व्यूहके जघन प्रदेशमें स्थित था (भीष्म ७५। २२)। पधारे थे (अनु. २६ । ८)।
इसके मारे जानेकी चर्चा (शल्य०२। १९)। शतानन्दा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य.
शतोदरी-स्कन्दकी अनुचरी एकमातृका (शल्य ०४६॥ १५)। ४६ । ११)। शतानीक-(१) नकुलद्वारा द्रौपदीके गर्भसे उत्पन्न शतोलूखलमेखला-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य.
(आदि. ६३ । १२३, आदि. ९५ । ७५)। यह विश्वेदेवके अंशसे उत्पन्न हुआ था (आदि. ६७। शत्रुघ्न-महाराज दशरथके पुत्र, श्रीरामके भ्राता । इनकी १२७-१९८)। कौरवकुलके महामना राजर्षि शतानीकके माताका नाम सुमित्रा था (वन० २७४ । ७-८)। नामपर नकुलने अपने इस पुत्रका नाम (शतानीक) इन्होंने श्रीरामकी आज्ञासे मधुके पुत्र लवण नामक राक्षसरखा था ( आदि० २२० । ८१)। इसके द्वारा जयत्सेन- का वध किया था (सभा० ३८ । २९ के बाद, की पराजय (भीष्म० ७१। ४२-४५)। दुष्कर्णकी दाक्षिणात्य पाठ, पृष्ठ ७१५)। वनसे लौटनेपर बड़े भाई पराजय (भीष्म० ७९ | १६--५२)। इसका वृषसेन- श्रीरामसे इनका मिलन (वन० २९१ । ६३)।
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