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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शक्रकुमारिका ( ३३६ ) शक्रकुमारिका-एक सिद्धसेवित प्राचीन तीर्थ, जहाँ इनका वध (भीष्म०८२।२०-२५)। इनके मारे स्नान करनेसे शीघ्र स्वर्गकी प्राप्ति होती है (धन. ८३ । जानेकी चर्चा (कर्ण०६।३७) मृत्युके पश्चात् ये ८.)। विश्वेदेवोंमें मिल गये थे (स्वर्गा० ५। १७-१८)। शक्रदेव-एक कलिङ्गराजकुमार, जो कौरवपक्षीय योद्धा था, (३) एक ऋषि, जो महर्षि लिखितके भ्राता थे। ये भीमसेनके साथ इसका युद्ध और उनके द्वारा वध इन्द्रकी सभामें रहकर देवराज इन्द्रकी उपासना करते हैं (भीष्मः ५४।२४-२५)। (सभा०।")। बिना पूछे अपने आश्रमका फल तोड़ने के कारण इनका अपने भाई लिखितको दण्ड शक्रवापी-गिरिवजके समीपस्थ गौतमके आश्रमके निकटवर्ती ग्रहण करने के लिये राजा सुद्युम्नके पास भेजना (शान्ति. वनमें रहनेवाला एक नाग ( सभा० २१।९)। २३ । २०-२७)। अपने भाई लिखितपर इनकी कृपा शक्रावर्त-एक तीर्थ, जिसमें देवताओं और पितरोंका तर्पण (शान्ति. २३ । ३८-४२)। इनके द्वारा लिखितकी करनेवाला मनुष्य पुण्यलोकमें प्रतिष्ठित होता है (वन शंकाका समाधान (शान्ति०२३।१३-४४)।ये तिलका ८४ । २९)। दान करके दिव्यलोकको प्राप्त हुए हैं (अनु०६६।१२) । शङ्कर-एक सनातन विश्वेदेव (अनु० ९५ । ३५)। (४) एक दैत्य, जो वरुणकी सभामें रहकर उनकी शङ्क-एक यदुवंशी क्षत्रिय, जो द्रौपदीके स्वयंवरमें उपस्थित उपासना करता है (सभा० ९।१३)।(५)श्रेष्ठ था (आदि. १८५। १९)। सुभद्रा और अर्जुनके निधियों में प्रमुख शङ्ख, जो कुबेर-सभामें रहकर धन ध्यक्ष विवाहके उपलक्ष्य में अन्य बहुत-से वृष्णिवंशियोंके साथ यह कुबेरकी उपासना करता है (सभा० १०।३९)। भी दहेज लेकर खाण्डवप्रस्थमें आया था ( आदि. पाञ्चःलराज ब्रह्मदत्तने उत्तम ब्राह्मणों को शङ्ख निधिका २२० । ३१-३३) । यह एक महारथी वीर था दान किया था, इससे उन्हें उत्तम गति प्राप्त हुई थी (सभा० १४॥ ५९)। (शान्ति० २३४ । २९, अनु० १३७ । १७)।(६) पाँच भाई केकयराजकुमारोंमेंसे एक, ये पाण्डवपक्षके शङ्ककर्ण-(१) धृतराष्ट्रके कुलमें उत्पन्न एक नाग, जो उदार रथी थे ( उद्योग. १७१।१५)। जनमेजयके सर्पसत्रमें दग्ध हो गया था (आदि० ५७ । १५)। (२) भगवान् शिवका एक दिव्य पार्षद, जो शङ्कतीर्थ-सरस्वती-तटवर्ती एक प्राचीन तीर्थ । इसका कुबेरकी सभामें उपस्थित होता है (सभा. १०।। विशेष वर्णन (शल्य३७ । १९-२६)। ३४-३५) । (३) पार्वतीद्वारा स्कन्दको दिये गये दो शङ्खनख-एक नाग, जोवरुणकी सभामें रहकर उनकी उपासना पार्षदोर्मेसे एक, दूसरेका नाम पुष्पदन्त था (शल्य करता है (सभा० ५। ८ के बाद दाक्षिणात्य पाठ)। ४५ । ५.)। (४) स्कन्दका एक सैनिक (शल्य. शङ्खपद-स्वारोचिष मनुके पुत्र, जिन्हें पिताद्वारा नारायण४५ । ५६)। प्रतिपादित सात्वत धर्मका उपदेश प्राप्त हुआ था। इन्होंने शकर्णेश्वर-भगवान् शिवकी एक मूर्ति, जिसकी पूजा अपने पुत्र दिक्पाल सुवर्णाभको इस धर्मकी शिक्षा दी थी करनेसे अश्वमेध यज्ञसे दसगुने फलकी प्राप्ति होती है (शान्ति० ३४८ । ३७-३८)। (वन० ८२ । ७.)। शङ्खपिण्ड-कश्यपद्वारा कद्र के गर्भसे उत्पन्न एक नाग शङ्ख-(१) कश्यपदारा कद्रूके गर्भसे उत्पन्न एक नाग (आदि० ३५ । २३)। (आदि० ३५ । ८ )। नारदजीने मातलिको इनका शङ्खमुख-कश्यपद्वारा कद्रूके गर्भसे उत्पन्न एक नाग परिचय दिया था (उद्योग० १०३ । १२) । बलरामजीके (आदि० ३५ । ")। परमधाम पधारते समय उनके स्वागतार्थ ये भी आये थे शङ्खमेखल-एक ऋषि, जो सर्पदंशनसे मरी हुई प्रमदराको (मौसल. ४।१७)। (२) राजा विराटके पुत्र देखनेके लिये स्थूलकेशके आश्रमके निकटवर्ती वनमें जो अपने पिता और भाई के साथ द्रौपदी-स्वयंवरमें पधारे पधारे ये (आदि०८।२४)। थे (उत्तर एवं उत्तराके भ्राता) (आदि० १८५ । 4)। गतॊद्वारा गोहरणके समय उनके साथ युद्धके शङ्खलिका-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका(शल्य० ४६।१५) । लिये इनका जाना (विराट० ३१।१६) प्रथम दिनके शङ्खशिरा-कश्यपद्वारा कद्रूके गर्भसे उत्पन्न एक नाग संग्राममें भूरिश्रवाके साथ इनका द्वन्द्-युद्ध (भीष्म. (मादि० ३५ । १२ ) । इसीका शङ्खशीर्ष नामसे भी ४५। ३५-३७)। शल्यके साथ युद्ध (भीष्मः ४९। वर्णन आया है (उद्योग. १०३।१५)। २६-४०) द्रोणाचार्यके साथ युद्ध और उनके द्वारा राजश्रवा-स्कन्दकी अनुचरी एक मातृका (शल्य० ४६।२६) For Private And Personal Use Only
SR No.020461
Book TitleMahabharat Ki Namanukramanika Parichay Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudevsharan Agarwal
PublisherVasudevsharan Agarwal
Publication Year1959
Total Pages414
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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