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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org शङ्खिनी शङ्खिनी-कुरुक्षेत्र की सीमाके अन्तर्गत एक तीर्थ, जहाँ देवी - तीर्थ में स्नान करनेसे उत्तम रूपकी प्राप्ति होती है ( वन० ८३ । ५१ ) । ( ३३७ ) शची- देवराज इन्द्रकी पत्नी, जिनके अंशसे द्रौपदीका प्राकट्य हुआ था ( आदि० ६७ । १५७ ) | ये इन्द्रसभामें देवराज इन्द्रके साथ उत्तम सिंहासनपर समासीन होती हैं ( सभा० ७ । ४ | ब्रह्मसभा में भी उपस्थित हो देवेश्वर ब्रह्माजीकी उपासना करती हैं ( सभा० ११ । ४२ ) । ये देवेन्द्रकी महारानी हैं, इन्होंने इन्द्रभवन में आयी हुई सत्यभामाको देवमाता अदितिकी सेवामें पहुँचाया था ( सभा ०३८ । २९के बाद दा० पाठ पृष्ठ८ १३ ) | (इन्हें पुलोमा नामक असुरकी पुत्री कहा गया है ) । इनका नहुषके भयसे बृहस्पतिकी शरणमें जाना ( उद्योग० ११ । २० - २३ ) | नहुषको पति बनानेसे इन्कार करना ( उद्योग० १२ । १५ ) | नहुषसे कुछ कालकी अवधि माँगना (उद्योग० १३ । ४-६ ) । इनके द्वारा उपश्रुतिकी उपासना (उद्योग० १३ । २६-२७) । उपश्रुतिकी सहायता से इनकी इन्द्रसे भेंट (उद्योग ० १४ । ११-१२ ) । नहुष सप्तर्षियोंद्वारा ढोयी जानेवाली शिबिकापर आनेकी माँग करना ( उद्योग० १५ । ९ - १४ ) । ये स्कन्दके जन्म- समयमै उनके पास गयी थीं (शल्य० ४५ । १३) । इनके नहुषके भयसे मुक्त होनेकी कथा ( शान्ति ० ३४२ । ४७-५० ) । शठ-एक दानव, जो कश्यपपत्नी दनुके गर्भ से उत्पन्न हुआ था (आदि० ६५ | २९ ) । शतकुम्भा - एक तीर्थभूत नदी, जहाँकी यात्रा करने से मनुष्य स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है ( वन० ८४ । १०-११ ) । यह अग्निकी उत्पत्तिका स्थान है ( वन० २२२ । २२ - २६ ) | यह उन भारतीय नदियोंमें से एक है, जिनका जल भारतवासी पीते हैं (भीष्म० ९ । १९ ) । शतघण्टा - स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६ । ११ ) । शतचन्द्र कौरवपक्षका एक महारथी योद्धा, शकुनिका भाई । भीमसेनद्वारा इसका वध ( द्रोण० १५७ । २३ ) । शतज्योति सुभ्राट्के तीन पुत्रोंमेंसे एक, जिनके एक लाख पुत्र हुए थे (आदि ० १ । ४४-४५ ) । शतद्युम्न - एक प्राचीन नरेश, जिन्होंने मुद्गल ( मौद्गल्य ) ब्राह्मणको सोनेका गृह प्रदान किया और उसके पुण्यसे स्वर्ग प्राप्त कर लिया ( शान्ति० २३४ । ३२; अनु० १३७ । २१ ) । शतद्रु ( शतद्रू ) - हिमालय पर्वत से निकली हुई एक नदी, जिसका आधुनिक नाम सतलज है । एक समय पुत्रोंके शोकसे व्याकुल होकर वसिष्ठजी आत्महत्या के म० ना० ४३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतरथे लिये इस नदीमें कूद पड़े थे, उस समय उन्हें अग्निके समान तेजस्वी जान यह नदी सैकड़ों धाराओंमें फूटकर इधर-उधर भाग चली । शतधा विद्रुत होनेसे इसका नाम 'शतद्रु' हुआ ( आदि० १७६ ॥ ८(९) । यह वरुणकी सभा में रहकर उनकी उपासना करती है ( सभा० ९ । १९ ) । यह भारतकी एक प्रमुख नदी है, इसका जल भारतवासी पीते हैं ( भीष्म० ९ । १५ ) । महादेवजी के पूछने पर स्त्रीधर्मका वर्णन करते समय पार्वतीजीने इसके विषयमें जिन पुण्यमयी प्रमुख नदियोंसे सलाह ली थी, उनमें शतद्रु भी थी ( अनु० १४६ । १८ ) । यह सायं प्रातःस्मरणीय नदी है (अनु० १६५ | १८ ) । शतधन्वा - एक क्षत्रिय, जिसे भगवान् श्रीकृष्णने परास्त किया था ( वन० १२ । ३० ) । यह कलिङ्गराज चित्राङ्गदकी कन्याके स्वयंवर में गया था ( शान्ति० ४। ७)। शतपत्रवन - द्वारका के पश्चिम भागमें स्थित सुकक्ष पर्वतको सब ओर से घेरकर सुशोभित होनेवाला एक वन ( सभा० ३८ | २९ के बाद दा० पाठ, पृष्ठ ८१३) । शतपर्वा - शुक्रकी भार्या ( उद्योग० ११७ । १३ ) । शतबला - भारतवर्षकी एक नदी, जिसका जल यहाँ के लोग पीते हैं ( भीष्म० ९ । २० ) । शतभिषा - एक नक्षत्र, जिसके योग में अगुरु और चन्दनसहित सुगन्धित पदार्थोंका दान करनेवाला पुरुष परलोकमें अप्सराओंके समुदाय तथा अक्षयलोकको पाता है (अनु० ६४ । ३० ) । चन्द्रव्रतमें शतभिषाको चन्द्रदेवका 'हास' मानकर उसी भावसे उसकी पूजा करनी चाहिये ( अनु० ११० । ८ ) । For Private And Personal Use Only शतमुख- एक महान् असुर, जिसने सौसे अधिक वर्षोंतक अपने मां की आहुति दी थी ( अनु० १४ । ८४८५)। इससे संतुष्ट हो भगवान् शङ्करका इसे वर देना ( अनु० १४ । ८५-८७ )। शतयूप - केकयदेश के एक मनीषी राजर्षि, जो पुत्रको राज्य देकर कुरुक्षेत्र के वनमें तपस्या करनेके लिये आये थे । इनके आश्रमपर ही धृतराष्ट्र आदि ठहरे थे । इन्होंने I धृतराष्ट्रसे वनवास की विधि बतायी थी ( आश्रम ० १९ ॥ ८- १३ ) । इनके पितामहका नाम सहस्रचित्य था ( आश्रम० २० । ६ ) । इन्होंने नारदजी से धृतराष्ट्रको मिलनेवाली गति पूछी थी ( आश्रम ० २० । २३ - २८ ) । शतरथ - एक प्राचीनं नरेश ( आदि० १ । २३३ ) । ये यमसभा में रहकर सूर्यपुत्र यमकी उपासना करते हैं ( सभा० ८ । २६ ) ।
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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