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शङ्खिनी
शङ्खिनी-कुरुक्षेत्र की सीमाके अन्तर्गत एक तीर्थ, जहाँ देवी - तीर्थ में स्नान करनेसे उत्तम रूपकी प्राप्ति होती है ( वन० ८३ । ५१ ) ।
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शची- देवराज इन्द्रकी पत्नी, जिनके अंशसे द्रौपदीका प्राकट्य हुआ था ( आदि० ६७ । १५७ ) | ये इन्द्रसभामें देवराज इन्द्रके साथ उत्तम सिंहासनपर समासीन होती हैं ( सभा० ७ । ४ | ब्रह्मसभा में भी उपस्थित हो देवेश्वर ब्रह्माजीकी उपासना करती हैं ( सभा० ११ । ४२ ) । ये देवेन्द्रकी महारानी हैं, इन्होंने इन्द्रभवन में आयी हुई सत्यभामाको देवमाता अदितिकी सेवामें पहुँचाया था ( सभा ०३८ । २९के बाद दा० पाठ पृष्ठ८ १३ ) | (इन्हें पुलोमा नामक असुरकी पुत्री कहा गया है ) । इनका नहुषके भयसे बृहस्पतिकी शरणमें जाना ( उद्योग० ११ । २० - २३ ) | नहुषको पति बनानेसे इन्कार करना ( उद्योग० १२ । १५ ) | नहुषसे कुछ कालकी अवधि माँगना (उद्योग० १३ । ४-६ ) । इनके द्वारा उपश्रुतिकी उपासना (उद्योग० १३ । २६-२७) । उपश्रुतिकी सहायता से इनकी इन्द्रसे भेंट (उद्योग ० १४ । ११-१२ ) । नहुष सप्तर्षियोंद्वारा ढोयी जानेवाली शिबिकापर आनेकी माँग करना ( उद्योग० १५ । ९ - १४ ) । ये स्कन्दके जन्म- समयमै उनके पास गयी थीं (शल्य० ४५ । १३) । इनके नहुषके भयसे मुक्त होनेकी कथा ( शान्ति ० ३४२ । ४७-५० ) ।
शठ-एक दानव, जो कश्यपपत्नी दनुके गर्भ से उत्पन्न हुआ था (आदि० ६५ | २९ ) । शतकुम्भा - एक तीर्थभूत नदी, जहाँकी यात्रा करने से
मनुष्य स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है ( वन० ८४ । १०-११ ) । यह अग्निकी उत्पत्तिका स्थान है ( वन० २२२ । २२ - २६ ) | यह उन भारतीय नदियोंमें से एक है, जिनका जल भारतवासी पीते हैं (भीष्म० ९ । १९ ) । शतघण्टा - स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । ११ ) । शतचन्द्र कौरवपक्षका एक महारथी योद्धा, शकुनिका
भाई । भीमसेनद्वारा इसका वध ( द्रोण० १५७ । २३ ) । शतज्योति सुभ्राट्के तीन पुत्रोंमेंसे एक, जिनके एक लाख पुत्र हुए थे (आदि ० १ । ४४-४५ ) ।
शतद्युम्न - एक प्राचीन नरेश, जिन्होंने मुद्गल ( मौद्गल्य ) ब्राह्मणको सोनेका गृह प्रदान किया और उसके पुण्यसे स्वर्ग प्राप्त कर लिया ( शान्ति० २३४ । ३२; अनु० १३७ । २१ ) ।
शतद्रु ( शतद्रू ) - हिमालय पर्वत से निकली हुई एक नदी, जिसका आधुनिक नाम सतलज है । एक समय पुत्रोंके शोकसे व्याकुल होकर वसिष्ठजी आत्महत्या के
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शतरथे
लिये इस नदीमें कूद पड़े थे, उस समय उन्हें अग्निके समान तेजस्वी जान यह नदी सैकड़ों धाराओंमें फूटकर इधर-उधर भाग चली । शतधा विद्रुत होनेसे इसका नाम 'शतद्रु' हुआ ( आदि० १७६ ॥ ८(९) । यह वरुणकी सभा में रहकर उनकी उपासना करती है ( सभा० ९ । १९ ) । यह भारतकी एक प्रमुख नदी है, इसका जल भारतवासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । १५ ) । महादेवजी के पूछने पर स्त्रीधर्मका वर्णन करते समय पार्वतीजीने इसके विषयमें जिन पुण्यमयी प्रमुख नदियोंसे सलाह ली थी, उनमें शतद्रु भी थी ( अनु० १४६ । १८ ) । यह सायं प्रातःस्मरणीय नदी है (अनु० १६५ | १८ ) । शतधन्वा - एक क्षत्रिय, जिसे भगवान् श्रीकृष्णने परास्त
किया था ( वन० १२ । ३० ) । यह कलिङ्गराज चित्राङ्गदकी कन्याके स्वयंवर में गया था ( शान्ति० ४। ७)।
शतपत्रवन - द्वारका के पश्चिम भागमें स्थित सुकक्ष पर्वतको सब ओर से घेरकर सुशोभित होनेवाला एक वन ( सभा० ३८ | २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८१३) । शतपर्वा - शुक्रकी भार्या ( उद्योग० ११७ । १३ ) । शतबला - भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल यहाँ के लोग पीते हैं ( भीष्म० ९ । २० ) ।
शतभिषा - एक नक्षत्र, जिसके योग में अगुरु और चन्दनसहित सुगन्धित पदार्थोंका दान करनेवाला पुरुष परलोकमें अप्सराओंके समुदाय तथा अक्षयलोकको पाता है (अनु० ६४ । ३० ) । चन्द्रव्रतमें शतभिषाको चन्द्रदेवका 'हास' मानकर उसी भावसे उसकी पूजा करनी चाहिये ( अनु० ११० । ८ ) ।
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शतमुख- एक महान् असुर, जिसने सौसे अधिक वर्षोंतक अपने मां की आहुति दी थी ( अनु० १४ । ८४८५)। इससे संतुष्ट हो भगवान् शङ्करका इसे वर देना ( अनु० १४ । ८५-८७ )। शतयूप - केकयदेश के एक मनीषी राजर्षि, जो पुत्रको राज्य देकर कुरुक्षेत्र के वनमें तपस्या करनेके लिये आये थे । इनके आश्रमपर ही धृतराष्ट्र आदि ठहरे थे । इन्होंने I धृतराष्ट्रसे वनवास की विधि बतायी थी ( आश्रम ० १९ ॥ ८- १३ ) । इनके पितामहका नाम सहस्रचित्य था ( आश्रम० २० । ६ ) । इन्होंने नारदजी से धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गति पूछी थी ( आश्रम ० २० । २३ - २८ ) । शतरथ - एक प्राचीनं नरेश ( आदि० १ । २३३ ) । ये यमसभा में रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । २६ ) ।